डीयर स्टूडेन्ट इस पोस्ट में Class 12 Physics Top 100 Question With Ans Free PDF M Solution दिया जा रहा है। अगर आप 12वीं बोर्ड के छात्र है तो आप इस पोस्ट में से हर 60 प्रतिशत ऐसे Question पायेंगे जो बार बार परीक्षाओं में पूछे जाते हैं। मेरा इस क्षेत्र में 12 वर्ष का अनुभव है जो मै आपके बीच शेयर करना चाहता हूँ। प्रश्नों को तरीके से नीचे दिया गया है।
PHYSICS TOP 100 QUESTION WITH ANSWER
Class 12 Physics बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)
प्रश्न 1. वैद्युतशीलता (६०) का एस०आई० मात्रक है- (2014,15,20, 22)
(i) कूलॉम2/ न्यूटन-मीटर2
(iii) न्यूटन कूलॉम
(iii) न्यूटन/कूलॉम
(iv) न्यूटन-वोल्ट/मीटर2
उत्तर- (i) कूलॉम2/ न्यूटन-मीटर2
प्रश्न 2. वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता का भात्रक है- (2015, 16, 17)
(i) कूलॉम/न्यूटन
(ii) जूल/न्यूटन
(iii) न्यूटन/कूलॉम
(iv) न्यूटन/मी
उत्तर- (iii) न्यूटन/कूलॉम
प्रश्न 3. निम्न में से कौन-सा वैद्युत-क्षेत्र का मात्रक नहीं है? (2014, 18, 19)
(i) न्यूटन/कूलॉम
(ii) वोल्ट-मीटर
(iii) जूल/कूलॉम
(iv) जूल-कूलॉम/मीटर
उत्तर- (iii) जूल/कूलॉम
प्रश्न 4. विद्युत फ्लक्स का मात्रक है-(2017, 18, 19, 20, 23)
(i) न्यूटन/कूलॉम
(ii) वोल्ट-मीटर
(iii) वोल्ट/मीटर
(iv) न्यूटन-मीटर/कूलॉम
उत्तर- (ii) वोल्ट-मीटर
प्रश्न 5. गतिशील आवेश उत्पन्न करता है-
या धारावाही चालक के चारों ओर उत्पन्न क्षेत्र होता है- (2019, 23)
(i) केवल वैद्युत क्षेत्र
(ii) केवल चुम्बकीय क्षेत्र
(iii) वैद्युत एवं चुम्बकीय क्षेत्र दोनों
(iv) वैद्युत एवं चुम्बकीय क्षेत्र में से कोई नहीं
उत्तर- (ii) केवल चुम्बकीय क्षेत्र
चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता का मात्रक
प्रश्न 6. चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता का मात्रक होता है-
या चुम्बकीय क्षेत्र का मात्रक होता है- (2015, 16, 20)
(i) वेबर x मीटर2
(ii) वेबर/मीटर2
(iii) वेबर
(iv) वेबर/मीटर
उत्तर- (ii) वेबर/मीटर 2
प्रश्न 7. (μ०६०)–1/2 का मान है- (2014, 16, 18, 19)
(i) 3 × 108 सेमी/सेकण्ड
(ii) 3 × 1010 सेमी/सेकण्ड
(iii) 3 × 109 सेमी/सेकण्ड
(iv) 3 × 108 किमी/सेकण्ड
उत्तर- (ii) 3 × 1010 सेमी/सेकण्ड
प्रश्न 8. एक L-C-R परिपथ को प्रत्यावर्ती धारा के स्रोत से जोड़ा गया है। अनुनाद की स्थिति में लगाये गये विभवान्तर एवं प्रवाहित धारा में कलान्तर होगा- (2017, 18, 22)
(i) शून्य
(ii) π/4
(iii) π/2
(iv) π
उत्तर – (i) शून्य
प्रश्न 9. एक प्रत्यावर्ती परिपथ में R = 100Ω, Χ₁ = 3002 तथा Xc = 200 श्रेणीक्रम में जुड़े हैं। आरोपित विद्युत वाहक बल तथा प्रवाहित धारा में कलान्तर है। (2019, 20)
(i) 0°
(ii) 30°
(iii) 45°
(iv) 90°
उत्तर- (iii) 45°
प्रश्न 10. 1/ का मात्रक है- (2015,16,18,20,23)
(i) न्यूटन/कूलॉम
(ii) मी/से
(iii) वेबर/मी2
(iv) फैरड
उत्तर- (ii) मी/से
प्रश्न 11. विद्युत चुम्बकीय तरंगों की प्रकृति होती है-(2019, 23)
(i) अनुप्रस्थ
(ii) अनुदैर्ध्य
(iii) अनुप्रस्थ और अनुदैर्ध्य दोनों
(iv) इनमें से कोई नहीं
उत्तर- (i) अनुप्रस्थ
प्रश्न 12. 1 amu के तुल्य ऊर्जा है- (2016, 17, 18, 20, 23)
(i) 190 MeV
(ii) 139 MeV
(iii) 913 MeV
(iv) 931 MeV
उत्तर- (iv) 931 MeV
प्रश्न 13. हाइड्रोजन नाभिक की बन्धन ऊर्जा है- (2017, 18)
(i) -13.6 Ev
(ii) 0
(iii) 13.6 eV
(iv) 6.8 eV
उत्तर – (ii) 0
प्रश्न 14. फोटॉन के गतिज द्रव्यमान का सूत्र है- (2015, 17, 18)
(i) hy/λ
(ii) hv/c2
(iii) hc/v
(iv) c2/hv
जहाँ, h प्लांक नियतांक, v फोटॉन की आवृत्ति तथा c उसकी चाल है।
उत्तर- (ii) hv/c2
प्रश्न 15. प्रकाश वैद्युत प्रभाव के प्रयोग में आपतित प्रकाश की आवृत्ति (v) तथा निरोधी विभव (V) के बीच खींचे गये ग्राफ की ढलान होती है- (2017, 19, 20, 22)
(i) h
(ii) h/e
(iii) e/h
(iv) v/V
उत्तर- (ii) h/e
प्रश्न 16. किसी गतिमान कण से सम्बद्ध डी-ब्रॉग्ली तरंग की तरंगदैर्ध्य निर्भर नहीं करती है- (2016, 20)
(i) द्रव्यमान पर
(ii) आवेश पर
(iii) वेग पर
(iv) संवेग पर
उत्तर- (ii) आवेश पर
प्रश्न 17. p – प्रकार का अर्द्धचालक बनाने के लिए शुद्ध जर्मेनियम में मिलाया जाने वाला अपद्रव्य होता है-(2015, 17, 22)
(i) फॉस्फोरस
(ii) ऐण्टीमनी
(iii) ऐलुमिनियम
(iv) आर्सेनिक
उत्तर- (iii) ऐलुमिनियम
ध्रुवण कोण तथा क्रान्तिक कोण में सम्बन्ध Class 12 Physics
प्रश्न 18. ध्रुवण कोण (p) तथा क्रान्तिक कोण (C) में सम्बन्ध व्यक्त होता है-(2017, 18, 19)
(i) tan p = cosec C
(ii) tan p = sin C
(iii) tan p = sec C
(iv) tan p = cos C
उत्तर- (i) tan p = cosec C
प्रश्न 19. एक वैद्युत चुम्बकीय तरंग में वैद्युत क्षेत्र का आयाम 6 वोल्ट-मी 1 है। चुम्बकीय क्षेत्र का आयाम है- (2017, 18, 20, 23)
(i) 6 टेस्ला
(ii) 2 × 10-8 टेस्ला
(iii) 2 × 10-10 टेस्ला
(iv) 3 × 10-8 टेस्ला
उत्तर – (ii) 2 × 10-8 टेस्ला
लेन्ज का नियम Class12 Physics Top 100 Question With Ans M Solution
प्रश्न 20. लेन्ज का नियम किसके संरक्षण नियम के अनुरूप उत्पन्न होता है?(2017,18)
(i) आवेश
(ii) संवेग
(iii) ऊर्जा
(iv) बल
उत्तर- (iii) ऊर्जा
प्रश्न 21. निम्नलिखित में से कौन विद्युत चुम्बकीय तरंगें नहीं हैं?(2017,18)
(i) गामा किरणें
(ii) एक्स किरणें
(iii) अवरक्त किरणें
(iv) बीटा किरणें
उत्तर- (iv) बीटा किरणें
प्रश्न 22. विद्युत चुम्बकीय तरंगें उत्पन्न होती हैं-(2018, 23)
(i) स्थिर आवेश द्वारा
(ii) नियत वेग से गतिशील आवेश द्वारा
(iii) त्वरित आवेश द्वारा
(iv) आवेश हीन कण द्वारा
उत्तर- (iii) त्वरित आवेश द्वारा
प्रश्न 23. सबसे अधिक आवृत्ति की तरंग है- (2014)
(i) पराबैंगनी तरंगें
(ii) गामा तरंगें
(iii) दृश्य प्रकाश तरंगें
(iv) रेडियो तरंगें
उत्तर- (ii) गामा तरंगें
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प्रश्न 24. जब कोई तरंग किसी माध्यम में प्रवेश करती है, तो परिवर्तन नहीं होता है-(2018)
(i) तरंग की आवृत्ति का
(ii) तरंगदैर्ध्य का
(iii) तरंग के वेग का
(iv) तरंग के आयाम का
उत्तर- (i) तरंग की आवृत्ति का
प्रश्न 25. एक वैद्युत चुम्बकीय तरंग में वैद्युत क्षेत्र का आयाम 6 वोल्ट-मी है। चुम्बकीय क्षेत्र का आयाम है- (2017, 18, 20, 23)
(i) 6 टेस्ला
(ii) 2 × 10-8 टेस्ला
(iii) 2 × 10-10 टेस्ला
(iv) 3 × 10-8 टेस्ला
उत्तर- (ii) 2 × 10-8 टेस्ला
प्रश्न 26. E = 100 cos (6×108t+4x) वोल्ट / मीटर से निरूपित एक समतल विद्युत-चुम्बकीय तरंग के संचरण के माध्यम का अपवर्तनांक है:(2023)
(i) 1.5
(ii) 2.0
(iii) 2.4
(iv). 4.0
उत्तर- (iv) 4.0
प्रश्न 27.चालन एवं संयोजी बैण्डों की ऊर्जाओं में अन्तर- (2018)
(i) चालकों में अधिकतम होता है
(ii) चालकों में न्यूनतम होता है
(iii) अर्द्धचालकों में चालकों से कम होता है
(iv) कुचालकों में चालकों से कम होता है
उत्तर- (ii) चालकों में न्यूनतम होता है
प्रश्न 28. अर्द्धचालक में वैद्युत चालन होता है-(2017)
(i) कोटरों से
(ii) इलेक्ट्रॉनों से
(iii) कोटरों तथा इलेक्ट्रॉनों से
(iv) न कोटरों से, न इलेक्ट्रॉनों से
उत्तर- (iii) कोटरों तथा इलेक्ट्रॉनों से
प्रश्न 29. 0 K ताप पर शुद्ध अर्द्धचालक है- (2019, 22)
(i) चालक
(ii) प्रतिरोधक
(iii) शक्ति स्रोत
(iv) विद्युतरोधी
उत्तर- (iv) विद्युतरोधी
प्रश्न 30. अर्द्धचालकों व चालकों की चालकता-(2017, 23)
(i) ताप पर निर्भर नहीं करती
(ii) ताप बढ़ने पर घटती है
(iii) ताप बढ़ने पर अर्द्धचालकों बढ़ती व चालकों की घटती है।
(iv) ताप घटने पर घटती है
उत्तर- (iii) ताप बढ़ने पर अर्द्धचालकों की चालकता बढ़ती व चालकों की घटती है।
प्रश्न 31. निम्न में से कौन-सा कथन सत्य नहीं है? (2018)
(i) अर्द्धचालक का प्रतिरोध तापमान बढ़ाने पर कम हो जाता है
(ii) वैद्युत क्षेत्र में कोटर (होल) इलेक्ट्रॉन की गति के विपरीत दिशा में गति करता है।
(iii) धातु का प्रतिरोध तापमान बढ़ाने पर कम हो जाता है
(iv) N-टाइप के अर्द्धचालक उदासीन होते हैं
उत्तर- (iii) धातु का प्रतिरोध तापमान बढ़ाने पर कम हो जाता है।
Physics अति लघु उत्तरीय प्रश्न
Class12 Physics Top 100 Question With Ans अतिलघु उत्तरीय प्रश्न-
प्रश्न 32. नाभिकीय श्रृंखला क्रिया में क्रान्तिक द्रव्यमान से क्या अभिप्राय है? (2017)
उत्तर- नाभिकीय विखण्डन की श्रृंखला-अभिक्रिया चालू रखने के लिए विखण्डनीय पदार्थ का द्रव्यमान सदैव एक निश्चित द्रव्यमान से अधिक होना चाहिए। इस निश्चित द्रव्यमान को ही क्रान्तिक द्रव्यमान कहते हैं।
प्रश्न 33. सूर्य से प्राप्त ऊर्जा किस क्रिया का परिणाम है?(2022)
उत्तर- सूर्य से प्राप्त ऊर्जा हल्के नाभिकों के संलयन का परिणाम है।
प्रश्न 34. नाभिकीय विखण्डन में श्रृंखला अभिक्रिया क्या है?(2022)
उत्तर- जब यूरेनियम पर न्यूट्रॉनों की बमबारी की जाती है, तो प्रत्येक यूरेनियम नाभिक दो समान खण्डों में विखण्डित हो जाता है तथा इसके साथ ही बहुत अधिक ऊर्जा व दो या तीन नए न्यूट्रॉन भी निकलते हैं। ये न्यूट्रॉन अनुकूल परिस्थितियाँ मिलने पर अन्य यूरेनियम नाभिकों को भी इसी प्रकार विखण्डित कर सकते हैं। इस प्रकार नाभिकों के विखण्डन की एक श्रृंखला बन जाती है जो एक बार चालू होने पर स्वतः चालू रहती है जब तक कि समस्त यूरेनियम समाप्त नहीं हो जाता। इस प्रक्रिया को श्रृंखला अभिक्रिया कहते हैं।
प्रश्न 35. वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता की परिभाषा तथा इसका मात्रक लिखिए।(2015, 16, 17)
उत्तर- वैद्युत क्षेत्र में किसी बिन्दु पर रखे परीक्षण-आवेश पर लगने वाले बल तथा परीक्षण-आवेश के मान की निष्पत्ति को उस बिन्दु पर वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता वेक्टर E कहते हैं।
वेक्टर E = वेक्टर F/q0
इसका मात्रक ‘न्यूटन/कूलॉम’ होता है।
प्रश्न 36. एकसमान वैद्युत क्षेत्र सदिश É = 2i + 3j – 4k वोल्ट/मीटर में एक पृष्ठ के क्षेत्रफल A = 8; मी² से गुजरने वाले वैद्युत फ्लक्स की गणना कीजिए। (2014, 19, 22, 23)
उत्तर- वैद्युत फ्लक्स = Ẻ A = (2i+3j-4k). (8j)
= 24 वोल्ट-मीटर
प्रश्न 37. संधारित्र की धारिता की परिभाषा लिखिए। (2014, 15, 22)
उत्तर – किसी संधारित्र की धारिता, उसकी एक प्लेट को दिए गए आवेश तथा दोनों प्लेटों के बीच उत्पन्न विभवान्तर के अनुपात के बराबर होती है।
अर्थात् संधारित्र की धारिता C = q/ V
एम्पियर का परिपथीय नियम Class 12 Physic With Ans
प्रश्न 38. ऐम्पियर का परिपथीय नियम लिखिए। (2014, 15, 17, 18)
उत्तर- “किसी बन्द वक्र के परितः चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता का रेखा- समाकलन (line-integral) उस बन्द वक्र द्वारा घिरे क्षेत्रफल में से गुजरने वाली कुल वैद्युत धारा का µ० गुना होता है, जहाँ µ० निर्वात् की निरपेक्ष चुम्बकशीलता है।”
अर्थात् Β.αι = μο.i
जिसमें i पथ द्वारा घिरी नेट धारा है तथा C बन्द पथ की सीमा है।
प्रश्न 39. प्रति तथा अनुचुम्बकीय पदार्थों में मुख्य अन्तर लिखिए। (2017,18)
उत्तर- ऐसे पदार्थ जो तीव्र प्रबलता के चुम्बकीय क्षेत्र में रखने पर क्षेत्र की विपरीत दिशा में आंशिक रूप से चुम्बकित होते हैं, प्रति चुम्बकीय पदार्थ कहलाते हैं। जैसे-सोना, चाँदी, हीरा, नमक, जल, वायु आदि। ऐसे पदार्थ जो प्रबल तीव्रता के चुम्बकीय क्षेत्र में रखे जाने पर क्षेत्र की दिशा में आंशिक रूप से चुम्बकित होते हैं, अनुचुम्बकीय पदार्थ कहलाते हैं। जैसे-ऐलुमिनियम, प्लैटिनम, सोडियम, कॉपर क्लोराइड, ऑक्सीजन आदि।
प्रश्न 40. वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण का लेन्ज का नियम क्या है? (2014, 16, 17)
उत्तर- किसी परिपथ में प्रेरित विद्युत वाहक बल, अथवा प्रेरित धारा की दिशा सदैव ऐसी होती है कि यह उस कारण का विरोध करती है जिससे वह स्वयं उत्पन्न होती है।
प्रश्न 41. स्वप्रेरण से आप क्या समझते हैं? (2016)
या स्वप्रेरण का अर्थ समझाइए तथा स्वप्रेरण गुणांक का विमीय सूत्र लिखिए।(2017, 19, 20, 23)
उत्तर- स्वप्रेरण-किसी कुण्डली से सम्बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स के मान में परिवर्तन होने पर उसी कुण्डली में प्रेरित वैद्युत वाहक बल तथा प्रेरित धारा उत्पन्न होने की घटना को स्वप्रेरण कहते हैं।
स्वप्रेरण गुणांक का विमीय सूत्र = [ML2T-2A-2]
प्रश्न 42. एक्स-किरणों के दो प्रमुख गुण और उपयोग लिखिए। (2019)
उत्तर- एक्स-किरणों के गुण-
(i) X-किरणें वैद्युत चुम्बकीय तरंगें हैं।
(ii) ये अदृश्य होती हैं।
(iii) इनका वेग प्रकाश के वेग के बराबर होता है।
(iv) ये फोटोग्राफिक प्लेट को प्रभावित करती हैं।
लेन्स की क्षमता Physics Top 100 Question With Ans
प्रश्न 43. लेन्स की क्षमता से क्या तात्पर्य है? इसका मात्रक लिखिए। (2018)
या लेन्स की क्षमता की परिभाषा लिखिए। (2019)
उत्तर- लेन्स की क्षमता उसकी मीटर में नापी गई फोकस दूरी के व्युत्क्रम के बराबर होती है। इसे ‘P’ से प्रदर्शित करते हैं, तथा इसका मात्रक D है।
प्रश्न 44. कला-सम्बद्ध स्रोतों से आप क्या समझते हैं? (2018, 19, 22, 23)
उत्तर- ऐसे दो स्रोतों को जिनके बीच कलान्तर सदैव नियत रहता है, कला-सम्बद्ध स्रोत (coherent sources) कहते हैं। दो कला-सम्बद्ध स्रोतों से हम स्थायी (sustained) व्यतिकरण प्रतिरूप प्राप्त कर सकते हैं। ऐसे स्रोत किसी युक्ति द्वारा एक ही स्रोत से प्राप्त किये जाते हैं।
प्रश्न 45. प्रकाश-वैद्युत कार्य-फलन से क्या तात्पर्य है?(2019,20)
या कार्य-फलन की परिभाषा लिखिए। (2018)
या देहली-आवृत्ति एवं कार्य-फलन में सम्बन्ध लिखिए।(2019)
उत्तर- “वह न्यूनतम प्रकाश ऊर्जा जो किसी धातु पृष्ठ से इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित करने के लिए आवश्यक होती है, उस धातु का प्रकाश वैद्युत कार्य-फलन (work function) कहलाता है।” सामान्यतः इसको W से व्यक्त करते हैं। W=hc/λο
अथवा W = h/v0
प्रश्न 46. हाइड्रोजन के वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम) में कौन-सी श्रेणी पराबैंगनी भाग में पायी जाती है? (2020, 22)
हल – हाइड्रोजन के वर्णक्रम स्पेक्ट्रम में, पराबैंगनी भाग में लाइमन श्रेणी पाई जाती है।
प्रश्न 47. समन्यूट्रॉनिक से आप क्या समझते हैं? उदाहरण दीजिए। (2017, 18, 23)
उत्तर- ऐसे नाभिक जिनमें केवल न्यूट्रॉनों की संख्या समान होती है, समन्यूट्रॉनिक कहलाते हैं। उदाहरणार्थ- 1H³ तथा 2He4 , 3Li7 तथा 4Be8 .
