Ras kise kahate hai? रस किसे कहते हैं एवं उनके प्रकार

नमस्कार दोस्तों कैसे हैं आप सभी?  स्वागत है आप सभी का हमारे इस पोस्ट (Ras kise kahate hai) में । आज की इस पोस्ट में मैं आपको बताने वाली हूं हिंदी व्याकरण की एक बहुत ही महत्वपूर्ण अंग के बारे में जो की है “रस”। रस से संबंधित सारी जानकारी, उसके प्रकार, परिभाषा, उदाहरण सहित आपको इस पोस्ट में मिलेंगे।

रस किसे कहते हैं?

रस को सरलतम भाषा में और सरलतम उदाहरण के साथ यहां समझाया गया है। पिछले 7 वर्षों से मैं हिंदी व्याकरण के क्षेत्र में निपुण हूं। अपने इस अनुभव को आप लोगों के साथ सरलतम भाषा में साझा करने आई हूं, तो चलिए जानते हैं रस क्या है और उसके प्रकार एवं उदाहरण क्या है।

रस की परिभाषा :-

रस किसी भी काव्य की आत्मा होती है। किसी श्रोता या पाठक के द्वारा किसी काव्य को पढ़कर, सुनकर अथवा किसी नाटक को देखकर जो आनंद की अनुभूति होती है ,उसी को रस कहा जाता है। जिस प्रकार आत्मा बिना शरीर अधूरा होता है ,उसी प्रकार रस बिना काव्य अधूरा होता है।

निम्नलिखित रस के स्थाई भाव के साथ उसकी परिभाषा उदाहरण सहित :-

श्रृंगार रस, वीर रस, करुण रस, हास्य रस, शांत रस

श्रृंगार रस

नायक नायिका के चित्र में रति नमक स्थाई भाव का जब विभाव अनुभव और संचारी भाव से सहयोग होता है तो श्रृंगार रस धारण होता है। इस रस के दो भेद होते हैं :-

संयोग श्रृंगार रस ,वियोग श्रृंगार रस जिन्हें  इस प्रकार परिभाषित करेंगे :-

संयोग श्रृंगार रस 

संयोग काल में नायक और नायिका की पारस्परिक रति को संयोग श्रृंगार कहा जाता है।

उदाहरण-

कौन हो तुम वसंत के दूध,

विरस पतझड़ में आती सुकुमार ।।

इस प्रकरण में रति स्थाई भाव है।

ras kise kahte hai
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वियोग श्रृंगार रस

जहां रचना में नायक एवं नायिका के मिलन का अभाव रहता है और बिरहा का वर्णन होता है, वहां वियोग श्रृंगार होता है।

उदाहरण-

मेरे प्यारे नव जगत से कंज से नेत्र वाले

जाके आए न मधुबन से औ न भेजो संदेश ।।

इसमें विरह का वर्णन किया गया है। रति स्थाई भाव है ।

करुण रस 

बंधु-विनाश, बंधु-वियोग, द्रव्य-नाश और प्रेमी के सदैव के लिए अलग हो जाने के कारण करुण रस उत्पन्न होता है । शोक नामक स्थाई भाव ,विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से करुण रस प्राप्त होता है।

 उदाहरण-

क्यों छलक रहा दुख मेरा उषा की मृदु पलकों में ।

हां उलझ रहा सुख मेरा संध्या की घन अलकों में ।।

प्रस्तुत पद में विरह में रुदन का वर्णन किया गया है। इस कविता में शोक स्थाई भाव है।

वीर रस

उत्साह की अभिव्यक्ति जीवन के कई क्षेत्रों में होती है शास्त्रकारों ने मुख्य रूप से ऐसे चार क्षेत्रों का उल्लेख किया है युद्ध, धर्म ,दया और दान इन चारों को लक्ष्य कर जब उत्साह का भाव जागृत होता है, तब वीर रस उत्पन्न होता है। उत्साह नामक स्थाई भाव, विभाव अनुभव और संचारी भाव से वीर रस की दशा को प्राप्त होता है।

उदाहरण –

साजि चतुरंग सैन अंग मै उमंग धारि,

सरजा सिवाजी जंग जीनत चलत हैं ।

हास्य रस

अपने अथवा पराये के परिधान, वेशभूषा, वचन अथवा क्रियाकलाप आदि से उत्पन्न हुआ हास नामक स्थाई भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भावों के संयोग से हास्य रस उत्पन्न होता है ।