प्रश्न 48. अर्द्धचालक क्या होता है? किसी एक अर्द्धचालक का नाम लिखिए। (2019, 20, 22)
या अर्द्धचालक क्या है?
उत्तर- वे ठोस पदार्थ जिनकी वैद्युत चालकता, चालकों से कम; परन्तु अचालकों से अधिक होती है, अर्द्धचालक कहलाते हैं। उदाहरण- जर्मेनियम।
प्रश्न 49. किसी समान चुम्बकीय क्षेत्र में एक इलेक्ट्रॉन क्षेत्र के लम्बवत् दिशा में प्रवेश करता है। इलेक्ट्रॉन का पथ क्या होगा ? (2015, 17)
उत्तर– इलेक्ट्रॉन का पथ वृत्ताकार होगा।
कक्षा 12 लघु उत्तरीय प्रश्न Top 100 Question
प्रश्न 50. वैद्युत-फ्लक्स से क्या तात्पर्य है?
या वैद्युत-फ्लक्स की परिभाषा तथा मात्रक लिखिए। (2015, 19, 22)
उत्तर– वैद्युत-फ्लक्स (Electric Flux) – “वैद्युत-क्षेत्र में स्थित किसी क्षेत्रफल से अभिलम्बवत् दिशा में गुजरने वाली वैद्युत बल-रेखाओं की संख्या को वैद्युत-फ्लक्स कहते हैं।” इसका मात्रक वोल्ट-मीटर है। किसी निर्दिष्ट स्थिति पर वैद्युत बल-रेखाओं के लम्बवत् एकांक क्षेत्रफल से गुजरने वाली वैद्युत बल-रेखाओं की संख्या वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता E को प्रदर्शित करती है। अतः किसी क्षेत्रफल अल्पांश dA से गुजरने वाली वैद्युत बल-रेखाओं की संख्या É.dA होती है जो इस अल्पांश से गुजरने वाला वैद्युत-फ्लक्स ही होता है।
वैद्युत फ्लक्स
किसी पृष्ठ के अल्पांश क्षेत्रफल dA से गुजरने वाले वैद्युत-फ्लक्स dФ का मान इस क्षेत्रफल अल्पांश की स्थिति पर वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता Ẻ तथा क्षेत्रफल सदिश वA के अदिश गुणनफल के तुल्य होता है।
d =Ẻ ĐÃ
अतः
सम्पूर्ण पृष्ठ के लिए वैद्युत-फ्लक्स का मान ह पृष्ठ के समस्त अल्पांशों से वैद्युत-फ्लक्स के मानों का योगफल होगा।
यदि अल्पांश अति-अल्प हो तो योगफल को समाकल से प्रतिस्थापित किया जा सकता है।
अतः d = Ẻ ĐÃ
चिह्न सम्पूर्ण पृष्ठ के लिए समाकलन का चिह्न है। इसको पृष्ठ समाकल (surface integral) कहते हैं। किसी बन्द सतह (वह पृष्ठ जिसके अन्दर आयतन परिबद्ध हो) से वैद्युत बल-रेखाएँ इससे बाहर की ओर निकलती हैं तो वैद्युत-फ्लक्स का चिह्न धनात्मक होता है। इसके विपरीत यदि बल-रेखाएँ बन्द पृष्ठ (सतह) के अन्दर की ओर जाती हैं तो वैद्युत-फ्लक्स का चिह्न ऋणात्मक होता है।
प्रश्न 51. किसी धारावाही चालक में धारा घनत्व j, अनुगमन वेग va, प्रति एकांक आयतन में मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या n तथा मूल आवेश e में सम्बन्ध स्थापित कीजिए। (2017)
या मुक्त इलेक्ट्रॉनों का अनुगमन वेग समझाइए ।
या अनुगमन वेग व धारा-घनत्व के बीच सम्बन्ध स्थापित कीजिए। (2016, 23)
या किसी चालक में प्रवाहित धारा तथा इसमें मुक्त इलेक्ट्रॉनों के अपवाह (अनुगमन) वेग में सम्बन्ध स्थापित कीजिए। (2018)
या मुक्त इलेक्ट्रॉनों के अपवाह वेग के लिए विद्युत धारा के पद में व्यंजक व्युत्पन्न कीजिए। (2017)
या अपवाह वेग की परिभाषा दीजिए। अपवाह वेग एवं विद्युत धारा में सम्बन्ध स्थापित कीजिए। (2018, 22)
उत्तर- उत्तर अनुगमन वेग (अपवाह वेग)-किसी धातु के तार के सिरों को बैटरी से जोड़ देने पर तार के सिरों के बीच एक विभवान्तर स्थापित हो जाता है। इस विभवान्तर अथवा वैद्युत-क्षेत्र के कारण इलेक्ट्रॉन एक वैद्युत बल का अनुभव करते हैं जो इलेक्ट्रॉनों को त्वरण प्रदान करता है। परन्तु इस त्वरण से इलेक्ट्रॉनों की चाल लगातार बढ़ती नहीं जाती, बल्कि धातु के धन आयनों से टकराकर ये इलेक्ट्रॉन बैटरी से प्राप्त ऊर्जा को खोते रहते हैं।
स्पष्ट है कि बैटरी का विभवान्तर इलेक्ट्रॉनों को त्वरित गति प्रदान नहीं कर पाता बल्कि तार की लम्बाई के अनुदिश एक लघु नियत वेग ही दे पाता है जो इलेक्ट्रॉनों की अनियमित गति पर आरोपित हो जाता है। इलेक्ट्रॉनों के इस लघु नियत वेग को ही ‘अनुगमन वेग’ (drift velocity) कहते हैं। इसे vd से प्रदर्शित करते हैं।
धारा तथा अनुगमन वेग में सम्बन्ध- माना किसी धातु में किसी स्थान से t सेकण्ड में मुक्त इलेक्ट्रॉनों द्वारा ले जाया जाने वाला कुल आवेश q है, तब धातु में वैद्युत धारा
i=q/ t …(1)
माना तार के अनुप्रस्थ परिच्छेद का क्षेत्रफल A है तथा उसके प्रति एकांक आयतन में मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या n व इलेक्ट्रॉनों का अनुगमन वेग vd है, तब
एक सेकण्ड में तार के क्षेत्रफल में से गुजरने वाले इलेक्ट्रॉनों की संख्या = nAvd
तब t सेकण्ड में तार के क्षेत्रफल में से गुजरने वाले इलेक्ट्रॉनों की संख्या = nAvd×t
तथा । सेकण्ड में तार के क्षेत्रफल में से गुजरने वाले आवेश की मात्रा q = nAvd×t×e
(जहाँ, e = इलेक्ट्रॉन का आवेश है) q का मान समीकरण (1) में रखने पर i = neAvd ………..(2)
यह वैद्युत धारा तथा अनुगमन वेग में सम्बन्ध है।
प्रश्न 38. ऐम्पियर का परिपथीय नियम लिखिए। (2014, 15, 17, 18)
उत्तर- “किसी बन्द वक्र के परितः चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता का रेखा- समाकलन (line-integral) उस बन्द वक्र द्वारा घिरे क्षेत्रफल में से गुजरने वाली कुल वैद्युत धारा का µ० गुना होता है, जहाँ µ० निर्वात् की निरपेक्ष चुम्बकशीलता है।”
प्रश्न 52. चुम्बकीय द्विध्रुव-आघूर्ण की परिभाषा लिखिए। चुम्बकीय द्विध्रुव- आघूर्ण सदिश राशि है अथवा अदिश राशि ? इसका मात्रक भी लिखिए। (2017)
या चुम्बकीय आघूर्ण की परिभाषा एवं मात्रक लिखिए। (2018)
या चुम्बकीय द्विध्रुव-आघूर्ण का सूत्र तथा इसका S.I. मात्रक लिखिए। (2014, 23)
या चुम्बकीय द्विध्रुव-आघूर्ण की परिभाषा लिखिए। समांग चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित चुम्बकीय द्विध्रुव पर लगने वाले बल के आघूर्ण का सूत्र प्राप्त कीजिए। (2015)
उत्तर – माना चुम्बकीय द्विध्रुव एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र B में क्षेत्र की दिशा से कोण बनाते हुए रखा गया है। अतः द्विध्रुव पर लगने वाले बल-युग्म का आघूर्ण, t = MB sin A यदि A = 90° तो sin A = 1, तब चुम्बकीय द्विध्रुव पर लगने वाला बल-आघूर्ण अधिकतम होगा, अर्थात्
tmax = MB
अथवा M = tmax/B
यदि B = 1 , M = tmax
अब अतः किसी चुम्बकीय द्विध्रुव (अथवा धारा लूप) का चुम्बकीय आघूर्ण वह बल-आघूर्ण है जो इस द्विध्रुव को एकसमान एकांक चुम्बकीय क्षेत्र में क्षेत्र की दिशा के लम्बवत् रखने पर द्विध्रुव पर लगता है।
चुम्बकीय द्विध्रुव-आघूर्ण एक सदिश राशि है तथा इसकी दिशा द्विध्रुव के अक्ष के अनुदिश होती है। धारा लूप में चुम्बकीय-आघूर्ण की दिशा दायें हाथ के नियम द्वारा ज्ञात की जाती है।
इस नियम के अनुसार, यदि हम अपने दायें हाथ के पंजे को पूरा फैलाकर अँगुलियों को लूप के चारों ओर धारा की दिशा में मोड़ें तो अँगूठा चुम्बकीय-आघूर्ण की दिशा की ओर होगा।
प्रश्न 53. बायो-सेवर्ट का नियम समझाइए । (2017, 18, 22, 23)
उत्तर- बायो-सेवर्ट कां नियम (Biot-Savart Law) – सन् 1820 में बायो तथा सेवर्ट ने धारावाही चालकों द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र का अध्ययन करने के लिए अनेक प्रयोग किये। इन प्रयोगों के आधार पर उन्होंने बताया कि किसी धारावाही चालक के एक अल्पांश / के द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र में किसी बिन्दु P पर क्षेत्र का मान △B निम्नलिखित बातों पर निर्भर करता है-
- चुम्बकीय क्षेत्र AB, चालक में प्रवाहित धारा i के अनुक्रमानुपाती होता है।
- चुम्बकीय क्षेत्र, चालक के अल्पांश की लम्बाई l के अनुक्रमानुपाती होता है।
- चुम्बकीय क्षेत्र, अल्पांश की लम्बाई तथा अल्पांश को उस बिन्दु P से मिलाने वाली रेखा के बीच बनने वाले कोण की ज्या (sine) के अनुक्रमानुपाती होता है।
- चुम्बकीय क्षेत्र बिन्दु P की अल्पांश से दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
इसको बायो-सेवर्ट का नियम कहते हैं।
स्वप्रेरण गुणांक Top 100 Question With Ans
प्रश्न 54. स्वप्रेरण गुणांक से आप क्या समझते हैं? (2017, 19, 20, 22, 23)
उत्तर– स्वप्रेरण गुणांक-किसी कुण्डली के स्वप्रेरण गुणांक का मान उस प्रेरित विद्युत वाहक बल के बराबर होता है जो उस कुण्डली में धारा परिवर्तन की दर एकांक होने पर उत्पन्न होता है।
प्रश्न 55. फैराडे के वैद्युत-चुम्बकीय प्रेरण सम्बन्धी नियम बताइए। (2015, 17, 18, 19, 20, 22, 23)
उत्तर– फैराडे के वैद्युत-चुम्बकीय प्रेरण के नियम-फैराडे ने वैद्युत-चुम्बकीय प्रेरण के निम्नलिखित दो नियम दिये हैं—
(i) प्रथम नियम – “जब किसी परिपथ से बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है तो उसमें एक विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है।” यदि परिपथ ‘बन्द’ है तो उसमें प्रेरित धारा बहने लगती है। यह धारा केवल तभी तक बहती है जब तक कि चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन
होता रहता है।
(ii) द्वितीय नियम – “प्रेरित विद्युत वाहक बल चुम्बकीय फ्लक्स के परिवर्तन की ऋणात्मक दर के बराबर होता है।”
यदि किसी समय परिपथ से गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स का मान P₁ है और Δt समयान्तर के बाद यह फ्लक्स क₂ हो जाता है, तो At समयान्तर में चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन = (Φ2 – Φ₁) = ΔΦ यदि परिपथ में प्रेरित वि० वा० बल e हो, तो e=- ΔΦ/Δt
ऋणात्मक चिह्न यह प्रदर्शित करता है कि वि० वा० बल सदैव चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन का विरोध करता है। यह लेन्ज का नियम कहलाता है। यदि चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन की दर वेबर प्रति सेकण्ड में लें तो प्रेरित विद्युत वाहक बल वोल्ट में होता है।
यही फैराडे का वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण सम्बन्धी द्वितीय नियम है।
प्रश्न 56. धारावाही लम्बी परिनालिका के स्व-प्रेरकत्व का सूत्र स्थापित कीजिए। (2017, 18, 22)
या धारावाही परिनालिका के स्व-प्रेरण गुणांक का सूत्र ज्ञात कीजिए। (2020) (2019)
उत्तर– माना एक लम्बी वायु-क्रोड परिनालिका की लम्बाई l तथा परिच्छेद क्षेत्रफल A है। परिनालिका में फेरों की कुल संख्या N तथा उसमें प्रेरित धारा i है।
परिनालिका के भीतर चुम्बकीय क्षेत्र B = µ0Ni/ l
जहाँ µ0 निर्वात् की चुम्बकशीलता है।
कुण्डली के प्रत्येक फेरे से बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स
Ф = BA = µ0 NiA/l
परन्तु परिनालिका के सभी फेरों से बद्ध कुल चुम्बकीय फ्लक्स NФ = Li
जहाँ, L परिनालिका का स्व-प्रेरकत्व है।
अतः परिनालिका का स्व-प्रेरकत्व L= ΝΦ / i
L= µ0N2ZA/l हेनरी
यदि परिनालिका को µ चुम्बकशीलता के पदार्थ की क्रोड पर लपेटकर बनाया गया है, तब
परिनालिका का स्व-प्रेरकत्व L = µN2ZA/l हेनरी
जहाँ, µ = µ0µr , यहाँ µr , परिनालिका की क्रोड के पदार्थ की सापेक्ष चुम्बकशीलता है।
प्रश्न 57. विद्युत-चुम्बकीय स्पेक्ट्रम के अलग-अलग क्षेत्रों की किन्हीं चार प्रकार की तरंगों के नाम लिखिए। उनकी तरंगदैर्ध्य के औसत मान तथा कोई एक उपयोग लिखिए। (2015)
या अवरक्त विकिरण तथा गामा किरणों के एक-एक उपयोग लिखिए। (2014)
या विद्युत-चुम्बकीय स्पेक्ट्रम के मुख्य भागों को उनकी तरंगदैर्ध्य परास के साथ लिखिए। (2015, 17)
या निम्न वैद्युत-चुम्बकीय तरंगों का एक-एक उपयोग लिखिए-
(i) सूक्ष्म तरंगें
(ii) अवरक्त तरंगें,
(iii) पराबैंगनी तरंगें,
(iv) X-किरणें
उत्तर- (i) गामा किरणें- (10-14 मीटर से 10-10 मीटर तक) , नाभिक की संरचना के सम्बन्ध में सूचना देने में उपयोगी।
(ii) एक्स किरणें- (10-11 मीटर से 3×10-8 मीटर तक) , चिकित्सा विभाग में सर्जरी में उपयोगी।
(iii) पराबैंगनी किरणें- (10-8 मीटर से 4×10-7 मीटर तक), खाने की वस्तुओं के संरक्षण में उपयोगी।
(iv) अवरक्त किरणें- (8×10-7 मीटर से 5×10-3 मीटर तक), कोहरे व धुन्ध के पार देखने में उपयोगी।
प्रश्न 33. लेंस के प्रकाशिक केन्द्र को परिभाषित कीजिए। (2023)
उत्तर- यदि लेन्स पर प्रकाश की कोई किरण इस प्रकार आपतित हो कि लेन्स से अपवर्तित होकर बाहर निकलने पर निर्गत किरण आपतित किरण के समान्तर हो, तो अपवर्तित किरण लेन्स की मुख्य अक्ष को जिस बिन्दु पर काटती है या काटती हुई प्रतीत होती है, उसे लेन्स का प्रकाशिक केन्द्र कहते हैं।
प्रश्न 58. एक उत्तल लेन्स तथा अवतल लेन्स की फोकस दूरी क्रमशः 10 सेमी व 50 सेमी है। दोनों लेन्स सम्पर्क में रखे हैं। इस युग्म से 25 सेमी की दूरी पर वस्तु रखी है। वस्तु के प्रतिबिम्ब की स्थिति ज्ञात कीजिए।
2019, 20, 22)
उत्तर- दिया है, उत्तल लेन्स की फोकस दूरी, f₁ = 10 सेमी अवतल लेन्स की फोकस दूरी, f2 = -50 सेमी
दोनों लेन्स सम्पर्क में रखें हैं।
संयुक्त लेन्स की फोकस दूरी, 1/F =1/f1+1/ f2
1/ F = 1/10+ (1 /-50)
1/ F= 1/10- (1 /50)
= 2/25 cm
युग्म से वस्तु की दूरी, u =-25 सेमी (दिया है) लेन्स के सूत्र, 1/ F= 1/v – 1/u
1/v = 1/F+ 1/u
1/v = 2/25 + 1/-25
v = 25 सेमी
अतः वस्तु के प्रतिबिम्ब की स्थिति 25 सेमी है।
प्रश्न 59. प्रकाश के व्यतिकरण से क्या तात्पर्य है? इसके लिए आवश्यक प्रतिबन्ध क्या हैं ? (2014, 15, 16, 19,22,23)
या दो प्रकाश पुंजों द्वारा बनी व्यतिकरण फ्रिन्जों को प्राप्त करने के लिये आवश्यक प्रतिबन्धों का उल्लेख कीजिए।
या प्रकाश के व्यतिकरण के लिए आवश्यक शर्तें बताइए। (2016, 23)
या व्यतिकरण से आप क्या समझते हैं? प्रकाश के व्यतिकरण के लिए आवश्यक शर्तें लिखिए। (2020)
उत्तर- समान आवृत्ति की दो प्रकाश-तरंगें जिनके आयाम समान हो, जब किसी माध्यम में एक साथ चलती हैं तो माध्यम के विभिन्न बिन्दुओं पर प्रकाश की तीव्रता उन तरंगों की अलग-अलग तीव्रताओं के योग से भिन्न होती है। कुछ स्थानों पर प्रकाश की तीव्रता न्यूनतम (लगभग शून्य) होती है, जबकि कुछ स्थानों पर प्रकाश की तीव्रता अधिकतम होती है। प्रकाश-तरंगों की इस घटना को प्रकाश का व्यतिकरण कहते हैं। जिन स्थानों पर तीव्रता न्यूनतम होती है, उन स्थानों पर हुए व्यतिकरण को ‘विनाशी-व्यतिकरण‘ तथा जिन स्थानों पर तीव्रता अधिकतम होती है, उन स्थानों पर हुए व्यतिकरण को ‘संपोषी व्यतिकरण‘ कहते हैं।
प्रकाश के व्यतिकरण के लिए आवश्यक शर्तें-प्रकाश के व्यतिकरण के लिए आवश्यक शर्तें निम्नलिखित हैं-
- दोनों प्रकाश-स्रोत ‘कला सम्बद्ध’ होने चाहिए, अर्थात् दोनों स्रोतों से प्राप्त तरंगों के बीच कलान्तर समय के साथ स्थिर रहना चाहिए।
- दोनों तरंगों की आवृत्तियाँ (अथवा तरंगदैर्ध्य) बराबर होनी चाहिए।
- दोनों तरंगों के आयाम बराबर होने चाहिए।
- प्रकाश के दोनों स्रोतों के बीच दूरी बहुत कम होनी चाहिए जिससे दोनों तरंगाग्र एक ही दिशा में चलें और फ्रिन्जें अधिक चौड़ी बनें।
- दोनों प्रकाश-स्रोत बहुत संकीर्ण होने चाहिए।
प्रश्न 60. द्रव्य तरंगें क्या हैं? (2017, 18, 20)
या लूई डी-ब्रॉग्ली के द्रव्य तरंग की अवधारणा स्पष्ट कीजिए। (2016, 17, 19)
या डी-ब्रॉग्ली तरंगें क्या हैं ? (2017, 18, 22)
या द्रव्य तरंगें क्या हैं? डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्ध्य के लिए सूत्र लिखिए। (2015, 18)
या डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्ध्य लिखिए। द्रव्य तरंगे क्या हैं? (2022, 23)
उत्तर- द्रव्य तरंगें (Matter Waves) – सन् 1922 में डी-ब्रॉग्ली (de-Broglie) ने विचार रखा कि पदार्थ और विकिरण की पारस्परिक क्रिया समझने के लिए कणों को पृथक् रूप में न मानकर तरंग पद्धति से समन्वित माना जाये। उन्होंने बताया कि जब कोई द्रव्य-कण चलता है तो वह भी तरंग’ की भाँति व्यवहार करता है। इस सिद्धान्त का सत्यापन डेवीसन (Davission) और जर्मर (Germer) ने अपने प्रयोगों द्वारा किया।
उन्होंने स्थापित किया कि इलेक्ट्रॉन के किरण पूँज का विवर्तन देखा जा सकता है, जो एक तरंग का गुण है। अतः द्वैती प्रकृति न केवल प्रकाश में होती है बल्कि यह द्रव्य-कणों में भी होती है।
अतः “गतिमान द्रव्य-कणों (इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन आदि) से तरंग सम्बद्ध होती है। इन तरंगों को द्रव्य तरंगें अथवा डी-ब्रॉग्ली तरंगें (de-Broglie’s Waves) कहते हैं। द्रव्य तरंगों की तरंगदैर्ध्य डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्ध्य कहलाती है।”
प्रश्न 61. ‘कार्यफलन‘ तथा ‘देहली आवृत्ति‘ की व्याख्या कीजिए।(2018, 19, 23)
या किसी धातु पृष्ठ के निरोधी विभव का परिवर्तन आपतित विकिरण की आवृत्ति के साथ ग्राफ में दर्शाइए। ‘देहली आवृत्ति‘ की परिभाषा दीजिए। इससे प्लांक नियतांक ज्ञात कीजिए। (2020)
उत्तर- कार्य-फलन– किसी धातु पृष्ठ पर आपतित प्रकाश की आवृत्ति v तथा इससे उत्सर्जित प्रकाश-इलेक्ट्रॉन की अधिकतम गतिज ऊर्जा Ek के बीच ग्राफ खींचने से प्राप्त सरल रेखा को निम्नलिखित समीकरण द्वारा निरूपित किया जा सकता है।
देहली आवृत्ति– यदि हम Ek तथा v के बीच खींचे गये ग्राफ की रेखा को पीछे की ओर बढ़ायें तो यह आवृत्ति-अक्ष को एक बिन्दु v० पर काटती है, तथा ऊर्जा-अक्ष पर अन्तः खण्ड (intercept) – B देती है। इससे यह पता चलता है कि किसी दी हुई धातु की प्लेट से प्रकाश-इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित करने के लिए प्लेट पर डाले जाने वाले प्रकाश की आवृत्ति v० से ऊँची होनी चाहिए। यदि आवृत्ति v० मान से नीचे है तो धातु से कोई भी प्रकाश- इलेक्ट्रॉन नहीं निकलेगा चाहे कितना भी तीव्र तथा कितने भी समय के लिए प्रकाश क्यों न डाला जाए। इसके विपरीत, v० से ऊँची आवृत्ति का मन्द प्रकाश भी इलेक्ट्रॉन उत्सर्जन के लिए पर्याप्त है।
प्रकाश की इस न्यूनतम आवृत्ति को, जो किसी पदार्थ से प्रकाश-इलेक्ट्रॉन का उत्सर्जन कर सके, उस पदार्थ की ‘देहली आवृत्ति’ (threshold frequency) अथवा ‘संस्तब्ध आवृत्ति’ (cut-off frequency) कहते हैं। इसे हम ग्राफ से सीधे पढ़ सकते हैं।
प्रश्न 62. हाइड्रोजन परमाणु के लिए बोर की परिकल्पनाएँ लिखिए। (2014, 16, 17,21)
या हाइड्रोजन परमाणु के लिए बोर की अभिधारणाएँ लिखिए। (2015,20)
या बोर के परमाणविक मॉडल के अभिगृहीतों का उल्लेख कीजिए (2014, 16, 17, 20, 23)
या हाइड्रोजन परमाणु का बोर मॉडल स्पष्ट कीजिए। (2019) (2022)
उत्तर- रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल की कमियों को नील बोर ने प्लांक के क्वाण्टम सिद्धान्त के आधार पर सन् 1913 में दूर किया। इसके लिए उन्होंने निम्नलिखित तीन नये अभिगृहीत (postulate) प्रस्तुत किये –
बोर की परिकल्पनाएँ-
(i) इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर केवल उन्हीं कक्षाओं में घूम सकते हैं जिनके लिए उनका कोणीय संवेग h/27 का पूर्ण गुणज हो
(i) स्थायी कक्षाओं में घूमते समय इलेक्ट्रॉन ऊर्जा का उत्सर्जन नहीं करते। अतः परमाणु का स्थायित्व बना रहता है।
(ii) जब परमाणु को बाहर से ऊर्जा मिलती है तो उसका कोई इलेक्ट्रॉन उसे ग्रहण कर ऊँची कक्षा में चला जाता है।
यह परमाणु की उत्तेजित अवस्था कहलाती है। इलेक्ट्रॉन ऊँची कक्षा में केवल 10-8 सेकण्ड तक ठहर कर तुरन्त वापस किसी भी नीची कक्षा में लौट आता है और लौटते समय दोनों कक्षाओं की ऊर्जा के अन्तर के बराबर ऊर्जा वैद्युत-चुम्बकीय तरंगों के रूप में उत्सर्जित करता है। यदि उत्सर्जित तरंगों की आवृत्ति हो तथा इलेक्ट्रॉन की उच्च कक्षा में ऊर्जा E₂ तथा नीची कक्षा में ऊर्जा E, हो, तो
hv = E2 – E1
यदि उत्सर्जित विकिरण की तरंगदैर्ध्य हो, तो v = C/ λ
अतः C/ λ = ΔΕ/h
अतः ऊर्जा का उत्सर्जन केवल तभी तक होता है जब तक कि कोई इलेक्ट्रॉन किसी निश्चित ऊँची कक्षा से नीची कक्षा में लौटता है।
इस प्रकार परमाणु से केवल कुछ निश्चित आवृत्तियों (तरंगदैर्ध्य) की तरंगें उत्सर्जित होती हैं जो रेखीय स्पेक्ट्रम देती हैं। इस प्रकार परमाणु के बोर मॉडल के आधार पर हाइड्रोजन के स्पेक्ट्रम की व्याख्या की गई।
प्रश्न 63. बन्धन ऊर्जा से क्या तात्पर्य है? यदि प्रोटॉन, न्यूट्रॉन तथा ऐल्फा (a) कणों के द्रव्यमान क्रमशः 1.00728 amu, 1.00867 amu तथा 4.00150 amu हों, तो कण की प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा ज्ञात कीजिए। [1 amu =931 MeV] (2016, 17, 18, 20, 22, 23)
हल- बन्धन ऊर्जा-किसी नाभिक की बन्धन ऊर्जा वह न्यूनतम ऊर्जा है जो नाभिक के न्यूक्लिऑनों को अनन्त दूरी तक अलग-अलग करने के लिए आवश्यक है। प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा- कण हीलियम 2 He4 का नाभिक है। जिसमें दो प्रोटॉन तथा दो न्यूट्रॉन होते हैं।
दो प्रोटॉनों का द्रव्यमान = 2 × 1.00728 = 2.01456 amu
दो न्यूट्रॉनों का द्रव्यमान = 2 × 1.00867 = 2.01734 amu
इनका योग = 4.03190 amu
अतः द्रव्यमान क्षति △m = न्यूक्लिऑनों का द्रव्यमान
a कण का द्रव्यमान = 4.03190 amu -4.00150 amu = 0.03040 amu 1 amu के तुल्य ऊर्जा 931 MeV होती है।
अतः 0.03040 के तुल्य ऊर्जा, AE = 0.03040 × 931 = 28.3 MeV यह a कण की बन्धन ऊर्जा है।
ἁ कण में 4 न्यूक्लिऑन (2 प्रोटॉन व 2 न्यूट्रॉन) होते हैं। अतः प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा
ΔΕ /4 = 28. 3/4 = 7.07 MeV
प्रश्न 64. नाभिकीय संलयन से क्या तात्पर्य है? (2014, 17, 22, 23)
उत्तर- नाभिकीय संलयन (Nuclear Fusion)– दो हल्के नाभिकों के परस्पर संयुक्त होकर भारी नाभिक बनाने की प्रक्रिया को नाभिकीय संलयन कहते हैं। संलयन से प्राप्त नाभिक का द्रव्यमान, संलयन करने वाले मूल नाभिकों के द्रव्यमानों के योग से कम होता है तथा द्रव्यमान के इस अन्तर के तुल्य ऊर्जा इस प्रक्रिया में मुक्त होती है।
उदाहरण के लिए, भारी हाइड्रोजन अथवा ड्यूटीरियम (H²) के दो नाभिकों के संलयन को इस समीकरण द्वारा व्यक्त कर सकते है-
1H² + 1H2 → 1H3 + 1H1 + 4.0 MeV
ट्राइटियम पुनः ड्यूटीरियम के नाभिक से संलयित होकर हीलियम नाभिक का निर्माण करता है।
1H3 + 1H2→ 2He⁴ + on¹ + 17.6MeV (ऊर्जा)
प्रश्न 65. नाभिकीय विखण्डन क्या है? इसे प्रदर्शित करने का एक समीकरण दीजिए। नाभिकीय विखण्डन में ऊर्जा कहाँ से उत्सर्जित होती है? (2015, 17, 23)
उत्तर- नाभिकीय विखण्डन-किसी भारी नाभिक के दो या दो से अधिक हल्के नाभिकों में टूटने की प्रक्रिया को नाभिकीय विखण्डन कहते हैं। इसका रासायनिक समीकरण निम्न प्रकार है-
92U235 + on¹ → 56Ba144 + 36Kr89 + 3on1 + ऊर्जा
नाभिकीय विखण्डन की प्रक्रिया में अपार ऊर्जा उत्पन्न होने का कारण है कि इस प्रक्रिया में प्राप्त नाभिकों तथा न्यूट्रॉनों का द्रव्यमान मूल नाभिक तथा न्यूट्रॉन के द्रव्यमान से कुछ कम होता है, अर्थात् इस प्रक्रिया में कुछ द्रव्यमान की क्षति होती है। यह द्रव्यमान क्षति ही आइन्स्टीन के द्रव्यमान-ऊर्जा सम्बन्ध के अनुसार ऊर्जा के रूप में परिवर्तित होकर प्राप्त होती है।
प्रश्न 66. ऊर्जा बैण्ड के आधार पर चालक, अचालक एवं अर्द्धचालकों में अन्तर स्पष्ट कीजिए। (2017, 18, 19, 22, 23)
उत्तर- चालक (Conductors) – “वे पदार्थ जिनमें वैद्युत आवेश आसानी से प्रवाहित हो सके तथा जिनमें मुक्त इलेक्ट्रॉन बड़ी संख्या में उपस्थित रहते हों, चालक कहलाते हैं।” जैसे-चाँदी, ताँबा, ऐलुमिनियम, ज सोना, पारा इत्यादि। चालकों का प्रतिरोध ताप-गुणांक धनात्मक होता है इसीलिए ताप के बढ़ने पर इनका वैद्युत प्रतिरोध बढ़ता है, परन्तु वैद्युत चालकता कम होती है।
अचालक (Insulators) – “वे पदार्थ जिनमें वैद्युत आवेश कठिनता से प्रवाहित हो तथा जिनमें मुक्त इलेक्ट्रॉन नहीं होते अथवा कम संख्या में होते हैं, अचालक कहलाते हैं।” इन पदार्थों के बाहरी कक्षा के इलेक्ट्रॉन दृढ़तापूर्वक नाभिक से बँधे रहते हैं इसलिए वैद्युत-क्षेत्र लगाने पर इनमें वैद्युत आवेशों का प्रवाह कठिनता से होता है। इनकी प्रतिरोधकता बहुत अधिक अर्थात् लगभग अनन्त होती है; जैसे-लकड़ी, ऐबोनाइट, काँच, अभ्रक आदि।
अर्द्ध-चालक (Semi-conductors) – “वे पदार्थ जिनकी वैद्युत-चालकता चालकों एवं अचालकों के मध्य होती है, अर्द्ध-चालक कहलाते हैं।” जैसे-कार्बन, सिलिकॉन (Silicon) तथा जर्मेनियम अर्द्ध-चालक हैं। ये पदार्थ न तो पूर्ण रूप से चालक ही होते हैं और न ही पूर्ण रूप से अचालक। अर्द्ध-चालकों में बाहरी इलेक्ट्रॉन न तो परमाणु से इतनी दृढ़ता से बँधे होते हैं जितने कि अचालकों में और न इतने ढीले बँधे होते हैं जितने कि चालकों में। इनका प्रतिरोध ताप-गुणांक ऋणात्मक होता है इसीलिए ताप के बढ़ने पर इनका वैद्युत प्रतिरोध घटता है, परन्तु इनकी वैद्युत-चालकता ताप बढ़ने पर बढ़ती है तथा ताप घटने पर घटती है। परम शून्य ताप पर अर्द्ध-चालक एक आदर्श अचालक की भाँति व्यवहार करता है।