उदाहरण –

नाना वाहन नाना वेषा । विहसे सिव समाज निकज देखा ।।

कोउ मुखहीन, विपुल मुख काहु । बिन पद-कर बहु पदबाहु ।।

शांत रस

वैराग्य होने पर शांत रस की उत्पत्ति होती है । इस प्रकार निर्वेद नामक स्थाई भाव, विभाव अनुभाव, और संचारी भाव के संयोग से शांत रस धारण होता है ।

 उदाहरण –

 

राम कृपा भाव निसा सिरानी जागे फिर ना डसैहौं ।

पायो नाम चारु चिंतामनि उरकर  तें न खसैहौं ।।

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अलंकार

अनुप्रास अलंकार

एक ही वर्ण की बार-बार आवृत्ति होने पर अनुप्रास अलंकार होता है ।

उदाहरण –

कानन कठिन भयंकर भारी ।

घोर घाम हिम वारि-बयारी ।।

स्पष्टीकरण – इस उदाहरण में ‘क’, ‘र’ , ‘म’ , ‘भ’ अक्षर एक से अधिक बार आए, इसीलिए अनुप्रास अलंकार है।

 

2. यमक अलंकार

एक शब्द ही शब्द  दो या  दों से अधिक बार आता है,  और भिन्न-भिन्न अर्थो के साथ प्रयुक्त होता है तो वहां यमक अलंकार होता है ।

उदाहरण –

काली घटा का घमंड घटा ।

नभमंडल तारक वृदं खिले ।।

स्पष्टीकरण – इस उदाहरण में ‘घटा’ शब्द दो बार आया है और दोनों स्थानों पर उसका अर्थ भिन्न-भिन्न है ।

(1) घटा = ‘बादल’ और (2) घटा = ‘कम हो गया’ को प्रदर्शित करता है ।

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श्लेष अलंकार 

जब एक शब्द एक ही बार प्रयुक्त होता है किंतु उसके दो या दो से अधिक अर्थ होते हैं तब वहां श्लेष अलंकार होता है ।

  उदाहरण –

चिरंजीवौं जोरी जुरै , क्यों न सनेह गंभीर ।

को घटि ये वृषभानुजा, वे हलधर के वीर ।।

  1.   स्पष्टीकरण – इस उदाहरण में ‘वृषभानुजा’ और ‘हलदर’ शब्द एक ही बार आए हैं , किंतु अनेक अर्थ है –(1) वृषभानुजा = राजा वृषभानु की पुत्री राधा तथा वृषभ (बैल) की बहन गाय। (2) हलधर = बलराम तथा बैल। यहाँ ‘वृषभानुजा’ तथा ‘हलधर’ शब्द में श्लेष अलंकार है ।

उपमा अलंकार

जहाँ उपमेय (जिसके लिए उपमा दी जाती है) और उपमान (उपमेय की जिसके साथ तुलना की जाती है )के समान धर्मकथन को उपमा अलंकार कहते हैं । उपमा के चार अंग होते हैं – (1) उपमेय, (2) उपमान, (3) वाचक, (4) साधारण धम्र

उदाहरण –

‘हरि पद कोमल कमल – से’

स्पष्टीकरण –  उपमेय  –  हरि-पद

उपमान –  कमल

वाचक  –   से

साधारण धम्र  –  कोमलता

रूपक अलंकार

जहाँ उपमेय (जिसके लिए उपमा दी जाती है) मे उपमान (उपमेय की जिसके साथ तुलना की जाती है ) का निषेधरहत आरोप हो, वहाँ रूपक अलंकार होता है ।

  उदाहरण –

गिरा-अनिल मुख पंकज रोकी ।

प्रकट न लाज-निशा अवलोकी ।।

  स्पष्टीकरण – यहाँ गिरा (वाणी) में भौंरे का, मुख में कमल का और लाज में निशा का निषेधरहित आरोप होने से रूपक अलंकार है।

उत्प्रेक्षा अलंकार

जहाँ उपमेय (जिसके लिए उपमा दी जाती है) मे उपमान (उपमेय की जिसके साथ तुलना की जाती है ) की संभावना की जाए वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है ।

उदाहरण –

सोहत ओढै पीतु-पटु, स्याम सलौने गात ।

मानौ नीलमनि सैल पर, आतपु पर्यौं प्रभात ।।

 स्पष्टीकरण – यहां श्रीकृष्ण के ‘श्याम गात’ में ‘नीलमणि शैल’ की तथा ‘पीत पट’ में ‘प्रताप के आतप (धूप)’ की संभावना करने से उत्प्रेक्षा अलंकार है ।

 

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