प्रश्न 67. मादन (अपमिश्रण) के कारण अर्द्धचालक की चालकता पर पड़ने वाले प्रभाव को समझाइए। (2022, 23)
उत्तर- शुद्ध अर्द्धचालकों की वैद्युत चालकता अति अल्प होती है। परन्तु यदि किसी ऐसे पदार्थ की थोड़ी-सी मात्रा जिसकी संयोजकता 5 अथवा 3 हो, शुद्ध जर्मेनियम (अथवा सिलिकॉन) क्रिस्टल में अपद्रव्य (impurity) के रूप में मिश्रित (अथवा मादित) कर दें, तो अर्द्धचालक की चालकता बढ़ जाती है।
प्रश्न 68. द्वि-अपवर्तन से आप क्या समझते हैं?(2016)
उत्तर- द्वि-अपवर्तन (Double Refraction)- टूरमैलीन, कैलसाइट, क्वार्ट्ज जैसे कुछ क्रिस्टल ऐसे होते हैं कि जब उन पर साधारण प्रकाश (अध्रुवित प्रकाश) की कोई किरण डाली जाती है तो वह क्रिस्टल में प्रवेश करने पर दो अपवर्तित किरणों में बँट जाती है। इस घटना को द्वि-अपवर्तन कहते हैं। इन दो अपवर्तित किरणों में से जो एक किरण अपवर्तन के नियमों का पालन करती है, साधारण किरण (ordinary ray) कहलाती है तथा दूसरी किरण जो अपवर्तन के नियमों का पालन नहीं करती, असाधारण किरण (extra-ordinary ray) कहलाती है। ये दोनों किरणें परस्पर लम्बवत् तलों में समतल ध्रुवित होती हैं।
प्रश्न 69. प्रकाश के विवर्तन से क्या तात्पर्य है? (2020)
उत्तर- जब प्रकाश किसी अवरोध या द्वारक पर आकर किनारों से मुड़ जाता है, तब प्रकाश का इस प्रकार मुड़ना ही प्रकाश का विवर्तन कहलाता है।
प्रश्न 70. लेंस के प्रकाशिक केन्द्र को परिभाषित कीजिए।(2023)
उत्तर- यदि लेन्स पर प्रकाश की कोई किरण इस प्रकार आपतित हो कि लेन्स से अपवर्तित होकर बाहर निकलने पर निर्गत किरण आपतित किरण के समान्तर हो, तो अपवर्तित किरण लेन्स की मुख्य अक्ष को जिस बिन्दु पर काटती है या काटती हुई प्रतीत होती हैं, उसे लेन्स का प्रकाशिक केन्द्र कहते हैं।
प्रश्न 58. स्थिर वैद्युत में गौस की प्रमेय क्या है? (2014, 17, 18, 19, 22, 23)
उत्तर- गौस की प्रमेय (Gauss Theorem)- गौस की प्रमेय वैद्युत क्षेत्र के कारण किसी बन्द पृष्ठ से निर्गत वैद्युत फ्लक्स तथा उस पृष्ठ में परिवर कुल वैद्युत आवेश के बीच सम्बन्ध व्यक्त करती है। इसके अनुसार “किसी वैद्युत-क्षेत्र में स्थित बन्द पृष्ठ से निर्गत सम्पूर्ण वैद्युत-पलक्स का मान परिवद्ध उस पृष्ठ द्वारा परिबद्ध कुल आवेश का (1/६०) गुना होता है।”
प्रश्न 71. विभवमापी की सुग्राहिता से क्या तात्पर्य है? इसे कैसे बढ़ाया जा सकता है? (2016, 22)
उत्तर- विभवमापी की सुग्राहिता का अर्थ है कि जौकी को शून्य विक्षेप स्थिति से थोड़ा-सा खिसकाने पर धारामापी में बहुत अधिक विक्षेप उत्पन्न हो जाये। विभवमापी की सुग्राहिता विभव-प्रवणता के व्युत्क्रमानुपाती होती है। परन्तु विभव-प्रवणता K = V/L (जहाँ V = विभवमापी के तार के सिरों का विभवान्तर), अतः K ᾁ1/L अर्थात् विभवमापी के तार की लम्बाई । बढ़ाने से K का मान कम हो जाएगा; अर्थात् सुग्राहिता बढ़ जाएगी। इस प्रकार विभवमापी की सुग्राहिता में वृद्धि तार की लम्बाई में वृद्धि करके की जा सकती है।
प्रश्न 72. समान्तर-प्लेट संधारित्र की धारिता के लिए व्यंजक का निगमन कीजिए। इसकी धारिता को कैसे बढ़ाया जा सकता है? (2015, 16, 17, 18, 20, 22, 23)
या किसी समान्तर-पट्ट संधारित्र की धारिता का व्यंजक प्राप्त कीजिए, जबकि दोनों प्लेटों के बीच परावैद्युत भरा हो। (2019, 20)
उत्तर- समान्तर-प्लेट संधारित्र की धारिता – एक समान्तर-प्लेट संधारित्र में मुख्यतः धातु की लम्बी व समतल दो प्लेटें X व Y होती हैं जो एक-दूसरे के आमने-सामने थोड़ी दूरी पर दो विद्युतरोधी स्टैण्डों में लगी रहती हैं। इन समान्तर-प्लेटों के बीच वायु के स्थान पर कोई विद्युतरोधी माध्यम (परावैद्युतांक K) भरा है। समतल प्लेटों में से प्रत्येक का क्षेत्रफल A मीटर2 तथा उनके बीच की दूरी d मीटर है। जब प्लेट X को +q आवेश दिया जाता है तो प्रेरण के कारण प्लेट Y पर अन्दर की ओर -q आवेश तथा बाहर की ओर +q आवेश उत्पन्न हो जाता है, चूँकि प्लेट Y पृथ्वी से जुड़ी है; अतः इसके बाहरी तल का +q आवेश पृथ्वी में चला जाएगा। अतः प्लेटों के बीच वैद्युत-क्षेत्र उत्पन्न हो जाएगा और लगभग सभी जगह क्षेत्र की तीव्रता एकसमान होगी।
समान्तर प्लेट संधारित्र की धारिता को निम्नलिखित प्रकार से बढ़ाया जा सकता है-
- प्रयुक्त प्लेटें अधिक क्षेत्रफल की होनी चाहिए।
- प्लेटों के बीच ऐसा माध्यम रखना चाहिए जिसका परावैद्युतांक अधिक हो।
- प्लेटों के बीच की दूरी (d) कम लेनी चाहिए अर्थात् प्लेटें परस्पर समीप रखनी चाहिए।
प्रश्न 73. अनओमीय परिपथ से आप क्या समझते हैं? इसका एक उदाहरण दीजिए। (2019)
या अनओमीय चालक किसे कहते हैं?
या गत्यात्मक प्रतिरोध का अर्थ क्या है?
उत्तर- वे परिपथ (अर्थात् चालक) जिनमें ओम के नियम का पालन नहीं होता है; अर्थात् जिनके सिरों पर आरोपित विभवान्तर V तथा संगत धारा i का अनुपात नियत नहीं रहता है, अनओमीय परिपथ (चालक) कहलाते हैं। ऐसे परिपथों के लिए V तथा i के अनुपात के नियत न रहने का अर्थ है कि इनका वैद्युत प्रतिरोध परिवर्तनीय होता है। अत: इनके प्रतिरोध को गत्यात्मक प्रतिरोध (dynamic resistance) भी कहते हैं।
अनओमीय परिपथ के किसी खण्ड के विभवान्तर में अल्पांश परिवर्तन △V तथा उसके संगत धारा में परिवर्तन △i का अनुपात गत्यात्मक प्रतिरोध के बराबर होता है; अर्थात् गत्यात्मक प्रतिरोध = △V/△i.
उदाहरण-बल्ब का तन्तु तथा डायोड बल्ब ।
प्रश्न 74. किसी तार का प्रतिरोध RQ है। यदि इसे मूल लम्बाई के n गुना खींचा जाता है, तो इस खींचे हुए नये तार का प्रतिरोध क्या होगा?(2019,23)
उत्तर- दिया है, तार का प्रतिरोध = RΩ
तार की प्रारम्भिक लम्बाई = l
तार की अन्तिम लम्बाई = nl
माना, तार का नया प्रतिरोध, R’ = ?
R’ = R(l’/l)2
R’ = R(nl/l)2= Rn²
अतः नये तार का नया प्रतिरोध n² गुना हो जाएगा।
प्रश्न 75. विशिष्ट प्रतिरोध का मात्रक एवं विमा लिखिए। (2015)
उत्तर- मात्रक – ओम-मीटर या ओम-सेमी
विमा सूत्र – [ML3T-3A-2]
प्रश्न 76. धातुओं में इलेक्ट्रॉनों के अनियमित (मुक्त) वेग और उनके अनुगमन वेग में क्या अन्तर है? (2014)
उत्तर- धातुओं में मुक्त इलेक्ट्रॉन बन्द बर्तन में भरी गैस के अणुओं की तरह व्यवहार करते हैं तथा धातु के भीतर स्थित धन आयनों के बीच खाली स्थान में उच्च वेग (105 मी/से) से अनियमित गति करते हैं, यह मुक्त इलेक्ट्रॉनों का वेग है। धातु के सिरों के बीच विभवान्तर होने पर मुक्त इलेक्ट्रॉन अपनी अनियमित गति के होते हुए भी एक निश्चित सूक्ष्म वेग (=10-4 मी/से) से उच्च विभव वाले सिरे की ओर खिसकते हैं, यह अनुगमन वेग है।
धारा घनत्व Class 12 Physics
प्रश्न 77. धारा-घनत्व; से आप क्या समझते हैं? इसका मात्रक M.K.S.A. पद्धति में लिखिए तथा विमा सूत्र बताइए। (2020)
उत्तर- धारा- घनत्व (Current Density) – किसी चालक में किसी बिन्दु पर प्रति एकांक क्षेत्रफल से अभिलम्बवत् गुजरने वाली धारा को उस बिन्दु पर ‘धारा-घनत्व’ कहते हैं। इसे j से प्रदर्शित करते हैं।
यदि किसी चालक में प्रवाहित धारा ⅰ, चालक के अनुप्रस्थ क्षेत्रफल A पर एकसमान रूप से वितरित हो, तब उस क्षेत्रफल के किसी बिन्दु पर धारा-घनत्व j = i/A
M.K.S.A. पद्धति में इसका मात्रक ऐम्पियर प्रति मीटर-2 तथा विमा [MOL-2TA1] है।
प्रश्न 78. चुम्बकीय बल रेखाओं एवं वैद्युत बल रेखाओं में अन्तर लिखिए। (2017)
उत्तर- (i) चुम्बकीय बल रेखाएँ बन्द वक्र में होती हैं जबकि वैद्युत बल रेखाएँ बन्द वक्र में नहीं होती हैं। इसका मुख्य कारण चुम्बकीय ध्रुव का विलगित नहीं होना है जबकि धनावेश एवं ऋणावेश विलगित अवस्था में प्राप्त किए जा सकते हैं।
(ii) चुम्बकीय बल रेखाओं का किसी चुम्बकीय पदार्थ से किसी भी कोण पर निर्गमन अथवा आगमन सम्भव होता है। जबकि वैद्युत बल रेखाओं का किसी चालक पदार्थ से लम्बवत् निर्गमन अथवा आगमन होता है।
प्रश्न 79. चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ परस्पर प्रतिच्छेद नहीं करती है, समझाइए। (2022)
उत्तर- यदि दो क्षेत्र रेखाएँ एक-दूसरे को काटेंगी तो कटान बिन्दु पर दो स्पर्श रेखाएँ खींची जा सकेंगी जिसका अर्थ यह होगा कि कटान बिन्दु पर परिणामी चुम्बकीय क्षेत्र की दो दिशाएँ होंगी जबकि किसी भी बिन्दु पर परिणामी चुम्बकीय क्षेत्र की केवल एक ही दिशा होती है। अतः दो क्षेत्र रेखा एक-दूसरे को कभी नहीं काटेंगी।
प्रश्न 80. दो समान्तर धारावाही चालकों के बीच बल के आधार पर एम्पीयर की परिभाषा दीजिए। (2022)
उत्तर- 1 ऐम्पियर वह वैद्युत धारा है जो कि निर्वात् अथवा वायु में परस्पर 1 मीटर की दूरी पर स्थित दो सीधे, लम्बे व समान्तर चालक तारों में प्रवाहित होने पर, प्रत्येक तार की प्रति मीटर लम्बाई पर 2×10-7 न्यूटन का बल उत्पन्न करती है।
प्रश्न 81. धारामापी को वोल्टमीटर में कैसे बदलते हैं? (2023)
उत्तर- धारामापी के प्रतिरोध को बढ़ाकर, धारामापी को वोल्टमीटर मे बदला जाता है।
प्रश्न 82. शंट से क्या अभिप्राय है? (2023)
उत्तर- शंट विद्युत परिपथ में लगायी जाने वाली एक ऐसी युक्ति है जिसके द्वारा परिपथ की किसी शाखा से होकर जाने वाली धारा को दूसरे मार्ग से भेजना तथा परिपथ की किसी शाखा में बहने वाली धारा का मापन करना होता है। शंट का उपयोग विद्युत परिपथ को अधिक वोल्टेज से होने वाले शॉर्ट सर्किट से सुरक्षित रखने के लिए किया जाता है।
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न Class 12 Physics Top 100 Question With Ans
प्रश्न 83. प्रकाश-वैद्युत उत्सर्जन सम्बन्धी आइन्स्टीन की समीकरण 1/2 mv2max = h(v – vo) की स्थापना कीजिए। (2014, 16, 17, 18, 19)
या क्वाण्टम मॉडल के आधार पर प्रकाश-वैद्युत प्रभाव की व्याख्या कीजिए तथा आइन्स्टीन के प्रकाश-वैद्युत समीकरण को व्युत्पादित कीजिए। (2015,18)
या प्रकाश-वैद्युत प्रभाव से आप क्या समझते हैं? आइन्स्टीन के प्रकाश-वैद्युत समीकरण को व्युत्पन्न कीजिए।(2022)
या आइन्सटीन द्वारा प्रकाश वैद्युत उत्सर्जन की घटना की व्याख्या कीजिए तथा प्रकाश-वैद्युत समीकरण व्युत्पादित कीजिए।
या प्रकाश-वैद्युत उत्सर्जन सम्बन्धी आइन्स्टीन की समीकरण को व्युत्पन्न कीजिए। (2017)
या प्रकाश वैद्युत उत्सर्जन में उत्सर्जित फोटो-इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम ऊर्जा का समीकरण व्युत्पन्न कीजिए। (2015, 17, 20)
या प्रकाश-विद्युत प्रभाव से क्या समझते हैं? आइंस्टीन का प्रकाश- विद्युत समीकरण निगमित कीजिए।(2019)
उत्तर – प्रकाश-वैद्युत प्रभाव (Photoelectric Effect)
जब किसी धातु पर उच्च आवृत्ति का प्रकाश (जैसे-पराबैंगनी विकिरण) डाला जाता है तो उसकी सतह से इलेक्ट्रॉन निकलने लगते हैं। “धातुओं पर प्रकाश के आपतित होने से उनकी सतह से इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन (emission) की घटना को प्रकाश-वैद्युत प्रभाव (photoelectric effect) कहते हैं।” प्रकाश-वैद्युत प्रभाव की घटना में उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों को प्रकाश-इलेक्ट्रॉन अथवा फोटो- इलेक्ट्रॉन (photoelectron) तथा इन इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह के कारण उत्पन्न वैद्युत धारा को प्रकाश-वैद्युत धारा (photoelectric current) कहते हैं।
आइन्सटीन की प्रकाश-वैद्युत समीकरण (Einstien’s Photoelectric Equation)
वैज्ञानिक आइन्सटीन ने प्रकाश-वैद्युत प्रभाव की व्याख्या प्रकाश के क्वाण्टम मॉडल के आधार पर इस प्रकार दी। जब कोई फोटॉन धातु की प्लेट पर गिरता है तो वह अपनी ‘समस्त ऊर्जा’ धातु के भीतर उपस्थित इलेक्ट्रॉनों में से किसी एक ही इलेक्ट्रॉन को स्थानान्तरित (transfer) कर देता है तथा ऊर्जा का कुछ भाग इलेक्ट्रॉन को धातु के अन्दर से बाहर निकालने में व्यय हो जाता है ।
धातु का कार्य-फलन कहलाता है तथा शेष ऊर्जा उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन को उसकी गतिज ऊर्जा के रूप में प्राप्त हो जाती है जिससे इलेक्ट्रॉन धातु पृष्ठ से उत्सर्जित हो जाता है। यही प्रकाश-वैद्युत प्रभाव है। चूँकि सभी इलेक्ट्रॉन धातु की सतह से ही उत्सर्जित नहीं होते; अतः धातु से विभिन्न ऊर्जाओं के इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होते हैं; क्योंकि जो इलेक्ट्रॉन धातु के भीतर से निकलकर सतह पर पहुँचते हैं वे सतह तक आने में धन आयनों व परमाणुओं से टकराते हैं; जिससे वे कुछ ऊर्जा खो देते हैं। अतः जो इलेक्ट्रॉन धातु की सतह से उत्सर्जित होते हैं।
उनकी गतिज ऊर्जा अपेक्षाकृत अधिक होती है; क्योंकि उनकी ऊर्जा टकराने में नष्ट नहीं होती है। इस प्रकार धातु की ऊपरी सतह से उत्सर्जित प्रकाश इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा अधिकतम होती है। माना किसी धातु की सतह से उत्सर्जित किसी प्रकाश इलेक्ट्रॉन की अधिकतम गतिज ऊर्जा Ek तथा इसको धातु के अन्दर से बाहर सतह पर निकालने के लिए आवश्यक ऊर्जा W है। यहाँ W धातु का कार्य-फलन होगा। अतः आइन्सटीन द्वारा दी गयी प्रकाश-वैद्युत उत्सर्जन की उपर्युक्त व्याख्या के अनुसार इन दोनों प्रकार की ऊर्जाओं का योग ही धातु के अन्दर सतह के निकट इलेक्ट्रॉन द्वारा अवशोषित फोटॉन की ऊर्जा hv के बराबर होगा।
Ek + W = hv …(1)
अथवा Ek = hv – W
समीकरण (1) से स्पष्ट है कि यदि प्रकाश फोटॉन की ऊर्जा hv कार्य-फलन W के बराबर है तो धातु की सतह से कोई भी इलेक्ट्रॉन नहीं निकलेगा। यदि दी हुई धातु के लिए देहली आवृत्ति v० है तो इस आवृत्ति का फोटॉन, इलेक्ट्रॉन को धातु की सतह तक लाने में ही समर्थ होगा, क्योंकि ऐसे फोटॉन की ऊर्जा hvo इलेक्ट्रॉन को धातु की सतह तक लाने में ही व्यय हो जाएगी। अतः सतह पर इसका वेग शून्य होगा, अर्थात् इस फोटॉन की ऊर्जा hvo धातु के कार्य-फलन के बराबर होगी। अतः W = hvo W का मान समी० (1) में रखने पर
Ek = hv – hvo
अथवा Ek = h(v-vo) …(2)
यदि धातु की सतह पर निकलने वाले इलेक्ट्रॉन का अधिकतम वेग Vmax तो इसकी अधिकतम गतिज ऊर्जा
Ek = 1 /2 mvmax2 है, 2 होगी | Ek का यह मान उपर्युक्त समी० (2) में रखने पर,
1/ 2 mvmax2 = h(v-vo) ……..(3)
इस समीकरण को ‘आइन्सटीन की प्रकाश-वैद्युत समीकरण‘ (Einstien’s photoelectric equation) कहते हैं।
प्रश्न 84. प्रकाश-वैद्युत प्रभाव के नियम लिखिए। या प्रकाश-वैद्युत उत्सर्जन के नियम लिखिए। (2015, 17, 18, 19, 22)
उत्तर- प्रकाश-वैद्युत प्रभाव के नियम-वैज्ञानिक लेनार्ड तथा मिलीकन ने प्रकाश-वैद्युत प्रभाव के सम्बन्ध में किये गये प्रयोगों से प्राप्त प्रेक्षणों के आधार पर कुछ नियम दिये जो प्रकाश-वैद्युत प्रभाव (ऊष्मा उत्सर्जन) के नियम कहलाते हैं। प्रकाश-वैद्युत प्रभाव के नियम निम्नलिखित हैं-
- किसी धातु की सतह से प्रकाश- इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन की दर धातु की सतह पर गिरने वाले प्रकाश की तीव्रता के अनुक्रमानुपाती होती है।
- उत्सर्जित प्रकाश- इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा प्रकाश की तीव्रता पर निर्भर नहीं करती।
- प्रकाश-इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा प्रकाश की आवृत्ति के बढ़ने पर बढ़ती है।
- यदि आपतित प्रकाश की आवृत्ति एक न्यूनतम मान से कम है तो धातु से कोई भी प्रकाश-इलेक्ट्रॉन नहीं निकलता। यह न्यूनतम आवृत्ति
(देहली आवृत्ति) भिन्न-भिन्न धातुओं के लिए भिन्न-भिन्न होती है। (v) प्रकाश के धातु की सतह पर गिरते ही इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होने लगते हैं, अर्थात् प्रकाश के सतह पर गिरने तथा इलेक्ट्रॉन के सतह से बाहर निकलने के बीच कोई समय-पश्चता (time-lag) नहीं होती, चाहे प्रकाश की तीव्रता कितनी भी क्यों न हो।
प्रश्न 85. चुम्बकत्व के परमाणवीय मॉडल के आधार पर लौहचुम्बकत्व की व्याख्या कीजिए।
या डोमेन सिद्धान्त के आधार पर लौहचुम्बकत्व की व्याख्या कीजिए। (2017)
या अनुचुम्बकीय तथा प्रतिचुम्बकीय पदार्थों के परमाणुओं में क्या अन्तर होता है? (2014, 18)
या अनुचुम्बकीय तथा प्रतिचुम्बकीय पदार्थों में क्या अन्तर होता है? परमाणु मॉडल के आधार पर समझाइए । (2015)
या पदार्थों का उनके चुम्बकीय व्यवहार के आधार पर वर्गीकरण कीजिए। प्रत्येक वर्ग की प्रमुख विशेषताओं की व्याख्या कीजिए। (2016)
या चुम्बकत्व के परमाणवीय मॉडल के आधार पर प्रतिचुम्बकत्व की व्याख्या कीजिए। (2018)
या प्रतिचुम्बकीय तथा अनुचुम्बकीय पदार्थों में परिणामी चुम्बकीय आपूर्ण क्रमशः शून्य एवं अशून्य होता है, क्यों? चुम्बकत्व की परमाण्वीय मॉडल के आधार पर अनुचुम्बकत्व की व्याख्या कीजिए। (2018)
उत्तर- सन् 1846 में फैराडे ने देखा कि सभी पदार्थों में चुम्बकत्व के गुण पाए जाते हैं। उसने अनेक पदार्थों को चुम्बकीय क्षेत्र में रखकर उनके चुम्बकीय व्यवहारों का अध्ययन किया तथा इस आधार पर पदार्थों को निम्न तीन वर्गों में विभाजित किया-
प्रतियुम्बकीय पदार्थ (Diamagnetic Substances)
कुछ पदार्थ चुम्बकीय क्षेत्र में रखे जाने पर क्षेत्र की विपरीत दिशा में क्षीण चुम्बकत्व प्राप्त कर लेते हैं। इन्हें प्रतिचुम्बकीय पदार्थ कहते हैं तथा इनके इस गुण को ‘प्रतियुम्बकत्व’ कहते हैं। बिस्मथ, पेण्टीमनी, सोना, पानी, ऐल्कोहॉल, जस्ता, ताँबा, चाँदी, हीरा, नमक, पारा इत्यादि प्रतिचुम्बकीय पदार्थ है।
प्रतिचुम्बकत्व की व्याख्या
प्रतिचुम्बकत्व का गुण प्रायः उन पदार्थों के अणुओं अथवा परमाणुओं में पाया जाता है जिनमें इलेक्ट्रॉनों की संख्या सम (even) होती है तथा दो-दो इलेक्ट्रॉन मिलकर युग्म बना लेते हैं।
प्रत्येक युग्म में एक इलेक्ट्रॉन का चक्रण दूसरे इलेक्ट्रॉन के चक्रण की विपरीत दिशा में होता है, जिससे ये एक-दूसरे के चुम्बकीय आघूर्ण को निरस्त कर देते हैं। अतः प्रतिचुम्बकीय पदार्थ के परमाणु का नेट चुम्बकीय आपूर्ण शून्य होता है। जब ऐसे पदार्थ को किसी बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाता है तो युग्म के एक इलेक्ट्रॉन का चक्रण चुम्बक धीमा तथा दूसरे का त्वरित हो जाता है। अब युग्म के इलेक्ट्रॉन एक-दूसरे के चुम्बकीय प्रभाव को निरस्त नहीं कर पाते और परमाणु में चुम्बकीय आघूर्ण प्रेरित हो जाता है, जिसकी दिशा बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के विपरीत होती है; अर्थात् पदार्थ बाह्य क्षेत्र की विपरीत दिशा में चुम्बकित हो जाता है। ताप के बदलने पर इन पदार्थों के प्रतिचुम्बकत्व गुण पर कोई प्रभाव नहीं होता।
अनुचुम्बकीय पदार्थ (Paramagnetic Substances)
कुछ पदार्थ चुम्बकीय क्षेत्र में रखे जाने पर क्षेत्र की दिशा में क्षीण चुम्बकत्व प्राप्त कर लेते हैं, इन्हें अनुचुम्बकीय पदार्थ कहते हैं तथा इनके इस गुण को ‘अनुचुम्बकत्त्व’ कहते हैं। प्लैटिनम, ऐलुमिनियम, सोडियम, क्रोमियम, मैंगनीज, कॉपर सल्फेट इत्यादि अनुचुम्बकीय पदार्थ है।
अनुचुम्बकत्व की व्याख्या-अनुचुम्बकत्व का गुण उन पदार्थों में पाया जाता है जिनके परमाणुओं या अणुओं में कुछ ऐसे आधिक्य इलेक्ट्रॉन होते हैं जिनका चक्रण एक ही दिशा में होता है। अतः प्रत्येक परमाणु में स्थायी चुम्बकीय आपूर्ण होता है और वह एक सूक्ष्म दण्ड चुम्बक की भांति व्यवहार करता है, जिसे ‘परमाणवीय चुम्बक’ कहते हैं। परन्तु किसी बाहा चुम्बकीय क्षेत्र को अनुपस्थिति में ये पदार्थ कोई चुम्बकीय प्रभाव नहीं दिखाते। इसका कारण परमाणवीय चुम्बकों का अनियमित रूप से अभिविन्यासित (randomly oriented) होना है। बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र में रखने पर प्रत्येक परमाणवीय चुम्बक पर एक बल-आघूर्ण कार्य करता है जिससे ये क्षेत्र की दिशा में संरेखित हो जाते हैं। इस प्रकार पूरा पदार्थ क्षेत्र की दिशा में चुम्बकीय आघूर्ण प्राप्त कर लेता है; अर्थात् क्षेत्र की दिशा में चुम्बकित हो जाता है ।
ऊष्मीय विक्षोभ के कारण चुम्बकीय संरेखण कम होता है, जिससे अनुचुम्बकीय पदार्थों में चुम्बकन बहुत कम हो पाता है। बाह्य क्षेत्र की तीव्रता बढ़ाने पर अथवा ताप घटाने पर चुम्बकन बढ़ जाता है।
लौहचुम्बकीय पदार्थ (Ferromagnetic Substances)
कुछ पदार्थ चुम्बकीय क्षेत्र में रखे जाने पर क्षेत्र की दिशा में प्रबल रूप से चुम्बकित हो जाते हैं, इन्हें लौहचुम्बकीय पदार्थ कहते हैं। लोहा, कोबाल्ट, निकिल तथा मैग्नेटाइट (Fe3O4) इत्यादि लौहचुम्बकीय पदार्थ है।
लौहचुम्बकत्व की व्याख्या (डोमेन सिद्धान्त)
अनुचुम्बकत्व तथा लौहचुम्बकत्व में केवल तीव्रता का अन्तर होता है। वास्तव में लौहचुम्बकीय पदार्थ ऐसे अनुचुम्बकीय पदार्थ है, जिनका चुम्बकीय क्षेत्र में चुम्बकन अत्यन्त तीव्र होता है। लौहचुम्बकीय पदार्थों का भी प्रत्येक परमाणु एक चुम्बक होता है और यह एक स्थायी चुम्बकीय आघूर्ण रखता है परन्तु लौहचुम्बकीय पदार्थों के परमाणुओं की कुछ अन्योन्य क्रियाओं के कारण पदार्थों के भीतर परमाणुओं के असंख्य अतिसूक्ष्म आकार के प्रभावी क्षेत्र बन जाते हैं, जिन्हें डोमेन कहते हैं। प्रत्येक डोमेन में 107 से 1021 तक परमाणु होते हैं।
जिनकी चुम्बकीय अशें एक ही दिशा में संरेखित होती है (परन्तु पास वाले डोमेनों के परमाणुओं से भिन्न दिशा में)। इस प्रकार चुम्बकीय क्षेत्र की अनुपस्थिति में भी प्रत्येक डोमेन चुम्बकीय संतृप्तता की स्थिति में होता है। परन्तु परिणामी चुम्बकीय आघूर्ण शून्य ही रहता है ।
लौहचुम्बकीय पदार्थों को किसी बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र में रखने पर पदार्थ का परिणामी चुम्बकीय आघूर्ण निम्नलिखित दो प्रकार से बढ़ सकता है-
- डोमेन की परिसीमाओं के विस्थापन द्वारा- बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा में संरेखित डोमेनों के आकार में वृद्धि होती है, जबकि अन्य दिशाओं में अभिविन्यस्त डोमेनों के आकार छोटे हो जाते हैं। जब बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र दुर्बल हो जाता है तो लौहचुम्बकीय पदार्थों का चुम्बकन प्रायः डोमेनों की परिसीमाओं के विस्थापन द्वारा होता है। इस स्थिति में चुम्बकन की क्रिया उत्क्रमणीय होती है; अर्थात् चुम्बकीय क्षेत्र हटा लेने पर डोमेन अपनी पूर्वावस्था में वापस आ जाते हैं। अतः पदार्थ पूर्णतः विचुम्बकित हो जाता है।
- डोमेनों के घूर्णन द्वारा – डोमेन इस प्रकार घूम जाते हैं कि इनके 2 चुम्बकीय आघूर्ण बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा में हो जाते हैं जिससे प्रबल चुम्बकत्व प्राप्त हो जाता है । बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र के दुर्बल होने पर इन पदार्थों में चुम्बकन डोमेनों की परिसीमाओं के विस्थापन द्वारा होता है। परन्तु प्रबल बाड़ा चुम्बकीय क्षेत्र में इन पदार्थों का चुम्बकन डोमेनों के घूर्णन द्वारा होता है। बाड़ा क्षेत्र यदि क्षीण है, तो उसे हटा लेने पर डोमेन अपनी मूल स्थितियों में आ जाते हैं।
प्रश्न 86. ट्रांसफॉर्मर की रचना तथा कार्यविधि का वर्णन कीजिए। इसमें पटलित लौह क्रोड का क्या महत्त्व है?(2017, 18, 20, 22)
या ट्रांसफॉर्मर का नामांकित चित्र बनाइए तथा उसके परिणमन अनुपात का सूत्र व्युत्पादित कीजिए।
या ट्रांसफॉर्मर का सिद्धान्त क्या होता है? उच्चायी तथा अपचायी ट्रांसफॉर्मर में अन्तर उल्लेखित कीजिए। ट्रांसफॉर्मर में ऊर्जा क्षय के कारणों का उल्लेख कीजिए। (2018, 19, 20, 23)
उत्तर- ट्रांसफॉर्मर (Transformer)- अन्योन्य प्रेरण (mutual induction) के सिद्धान्त पर आधारित यह एक ऐसी युक्ति है जिससे प्रत्यावर्ती धारा के विभव को कम अथवा अधिक किया जाता है। ट्रांसफॉर्मर केवल प्रत्यावर्ती धारा या विभव को ही परिवर्तित करने के काम आते हैं, दिष्ट धारा या विभव के परिवर्तन में नहीं। ये दो प्रकार के होते हैं-
(i) उच्चायी ट्रांसफॉर्मर (Step-up Transformer) – इनके द्वारा कम विभव वाली प्रबल प्रत्यावर्ती धारा को ऊँचे विभव वाली निर्बल धारा में बदला जाता है।
(ii) अपचायी ट्रांसफॉर्मर (Step-down Transformer) – इनके द्वारा ऊँचे विभव वाली निर्बल प्रत्यावर्ती धारा को कम विभव वाली प्रबल धारा में बदला जाता है।
रचना- इसमें कच्चे लोहे की आयताकार गोलाकार मुड़ी हुई पत्तियाँ एक पटलित क्रोड (laminated core) के रूप में होती हैं। ये पत्तियाँ एक-दूसरे के ऊपर वार्निश से जोड़ दी जाती हैं जिससे कि ये एक-दूसरे से पृथक्कृत रहें। फलतः क्रोड में कम भँवर धाराएँ उत्पन्न होती हैं और वैद्युत ऊर्जा का हास घट जाता है। इस क्रोड पर ताँबे के तार की दो कुण्डलियाँ इस प्रकार लपेटी जाती हैं कि वे एक-दूसरे से तथा लोहे की क्रोड से पृथक्कृत रहें [चित्र (a)] इनमें से एक पर ताँबे के मोटे तार के कम फेरे होते हैं तथा दूसरी में ताँबे के पतले तार के अधिक फेरे होते हैं।
इनमें एक को ‘प्राथमिक कुण्डली’ (Primary coil) और दूसरी को ‘द्वितीयक कुण्डली’ (Secondary coil) कहते हैं। उच्चायी ट्रांसफॉर्मर में मोटे तार की कम फेरों वाली प्राथमिक कुण्डली होती है – और पतले तार की अधिक फेरों वाली कुण्डली द्वितीयक कुण्डली होती है, अपचायी ट्रांसफॉर्मर में इसके विपरीत होता है ।
कार्यविधि- जिस वि० वा० बल को परिवर्तित करना होता है, उसे सदैव प्राथमिक कुण्डली से जोड़ते हैं। जब प्राथमिक कुण्डली में प्रत्यावर्ती धारा प्रवाहित होती है तो धारा के प्रत्येक चक्कर में क्रोड एक बार एक दिशा में चुम्बकित होती है तथा दूसरी बार दूसरी दिशा में। अतः क्रोड में एक ‘परिवर्ती’ चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है।
इस प्रकार प्राथमिक कुण्डली की वैद्युत ऊर्जा का क्रोड में चुम्बकीय ऊर्जा के रूप में स्थानान्तरण हो जाता है। चूँकि द्वितीयक कुण्डली इस क्रोड पर लिपटी रहती है; अतः क्रोड के बार-बार चुम्बकन तथा विचुम्बकन होने की क्रिया से इस कुण्डली से बद्ध चुम्बकीय-फ्लक्स में लगातार परिवर्तन होता रहता है।
इस प्रकार वैद्युत-चुम्बकीय प्रेरण के प्रभाव से द्वितीयक कुण्डली में उसी आवृत्ति का प्रत्यावर्ती वि० वा० बल उत्पन्न हो जाता है। इस प्रेरित वि० वा० बल का मान दोनों कुण्डलियों के फेरों की संख्या के अनुपात तथा प्राथमिक कुण्डली को दिये गये वि० वा० बल पर निर्भर करता है।
माना कि प्राथमिक एवं द्वितीयक कुण्डलियों में तार के फेरों की संख्या क्रमशः Np और N₨ हैं। मान लो कि चुम्बकीय फ्लक्स का कोई क्षरण (leakage) नहीं होता है जिससे कि दोनों कुण्डलियों के प्रत्येक फेरे में से समान फ्लक्स गुजरता है। माना कि किसी क्षण कुण्डलियों के प्रत्येक फेरे से बद्ध फ्लक्स का मान क है। तब फैराडे के वैद्युत-चुम्बकीय प्रेरण के नियमानुसार प्राथमिक कुण्डली में उत्पन्न प्रेरित वि० वा० बल,
ep = -Np ΔΦ / Δt
तथा द्वितीयक कुण्डली में प्रेरित वि० वा० बल,
es = -Ns ΔΦ / Δt
es /ep = Ns / Np
यदि प्राथमिक परिपथ का प्रतिरोध नगण्य हो तथा ऊर्जा का कोई क्षय न हो तो प्राथमिक कुण्डली में प्रेरित विध वाण य हो तथका मान प्राथमिक परिपथ में लगाये गये विभवान्तर के तुल्य (लबला होगा। इसके अतिरिक्त यदि द्वितीयक परिपथ खुला हो (अर्थात प्रतिरोध अनन्त हो) तो द्वितीयक कुण्डली के सिरों के बीच विभवान्तर Vs उसमें उत्पन्न प्रेरित वि० वा० बल es के तुल्य होगा। इन आदर्श परिस्थितियों में
Vs/ Vp = es / ep = Ns/ Np = r
जहाँ r को’ परिणमन-अनुपात’ (transformation ratio) कहते हैं। उच्चायी ट्रांसफॉर्मर के लिए। का मान 1 से अधिक तथा अपचायी ट्रांसफॉर्मर के लिए 1 से कम होता है। यदि ट्रांसफॉर्मर द्वारा वैद्युत विभव को बढ़ाना है तो विद्युत वाहक बल के स्रोत- को उस कुण्डली से सम्बन्धित करते हैं जिसके तार मोटे हैं और जिसमें फेरों की संख्या कम होती है।
उपर्युक्त सूत्र से स्पष्ट है कि इस दशा में Vs, Vp से बड़ा होगा; अर्थात् का मान 1 से अधिक होगा। वैद्युत-विभव को कम करने के लिए विद्युत वाहक बल के स्रोत को पतले तार से बनी अधिक फेरों वाली कुण्डली से जोड़ते हैं। स्पष्ट है कि इस दशा में Vs का मान Vp से कम होगा जिसके फलस्वरूप का मान 1 से कम होगा।
ट्रांसफॉर्मर में पटलित लौह क्रोड का महत्त्व लौह क्रोड का प्रयोग करने पर दोनों कुण्डलियों के बीच चुम्बकीय फ्लक्स क्षय कम हो जाता है अथवा ट्रांसफॉर्मर का कार्य क्रोड के बार-बार चुम्बकित तथा विचुम्बकित होने से सम्पन्न होता है। ट्रांसफॉर्मर में ऊर्जा क्षय के कारण-व्यवहार में द्वितीयक कुण्डली से प्राप्त ऊर्जा, प्राथमिक कुण्डली को दी गई ऊर्जा से कुछ कम होती है।
इसका कारण यह है कि ट्रान्सफार्मर में अनेक प्रकार से ऊर्जा का क्षय होता है। इसके निम्नलिखित कारण हैं- (i) ताँबे में हानि-जब प्राथमिक तथा द्वितीयक कुण्डलियों में प्रत्यावर्ती धारा प्रवाहित होती है तो कुछ ऊर्जा ताँबे के फेरों में ऊष्मा के रूप में क्षय हो जाती है।
(ii) भँवर-धाराओं में हानि ट्रान्सफार्मर की लोहे की क्रोड में भँवर धाराएँ स्थापित होने से भी कुछ ऊर्जा ऊष्मा के रूप में क्षय हो जाती है।
(iii) शैथिल्य हानि-प्रत्यावर्ती धारा के प्रत्येक चक्र में लोहे की क्रोड चुम्बकित तथा विचुम्बकित होती है। इस प्रक्रिया में भी ऊर्जा ऊष्मा के रूप में क्षय होती है।
(iv) फ्लक्स हानि-प्राथमिक तथा द्वितीयक कुण्डिलयों का युग्मन कभी भी पूर्ण नहीं होता। अतः प्राथमिक में जनित सम्पूर्ण चुम्बकीय फ्लक्स द्वितीयक फ्लक्स से नहीं गुजरता। इसके कारण फ्लक्स हानि होती है।
प्रश्न 87. मैक्सवेल के विद्युत चुम्बकीय तरंग सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए। (2015, 17, 18, 19)
या विद्युत-चुम्बकीय तरंगें क्या हैं? (2017, 18, 22)
विद्युत-चुम्बकीय तरंगों की चार विशेषताओं (अभिलक्षण) का उल्लेख कीजिए। (2014, 15, 17, 18, 21, 22, 23)
विद्युत चुम्बकीय तरंगों के किन्हीं दो विशिष्ट गुणों को लिखिए।
या मैक्सवेल का प्रकाश के सम्बन्ध में वैद्युत चुम्बकीय तरंग सिद्धान्त लिखिए। (2017,18)
उत्तर- मैक्सवेल का प्रकाश का विद्युत-चुम्बकीय तरंग सिद्धान्त (Maxwell’s electromagnetic wave theory of light) – ब्रिटिश वैज्ञानिक मैक्सवेल ने सन् 1865 में केवल गणितीय सूत्रों के आधार पर यह प्रमाणित किया कि जब कभी किसी वैद्युत परिपथ में वैद्युत धारा बहुत उच्च आवृत्ति से बदलती है (अर्थात् परिपथ में उच्च आवृत्ति के वैद्युत दोलन होते हैं) तो उस परिपथ से ऊर्जा, तरंगों के रूप में चारों ओर को प्रसारित होने लगती है। इन तरंगों को ‘विद्युत-चुम्बकीय तरंगें’ कहते हैं। इन तरंगों में वैद्युत क्षेत्र E तथा चुम्बकीय क्षेत्र B परस्पर लम्बवत् तथा तरंग के संचरण की दिशा के भी लम्बवत् होते हैं।
इन तरंगों के संचरण के लिए माध्यम का होना आवश्यक नहीं है; अर्थात् विद्युत-चुम्बकीय तरंगें निर्वात् में होकर चल सकती हैं। मैक्सवेल ने गणनाओं द्वारा यह स्थापित किया कि विद्युत-चुम्बकीय तरंगों की चाल 3.0 × 108 मीटर/सेकण्ड है जो कि निर्वात् में प्रकाश की चाल है। इस आधार पर मैक्सवेल ने अपना यह मत दिया कि प्रकाश विद्युत-चुम्बकीय तरंगों के रूप में संचरित होता है।
विद्युत-चुम्बकीय तरंगों के अभिलक्षण-विद्युत-चुम्बकीय तरंगों के अभिलक्षण निम्नलिखित हैं-
- विद्युत-चुम्बकीय तरंगें त्वरित आवेश द्वारा उत्पन्न की जाती हैं।
- इन तरंगों के संचरण के लिए किसी पदार्थिक माध्यम की आवश्यकता नहीं होती।
- ये तरंगें निर्वात् अथवा मुक्त स्थान में v वेग से चलती हैं जिसका मान प्रकाश की चाल के बराबर होता है। (iv) वैद्युत तथा चुम्बकीय क्षेत्रों के परिवर्तनों की दिशाएँ परस्पर लम्बवत् होती हैं तथा संचरण की दिशा के भी लम्बवत् होती हैं। इस प्रकार, विद्युत-चुम्बकीय तरंगों की प्रकृति अनुप्रस्थ होती है।
- वैद्युत तथा चुम्बकीय क्षेत्रों में परिवर्तन साथ-साथ होते हैं तथा क्षेत्रों के महत्तम मान Eo व Bo एक ही स्थान पर तथा एक ही समय होते हैं।
- निर्वात् में विद्युत-चुम्बकीय तरंगों के वैद्युत तथा चुम्बकीय क्षेत्रों के परिमाणों का सम्बन्ध E/B = v = c होता है।
- वैद्युत-चुम्बकीय तरंगों में ऊर्जा, औसतन वैद्युत तथा चुम्बकीय क्षेत्रों में बराबर-बराबर बँटी होती है।
- निर्वात् में, औसत वैद्युत ऊर्जा घनत्व 1 / 2 €0 E² तथा औसत चुम्बकीय ऊर्जा घनत्व B2 / 2μο होता है।
- विद्युत-चुम्बकीय तरंग में प्रकाशिक प्रभाव वैद्युत क्षेत्र वेक्टर के कारण होता है।
पराबैंगनी किरणें – दृश्य विकिरण के बैंगनी रंग से कम तरंगदैर्ध्य की (10-8 मी से 4 × 10-7 मी तक) किरणें पराबैंगनी किरणें कहलाती हैं।
अवरक्त किरणें – दृश्य विकिरण के लाल रंग से अधिक तरंगदैर्ध्य (7.8 x 10-7 मी से 15 x 10-3 मी तक की किरणे अवरक्त किरणें कहलाती हैं।
अपवर्तनी खगोलीय दूरदर्शी का किरण आरेख Class 12 Physics
प्रश्न 88. एक अपवर्तनी खगोलीय दूरदर्शी का किरण आरेख खींचिए जब अन्तिम प्रतिबिम्ब स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर बनता है। इसकी आवर्धन क्षमता के लिए व्यंजक भी स्थापित कीजिए। (NCERT) (2016, 17, 18, 19, 22, 23)
उत्तर- खगोलीय दूरदर्शी (Astronomical Telescope)
खगोलीय दूरदर्शी एक ऐसा प्रकाशिक यन्त्र है जिसके द्वारा बना दूर स्थित वस्तु का प्रतिबिम्ब का आँख पर बड़ा दर्शन कोण बनाता है जिससे कि वह वस्तु आँख को बड़ी दिखायी पड़ती है।
रचना
इसमें धातु की एक लम्बी बेलनाकार नली होती है जिसके एक सिरे पर बड़ी फोकस दूरी तथा बड़े द्वारक का अवर्णक उत्तल लेन्स लगा होता है, जिसे ‘अभिदृश्यक लेन्स’ कहते हैं। नली के दूसरे सिरे पर एक अन्य छोटी नली फिट होती है जो दन्तुर दण्ड-चक्र (रैंक-पिनयन) व्यवस्था द्वारा बड़ी नली में आगे-पीछे खिसकाई जा सकती है। छोटी नली के बाहरी सिरे पर एक छोटी फोकस दूरी तथा छोटे द्वारक का अवर्णक उत्तल लेन्स लगा रहता है जिसे अभिनेत्र लेन्स अथवा नेत्रिका कहते हैं। नेत्रिका के फोकस पर क्रॉस-तार लगे रहते हैं।
समायोजन
सबसे पहले नेत्रिका को छोटी नली में आगे-पीछे खिसकाकर क्रॉस-तार पर फोकस कर लेते हैं। फिर जिस वस्तु को देखना हो उसकी ओर अभिदृश्यक लेन्स को दिष्ट कर देते हैं। दन्तुर-दण्ड-चक्र व्यवस्था द्वारा छोटी नली को लम्बी नली में आगे-पीछे खिसकाकर अभिदृश्यक लेन्स की क्रॉस-तार से दूरी इस प्रकार समायोजित करते हैं कि वस्तु के प्रतिबिम्ब और क्रॉस-तार में लम्बन न रहे। इस स्थिति में वस्तु का स्पष्ट प्रतिबिम्ब दिखाई देगा। यह प्रतिबिम्ब लेन्सों द्वारा प्रकाश के अपवर्तन से बनता है। अतः यह दूरदर्शी ‘अपवर्तक’ दूरदर्शी है।
प्रतिबिम्ब का बनना
दूरदर्शी का अभिदृश्यक लेन्स तथा नेत्रिका E दिखाये गये हैं। AB एक दूर स्थित वस्तु है जिसका A सिरा दूरदर्शी की अक्ष पर है। लेन्स के द्वारा AB का वास्तविक, उल्टा व छोटा प्रतिबिम्ब A’B’, लेन्स के द्वितीय फोकस F० पर बनता है। यह प्रतिबिम्ब नेत्रिका E के प्रथम फोकस Fe’ के भीतर है तथा नेत्रिका के लिए वस्तु का कार्य करता है। अतः नेत्रिका, A’B’ का आभासी, सीधा तथा बड़ा प्रतिबिम्ब A “B” बनाती है। B” की स्थिति ज्ञात करने के लिए, B’ से दो विछिन्न किरण………ली गई है। एक किरण जो E के प्रकाशिक-केन्द्र में से जाती है, सीधी चली जाती है तथा दूसरी किरण जो मुख्य अक्ष से समान्तर ली गई है, E के दूसरे फोकस Fo से होकर जाती है। ये किरणे पीछे बढ़ाने पर बिन्दु B” पर मिलती हैं।
आवर्धन-क्षमता-दूरदर्शी की आवर्धन-क्षमता (कोणीय आवर्धन) M= अन्तिम प्रतिबिम्ब द्वारा आँख पर बना दर्शन कोण वस्तु द्वारा आँख पर बना दर्शन कोण जबकि वस्तु अपनी वास्तविक स्थिति में हो चूँकि आँख नेत्रिका E के समीप है, अतः अन्तिम प्रतिबिम्ब A”B” द्वारा नेत्रिका पर बने कोण ३ को ही A”B” द्वारा आँख पर बना कोण मान सकते हैं। इसी स प्रकार चूँकि वस्तु AB, दूरदर्शी से बहुत दूर है, अतः वस्तु द्वारा अभिदृश्यक पर बने कोण a को वस्तु द्वारा आँख पर बना कोण मान सकते हैं।
जब अन्तिम प्रतिबिम्ब अनन्तता पर बनता है-श्रांत आँख (relaxed eye) से देखने के लिए अन्तिम प्रतिबिम्ब अनन्तता पर बनना चाहिए चित्र (b)।, इसके लिए नेत्रिका तथा अभिदृश्यक के बीच दूरी इतनी रखते हैं कि वस्तु AB का अभिदृश्यक O द्वारा बना प्रतिबिम्ब A’B’, नेत्रिका के फोकस Fe’ पर पड़े (ue = fe) । दूरदर्शी का यह समायोजन सामान्य समायोजन कहलाता है।
इस स्थिति में दूरदर्शी की लम्बाई fo+fe होगी। सूत्र (2) तथा (3) से स्पष्ट है कि दूरदर्शी की आवर्धन-क्षमता बढ़ाने के लिए अभिदृश्यक लेन्स की फोकस दूरी fo बड़ी तथा नेत्रिका की फोकस दूरी छोटी होनी चाहिए। ऋणात्मक चिह्न इस बात का सूचक है कि अन्तिम प्रतिबिम्ब उल्टा बनता है।
प्रश्न 89. तरंगाग्र किसे कहते हैं? हाइगेन्स के द्वितीयक तरंगिकाओं का सिद्धान्त लिखिए। (2018, 22, 23)
या हाइगेन्स के तरंग संचरण सम्बन्धी सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए। (2016, 17, 18, 19)
या तरंगाग्र किसे कहते हैं? (2014, 18)
या हाइगेन्स के द्वितीयक तरंगिकाओं के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए। 2017, 19, 23)
उत्तर- तरंगाग्र (Wavefront) – किसी एक माध्यम में जिसमें कोई तरंग संचरित हो रही हो, यदि हम कोई ऐसा पृष्ठ (surface) खींचें जिसमें स्थित कण कम्पन की समान कला में हों, तो ऐसे पृष्ठ को ‘तरंगाग्र’ कहते हैं। समांग (isotropic) माध्यम में किसी तरंग का तरंगाग्र सदैव तरंग संचरण की दिशा बीत से बहुत अधिक दूरी पर स्थित तरंगाग्र का अल्प भाग समतलीय माना जा सकता है तथा ऐसी स्थिति में किरणें परस्पर समान्तर रेखाएँ हो जाती है। यही कारण है कि सूर्य से चलने वाले प्रकाश का तरंगाग्र जब पृथ्वी के सम्पर्क में आता है तो इस तरंगाग्र का अल्पांश समतलीय माना जाता है तथा सूर्य से आने वाली प्रकाश किरणें समान्तर मानी जाती हैं।
हाइगेन्स का द्वितीयक तरंगिकाओं का सिद्धान्त (Huygens Principle of Secondary Wavelets)
- जब कोई कम्पन-स्त्रोत तरंगें उत्पन्न करता है, तो उसके चारों ओर माध्यम (ईथर) के कण कम्पन करने लगते हैं। माध्यम का वह पृष्ठ (surface) जिसमें स्थित सभी कण एक ही कला (phase) में कम्पन कर रहे होते हैं, ‘तरंगाग्र’ (wavefront) कहलाता है। समांग (homogeneous) माध्यम में किसी तरंग का तरंगाग्र, तरंग के संचरण की दिशा में लम्बवत् होता है। अतः तरंगाग्र के अभिलम्बवत् खींची गयी रेखा तरंग के संचरण की दिशा को व्यक्त करती है तथा इसे किरण (ray) कहते हैं।
- माध्यम में जहाँ भी तरंगाग्र पहुँचता है वहाँ पर स्थित प्रत्येक कण एक नया तरंग स्रोत बन जाता है जिसमें नयी तरंगें सभी दिशाओं में निकलती हैं। इन तरंगों को द्वितीयक तरंगिकाएँ (secondary wavelets) कहते हैं। द्वितीयक तरंगिकाएँ प्राथमिक तरंग की चाल से ही आगे बढ़ती हैं।
- किसी क्षण सभी द्वितीयक तरंगिकाओं को स्पर्श करता हुआ खींचा गया पृष्ठ अर्थात् ‘एन्वलोप’ (envelope) उस क्षण तरंगाग्र की नवीन स्थिति को प्रदर्शित करता है। इस प्रकार तरंग आगे बढ़ती चली जाती है S एक बिन्दु स्रोत है जिससे तरंगें निकल रही हैं। AB पर स्थित प्रत्येक बिन्दु से द्वितीयक गोलीय तरंग प्राथमिक तरंग की चाल से चारों ओर फैल रही है। माना कि हमें ।
- समय उपरान्त तरंगाग्र की स्थिति ज्ञात करनी है। इतने समय में प्रत्येक द्वितीयक तरंगिका vt दूरी तय करेगी। अतः हम AB पर स्थित बिन्दुओं; जैसे 1, 2, 3, 4, 5,…… पर vt त्रिज्या के गोले खींचते हैं। इन गोलों को स्पर्श करता हुआ खींचा गया पृष्ठ A, B, ‘एन्वलोप’ है। यही तरंगाग्र की नवीन स्थिति है। गोलों का एन्वलोप A2B2 पीछे की दिशा में भी है, परन्तु हाइगेन्स का सिद्धान्त पीछे की दिशा में स्थित ‘एन्वलोप’ को स्वीकार नहीं करता।
प्रश्न 90. सेल के विद्युत वाहक बल से क्या तात्पर्य है ? किसी वोल्टमीटर से सेल का वि० वा० बल सही-सही क्यों नहीं नापा जा सकता है ? किसी सेल के विद्युत वाहक बल से क्या तात्पर्य है? (2014)
उत्तर– सेल का विद्युत वाहक बल-एकांक आवेश को पूरे परिपथ या (सेल सहित) में प्रवाहित करने में सेल द्वारा दी गयी ऊर्जा को सेल का ‘विद्युत वाहक बल’ (electromotive force) कहते हैं। यदि किसी परिपथ में 9 *। आवेश प्रवाहित करने पर सेल को W कार्य करना पड़े (ऊर्जा देनी पड़े) तो सेल का वि० वा० बल
E=W/q
यदि W जूल में तथा 9 कूलॉम में हों तो E का मान वोल्ट में प्राप्त होता है। यदि किसी परिपथ में 1 कूलॉम आवेश प्रवाहित करने पर सेल द्वारा दी गयी ऊर्जा 1 जूल हो, तो सेल का वि० वा० बल 1 वोल्ट होता है। वि० वा० बल प्रत्येक सेल का एक लाक्षणिक गुण होता है। सेल के विद्युत वाहक बल का सही मापन करने के लिए, इसको मापने के लिए प्रयुक्त यन्त्र का प्रतिरोध अनन्त होना चाहिए। परन्तु वोल्टमीटर का प्रतिरोध अनन्त नहीं होता है। इसलिए इससे विद्युत वाहक बल का सही-सही मापन नहीं किया जा सकता है।
प्रश्न 91. आवश्यक सिद्धान्त देते हुए चल कुण्डली गैल्वेनोमीटर की संरचना तथा कार्यविधि का वर्णन कीजिए। (2014)
या चल कुण्डली धारामापी का सिद्धान्त एवं कार्यविधि का वर्णन कीजिए। (2017,18)
या निम्नलिखित चल कुण्डली धारामापी का सिद्धान्त लिखिए एवं उसकी धारा सुग्राहिता का व्यंजक ज्ञात कीजिए। (2018)
या सिद्ध कीजिए कि चल कुण्डल धारामापी में प्रवाहित धारा उसमें उत्पन्न विक्षेप के अनुक्रमानुपाती होती है। (2019,20)
उत्तर – चल कुण्डली गैल्वेनोमीटर -ये निम्न दो प्रकार के होते हैं-
निलम्बित कुण्डली धारामापी – यह वैद्युत-धारा के संसूचन (detection) तथा मापन (measurement) के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला उपकरण है। इसकी क्रिया चुम्बकीय क्षेत्र में धारावाही कुण्डली पर कार्यरत् बलाघूर्ण पर आधारित है।
संरचना – इसमें एक आयताकार कुण्डली होती है जोकि ताँबे के पतले पृथक्कृत (insulated) तार के ऐलुमिनियम के फ्रेम के ऊपर लपेटकर बनायी जाती है। इस कुण्डली को एक पतली फॉस्फर-ब्रॉन्ज (phosphor-bronze) की पत्ती (strip) से एक स्थायी घोड़ा-नाल चुम्बक (horse-shoe magnet) NS के बेलनाकार ध्रुव-खण्डों (pole-pieces) के बीच लटकाया जाता है।
पत्ती का ऊपरी सिरा एक मरोड़ टोपी (torsion head) से जुड़ा होता है। कुण्डली का निचला सिरा एक अत्यन्त पतले फॉस्फर-ब्रॉन्ज के तार के ढीले-वेष्ठित स्प्रिंग (loosely-wound spring) से जुड़ा होता है। कुण्डली के भीतर एक नर्म लोहे की क्रोड ८ सममित तथा बिना कुण्डली को स्पर्श किए रखी जाती है। क्रोड बल-रेखाओं को संकेन्द्रित कर देती है तथा इस प्रकार ध्रुव-खण्डों के बीच चुम्बकीय क्षेत्र ‘प्रबल’ हो जाता है।
निलम्बन पत्ती (suspension strip) के निचले भाग पर एक छोटा दर्पण (mirror) M लगा होता है, जो पत्ती के साथ-साथ घूमता है तथा जिसका विक्षेप एक लैम्प तथा पैमाने (lamp and scale arrangement) की सहायता से पढ़ा जा सकता है। सम्पूर्ण प्रबन्ध को एक धात्विक बक्से में बन्द रखा जाता है जिसके सामने की ओर काँच की एक खिड़की तथा आधार पर समतलकारी पेंच (levelling screws) लगे होते हैं।
धारा जिसका मापन करना हो, एक टर्मिनल (terminal) T₁ से प्रवेश करती है तथा निलम्बन, कुण्डली व स्प्रिंग से होकर दूसरे टर्मिनल 12 से निर्गत होती है। स्थायी चुम्बक के ध्रुव खण्ड बेलनाकार रखे जाते हैं ताकि कुण्डली की प्रत्येक स्थिति में चुम्बकीय क्षेत्र त्रिज्य (radial) रहे अर्थात् कुण्डली का तल प्रत्येक स्थिति में बल-रेखाओं के समान्तर रहे।
सिद्धान्त – जब कुण्डली में धारा i प्रवाहित की जाती है तो कुण्डली पर लगने वाला बल-आघूर्ण
τ = Ni AB sin90° = NiBA
धारामापी में चुम्बकीय क्षेत्र B को, ध्रुवखण्डों N व S को बेलनाकार बनाकर तथा कुण्डली के भीतर नर्म लोहे की बेलनाकार क्रोड रखकर “त्रिज्य” (radial) बनाया जाता है। इस दिशा में कुण्डली के तल पर अभिलम्ब चुम्बकीय क्षेत्र B से सदैव समकोण पर होगा अर्थात् 0 = 90° होगा। अतः कुण्डली पर कार्यरत् बलाघूर्ण
τ = NIBA
विक्षेपक बल-युग्म आघूर्ण = प्रत्यानयन बल-युग्म का आघूर्ण
अतः धारामापी में प्रवाहित धारा, उत्पन्न विक्षेप के अनुक्रमानुपाती होती है।
वेस्टन धारामापी – यह भी चल कुण्डली धारामापी है। यह निलम्बित-कुण्डली धारामापी की अपेक्षा कुछ कम सुग्राही होता है परन्तु अधिक सुविधाजनक है। इसमें ताँबे के महीन पृथक्कृत तार की, ऐलुमीनियम के फ्रेम पर लिपटी कुण्डली एक स्थायी तथा शक्तिशाली नाल-चुम्बक के ध्रुव-खण्डों के बीच दो चूलों (pivots) पर झूलती है।
कुण्डलियों के दोनों सिरों पर चूलों के पास दो स्प्रिंग लगे रहते हैं जो कुण्डली के घूमने पर ऐंठन बल-युग्म उत्पन्न करते हैं तथा कुण्डली को दो सम्बन्धक-पेचों 7, व 12 से जोड़ते हैं। कुण्डली का विक्षेप पढ़ने के लिए कुण्डली के साथ एक ऐलुमीनियम का लम्बा संकेतक लगा रहता है जो एक वृत्ताकार पैमाने पर घूमता है।
पैमाने पर बराबर दूरियों पर चिह्न लगे रहते हैं तथा शून्यांक चिह्न बीच में होता है। अतः धारामापी के सम्बन्धक-पेचों पर धन व ऋण चिह्न नहीं बने होते। चुम्बकीय क्षेत्र को त्रिज्य बनाने के लिए इससे भी ध्रुव-खण्ड अवतलाकार कटे होते हैं तथा कुण्डली के अन्दर मुलायम लोहे की क्रोड लगी होती है। इसका सिद्धान्त व कार्यविधि चल-कुण्डली धारामापी के समान ही है। इसकी सहायता से 10-6 ऐम्पियर तक की वैद्युत धारा नापी जा सकती है। धारामापी की सुग्राहिता N, A तथा B का मान बढ़ाकर तथा c का मान कम करके बढ़ाई जा सकती है।
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प्रश्न 91. किसी धारामापी को अमीटर में कैसे परिवर्तित करेंगे? उपयुक्त परिपथ द्वारा स्पष्ट कीजिए। (2014, 18, 22, 23)
उत्तर- धारामापी का अमीटर में रूपान्तरण – अमीटर वह यन्त्र है जो वैद्युत परिपथ में धारा की प्रबलता सीधे ऐम्पियर में नापने के काम आता है। मिलीऐम्पियर की कोटि की धारा नापने वाले यन्त्र को मिलीअमीटर कहते हैं। अमीटर मूलतः धारामापी ही होता है जिसे परिपथ के श्रेणीक्रम में डाल देते हैं ताकि नापी जाने वाली सम्पूर्ण धारा इसमें से होकर जाये।
तब अमीटर में उत्पन्न विक्षेप अमीटर से होकर जाने वाली धारा की माप देगा (pi)। परन्तु चूँकि अमीटर की अपनी कुण्डली का भी कुछ प्रतिरोध होता है अतः इसे परिपथ के श्रेणीक्रम में जोड़ने पर परिपथ का प्रतिरोध बढ़ जायेगा जिससे परिपथ में धारा घट जायेगी। अतः अमीटर द्वारा पढ़ा गया धारा का मान, उस धारा के मान से कम होगा जिसे नापना था। अतः यह आवश्यक है कि अमीटर का अपना प्रतिरोध, जितना हो सके कम होना चाहिए ताकि इसे परिपथ में डालने पर नापी जाने वाली धारा का मान न बदले।
स्पष्ट है इस मुटि को पूर्णतः दूर करने के लिए RA का मान शून्य हो। अदिश अमीटर का अपना प्रतिरोध शून्य होना चाहिए परम शून्य प्रतिरोध का अमीटर प्राप्त नहीं किया जा सकता। अतः व्यवहार में, एक 1, अच्छे अमीटर का अपना प्रतिरोध परिपथ में उपस्थित अन्य प्रतिरोधों की तुलना में बहुत कम होना चाहिए । साधारणतः कीलकित (pivoted type) के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। इसके 2 लिए इसकी कुण्डली के समान्तर क्रम में एक छोटा प्रतिरोध डाल देते हैं जिसे ‘शन्ट’ (shunt) कहते हैं। इस प्रबन्ध का संयुक्त प्रतिरोध धारामापी की कुण्डली – तथा शन्ट दोनों के अलग-अलग प्रतिरोधों से कम होता है।
अतः जब इसे कि = किसी परिपथ में डालते हैं तो यह परिपथ की धारा में कोई विशेष परिवर्तन ब – नहीं करता। इस प्रकार यह प्रबन्ध एक अच्छे अमीटर का कार्य करता है। = धारामापी में शन्ट लगाने का एक अन्य लाभ भी है। यदि शन्ट न हो तब परिपथ म की पूरी धारा कुण्डली में से होकर जायेगी। इस दशा में धारामापी द्वारा व अधिक-से-अधिक उतनी धारा नापी जा सकती है जिससे कि कुण्डली में पूरे क पैमाने का विक्षेप (full-scale deflection) हो जाये। शन्ट के होने पर, परिपथ की धारा का केवल एक छोटा भाग ही कुण्डली से होकर जाता है, अधिकांश भाग शन्ट से होकर निकल जाता है।
चूँकि कुण्डली का विक्षेप कुण्डली में को जाने वाली धारा के अनुक्रमानुपाती होता है, अतः कुण्डली का विक्षेप काफी कम हो जाता है। अतः अब परिपथ में पहले से कहीं अधिक धारा होने पर कुण्डली में पूरे पैमाने का विक्षेप होता है। इस प्रकार, शन्टयुक्त धारामार्षी (अमीटर) कहीं अधिक मान की धारा को नाप सकता है। दूसरे शब्दों में, शन्न लगाने से मापन की परास (range) बढ़ जाती है (यद्यपि सुग्राहिता घट जाती है)। वास्तव में शन्ट के प्रतिरोध का मान इसी से निर्धारित किया जाता है कि अमीटर किस परास का बनाना है।
यदि कुण्डली में धारा ig के द्वारा पूरे पैमाने का विक्षेप हो तो परिपथ में धारा i होने पर पूरे पैमाने का विक्षेप होगा। अतः स्पष्ट है कि धारामापी के समान्तर में उपरोक्त मान का शन्ट लगाने पर धारामापी, i ऐम्पियर की परास का अमीटर होगा। एक दिये गये धारामापी के लिए ig का मान प्रयोग द्वारा ज्ञात किया जा सकता है।
प्रश्न 92. प्रकाश-विद्युत उत्सर्जन के लिए शर्तों का उल्लेख कीजिए। (2019)
उत्तर- प्रकाश-वैद्युत प्रभाव के नियम-वैज्ञानिक लेनार्ड तथा मिलीकन ने प्रकाश-वैद्युत प्रभाव के सम्बन्ध में किये गये प्रयोगों से प्राप्त प्रेक्षणों के आधार पर कुछ नियम दिये जो प्रकाश-वैद्युत प्रभाव (ऊष्मा उत्सर्जन) के नियम कहलाते हैं। प्रकाश-वैद्युत प्रभाव के नियम निम्नलिखित हैं-
- किसी धातु की सतह से प्रकाश- इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन की दर धातु की सतह पर गिरने वाले प्रकाश की तीव्रता के अनुक्रमानुपाती होती है।
- उत्सर्जित प्रकाश- इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा प्रकाश की तीव्रता पर निर्भर नहीं करती।
- प्रकाश-इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा प्रकाश की आवृत्ति के बढ़ने पर बढ़ती है।
- यदि आपतित प्रकाश की आवृत्ति एक न्यूनतम मान से कम है तो धातु से कोई भी प्रकाश-इलेक्ट्रॉन नहीं निकलता। यह न्यूनतम आवृत्ति
- (देहली आवृत्ति) भिन्न-भिन्न धातुओं के लिए भिन्न-भिन्न होती है।
- प्रकाश के धातु की सतह पर गिरते ही इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होने लगते हैं, अर्थात् प्रकाश के सतह पर गिरने तथा इलेक्ट्रॉन के सतह से बाहर निकलने के बीच कोई समय-पश्चता (time-lag) नहीं होती, चाहे प्रकाश की तीव्रता कितनी भी क्यों न हो।
प्रश्न 93. एक गैल्वेनोमीटर को एक वोल्टमीटर में कैसे परिवर्तित किया जाता है? (2019, 22)
उत्तर- गैल्वेनोमीटर का वोल्टमीटर में रूपान्तरण-वोल्टमीटर वह यन्त्र है जो वैद्युत परिपथ में किन्हीं दो बिन्दुओं के बीच विभवान्तर (वोल्ट में) मापने के काम आता है। मिलीवोल्ट की कोटि के विभवान्तर मापने वाले यन्त्र को मिलीवोल्टमीटर कहते हैं।
वोल्टमीटर मूलतः एक धारामापी होता है जिसे परिपथ के उन दो बिन्दुओं के समान्तर क्रम में जोड़ देते हैं जिनके बीच विभवान्तर मापना है। वोल्टमीटर की कुण्डली का परिमित प्रतिरोध होने के कारण कुछ धारा वोल्टमीटर की कुण्डली से भी होकर प्रवाहित होती है। फलस्वरूप उन दोनों बिन्दुओं के बीच प्रवाहित धारा का मान कुछ कम हो जाता है।
समान्तर क्रम में जुड़े होने के कारण वोल्टमीटर के सिरों के बीच वही विभवान्तर उत्पन्न हो जाता है जो उन बिन्दुओं के बीच है। अतः वोल्टमीटर में उत्पन्न विक्षेप इसकी कुण्डली में बहने वाली धारा के और इस कारण इसके सिरों के बीच विभवान्तर के भी अनुक्रमानुपाती होगा। इस प्रकार वोल्टमीटर में आने वाला विक्षेप, मापे जाने वाले विभवान्तर की माप देता है।
बोल्टमीटर का प्रतिरोध उच्च से उच्च रखा जाता है ताकि यह बिना किसी उल्लेखनीय त्रुटि के विभवान्तर पढ़ सके। इसीलिए “धारामापी को वोल्टमीटर में बदलने के लिए इसके श्रेणीक्रम में उच्च प्रतिरोध जोड़ देते हैं।”
माना धारामापी का प्रतिरोध G है तथा पूर्ण स्केल विक्षेप के लिए इसमें आवश्यक धारा ig है। माना इस धारामापी को 0-V वोल्ट की परास वाले वोल्टमीटर में बदलने के लिए आवश्यक श्रेणी प्रतिरोध R है। धारामापी में प्रवाहित होने वाली धारा, ig = V/ R+G
यह धारामापी को 0 – V वोल्ट के वोल्टमीटर में बदलने की कार्यकारी समीकरण है।
इस प्रकार बने वोल्टमीटर का प्रतिरोध, Rv = G + R यदि धारामापी के सिरों के बीच प्रारम्भिक वोल्टता Vo हो, जबकि इसमें धारा ig प्रवाहित हो रही हो, तो ig = V0/G यदि धारामापी का दक्षतांक k हो तथा स्केल पर अंशों की संख्या n हो, तो ig = nk
[विशेष – आदर्श वोल्टमीटर का प्रतिरोध अनन्त होता है।] साधारणतः कीलकित चल कुण्डली धारामापी को वोल्टमीटर के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। इसका प्रतिरोध बढ़ाने के लिए इसकी कुण्डली के श्रेणीक्रम में एक उच्च प्रतिरोध (R) जोड़ देते हैं। इस प्रतिरोध का मान वोल्टमीटर की परास पर निर्भर करता है।
प्रश्न 94. चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं के गुणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं के गुण –
(i) चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ सदैव उत्तरी ध्रुव से प्रारम्भ होकर दक्षिणी ध्रुव में प्रवेश करती हैं। पुनः चुम्बक के भीतर से गुजरती हुई उत्तरी ध्रुव पर वापस आ जाती हैं। इस प्रकार चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ बन्द वक्र (closed curve) के रूप में होती हैं जिनका कोई आदि अन्त नहीं होता है। यहाँ यह स्पष्ट रहे कि वैद्युत क्षेत्र रेखाएँ बन्द वक्र नहीं होती हैं।
ये धनावेश से प्रारम्भ होकर ऋणावेश पर समाप्त हो जाती हैं या फिर अनन्त की ओर चली जाती हैं।
(ii) चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ कभी एक-दूसरे का परिच्छेदन नहीं करती हैं। यदि ऐसा होगा तो कटान बिन्दु पर दो स्पर्श रेखाएँ खींची जा सकतीं हैं, अर्थात् एक ही बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र की दो दिशाएँ होंगी जो असम्भव है।
(ii) चुम्बक के चुम्बकीय ध्रुवों के समीप जहाँ चुम्बकत्व क्षेत्र प्रबल होता है, चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ पास-पास होती हैं।
ध्रुवों से दूर जाने पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता घटती जाती है जिसके फलस्वरूप चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ भी परस्पर दूर होती जाती हैं। चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् किसी तल के इकाई क्षेत्रफल से गुजरने वाली क्षेत्र रेखाओं की संख्या उस स्थान पर चुम्बकीय क्षेत्र के परिमाण को व्यक्त करती है।
(iv) किसी-किसी स्थान पर पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र में क्षेत्र रेखाएँ आपस में समान्तर तथा समदूरस्थ (equidistant) होती हैं। ऐसे चुम्बकीय क्षेत्र को एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र (uniform magnetic field) कहते हैं; जैसे-पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र।
(v) चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं की प्रवृत्ति, लम्बाई में सिकुड़ने जबकि पार्श्व (sidewise) में विस्तारित होने की होती है (अर्थात् लम्बाई के लम्बवत् एक दूसरे को प्रतिकर्षित करती हैं)। इसी कारण सजातीय ध्रुवों में प्रतिकर्षण और विजातीय ध्रुवों में आकर्षण होता है।
(vi) चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ चुम्बक की सतह पर लम्बवत् प्रारम्भ होती है और इनका समापन भी चुम्बक की सतह के लम्बवत् ही होता है।
प्रश्न 95. स्थायी चुम्बक तथा विद्युत चुम्बक से आप क्या समझते हैं? विद्युत चुम्बक की तीव्रता को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
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उत्तर- स्थायी चुम्बक तथा विद्युत चुम्बक (Permanent Magnets and Electromagnets)
स्थायी चुम्बक (Permanent Magnets)
वह पदार्थ जो कमरे के ताप पर अपने लौहचुम्बकीय गुण दीर्घकाल के लिए बनाए रख सकते हैं, स्थायी चुम्बक कहलाते हैं। स्थायी चुम्बक बनाने के लिए पदार्थ की धारणशीलता उच्च होनी चाहिए जिससे कि चुम्बक शक्तिशाली हो। साथ ही, पदार्थ की निग्राहिता भी उच्च होनी चाहिए जिससे कि चुम्बक का चुम्बकत्व बाह्य अवांछित (stray) चुम्बकीय क्षेत्रों अथवा यान्त्रिक विक्षोभों अथवा ताप-परिवर्तनों के प्रभाव से कम न होने पाए।
स्थायी चुम्बक में शैथिल्य हानि का कोई महत्त्व नहीं होता क्योंकि इसका बार-बार चुम्बकन-विचुम्बकन नहीं किया जाता। इन सभी दृष्टिकोणों से, स्थायी चुम्बक स्टील के बनाए जाते हैं। यह सही है कि स्टील की धारणशीलता नर्म लोहे की अपेक्षा कुछ कम है परन्तु इस बात का अधिक महत्त्व नहीं है क्योंकि स्टील की निग्राहिता नर्म लोहे की अपेक्षा कहीं अधिक है।
विद्युत चुम्बक (Electromagnets)
विद्युत चुम्बकों की क्रोड के लिए वह पदार्थ उपयुक्त है जिसमें साधारण चुम्बकन क्षेत्रों द्वारा ही अधिक चुम्बकीय प्रेरण (फ्लक्स घनत्व) उत्पन्न हो जाए तथा शैथिल्य हानि कम-से-कम हो। नर्म लोहे के शैथिल्य-वक्र से स्पष्ट है कि ये दोनों गुण नर्म लोहे में होते हैं, अतः नर्म लोहा विद्युत-चुम्बक की क्रोड के लिए आदर्श पदार्थ है। यह विद्युत धारा के चुम्बकीय प्रभाव का व्यावहारिक उपयोग है। धारावाही – परिनालिका एक दण्ड चुम्बक की भाँति व्यवहार करती है। यदि इस परिनालिका के अन्दर नर्म लोहे की छड़ रख दी जाए तो परिनालिका का चुम्बकत्व कई सौ गुना बढ़ जाता है। इस स्थिति में यह परिनालिका एक विद्युत चुम्बक कहलाती है।
यह एक अस्थायी शक्तिशाली चुम्बक है। इस आधार पर विद्युत चुम्बक बनाने के लिए, नर्म लोहे की एक सीधी छड़ [चित्र (a)] अथवा घोड़े के नाल के आकार की छड़ पर ताँबे का वैद्युतरुद्ध तार अनेक फेरों में पास-पास लपेटते हैं। तार लपेटते समय यह ध्यान रखा जाता है कि तार का घुमाव एक ही दिशा में रहे। घोड़े की नाल के आकार की छड़ की भुजाओं पर तार इस प्रकार लपेटते हैं कि उनमें धाराएँ विपरीत दिशाओं में हों।
कुछ घण्टों तक इस तार में दिष्ट धारा प्रवाहित करने पर लोहे की छड़ चुम्बक बन जाती है। धारा प्रवाह के समय चुम्बकत्व की मात्रा अत्यधिक होती है तथा धारा प्रवाह को बन्द कर देने पर छड़ में चुम्बकत्व नहीं रहता है। छड़ के जिस सिरे की ओर से देखने पर तार में धारा की दिशा वामावर्त है। वह सिरा उत्तरी ध्रुव N तथा दूसरा सिरा दक्षिणी ध्रुव बनता है अथवा जिस सिरे की ओर से देखने पर तार में धारा की दिशा दक्षिणावर्त है वह सिरा दक्षिणी ध्रुव S बनता है तथा दूसरा सिरा उत्तरी ध्रुव बनता है।
विद्युत चुम्बक के उपयोग-
- बड़े आकार के विद्युत चुम्बक फैक्ट्रियों में चलनशील क्रेनों के द्वारा लोहे तथा फौलाद के बड़े-बड़े उपकरणों व गट्ठों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने में उपयोग में लाए जाते हैं।
- अस्पतालों में विद्युत चुम्बक आँख तथा शरीर के अन्य किसी भाग से लोहे अथवा फौलाद के छरें निकालने में उपयोग में लाए जाते हैं।
- किसी मिश्रण से चुम्बकीय पदार्थों को अलग करने में इनका उपयोग किया जाता है।
- वैद्युत घण्टी, टेलीफोन के तनपुट, तार-संचार, ट्रांसफार्मर तथा वैद्युत मोटर एवं डायनेमो की क्रोड में विद्युत चुम्बकों का उपयोग किया जाता है।
विद्युत चुम्बक की प्रबलता को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting the Intensity of Electromagnet)
- क्रोड का पदार्थ-क्रोड के पदार्थ की चुम्बकशीलता जितनी अधिक होती है, विद्युत चुम्बक की प्रबलता भी उतनी ही अधिक होती है। कुण्डली में क्रोड नर्म लोहे की लेने से विद्युत चुम्बक की प्रबलता बढ़ जाती है। विद्युत चुम्बक के पदार्थ में बारीक तथा लम्बा शैथिल्य पाश होना चाहिए। इसकी धारण क्षमता कम होनी चाहिए। पदार्थ तुरन्त चुम्बकीय हो जाना चाहिए तथा उसमें उच्च पारगम्यता होनी चाहिए। विद्युत चुम्बक बनाने में सिलिकॉन, लोहे तथा म्यूमैटल का भी प्रयोग किया जाता है।
- विद्युत धारा-परिनालिका में प्रवाहित विद्युत धारा की प्रबलता विद्युत चुम्बक के चुम्बकन के लिए आवश्यक बल प्रदान करती है। क्षीण धारा द्वारा दिए हुए सैम्पल का उपयुक्त प्रकार से चुम्बकन नहीं कर सकती।
- फेरों की संख्या-परिनालिका की प्रति इकाई लम्बाई पर तार के फेरों की संख्या जितनी अधिक होगी चुम्बकन क्षेत्र उतना अधिक होगा। शक्तिशाली विद्युत चुम्बकों के लिए प्रबल क्षेत्र की आवश्यकता होती है।
- तापमान -उच्च तापमान पर चुम्बकत्व नष्ट हो जाता है। इस अवधारणा का विधिवत् अध्ययन क्यूरी के द्वारा किया गया था जिसके लिए उसने एक नियम का प्रतिपादन भी किया।
प्रश्न 96. पोलेराइड किसे कहते हैं? इसकी सहायता से कैसे पता लगायेंगे कि दिया गया प्रकाश अधुवित है, आंशिक रूप से ध्रुवित है या पूर्णतः ध्रुवित है? (2015)
या पोलेराइड से किसी प्रकाश किरण के ध्रुवित होने की जाँच आप कैसे करेंगे?
या पोलेराइड द्वारा समतल ध्रुवित प्रकाश के उत्पन्न करने तथा विश्लेषण करने की विधि का वर्णन कीजिए।
या समतल ध्रुवित प्रकाश के उत्पादन तथा संसूचन की किसी विधि का सचित्र वर्णन कीजिए।
या पोलेराइड क्या है? इसकी कार्यविधि का वर्णन कीजिए। इसकी सहायता से अधुवित तथा समतल धुवित प्रकाश में किस प्रकार अन्तर कर सकते हैं? (2013)
या समतल ध्रुवित प्रकाश उत्पन्न करने हेतु किसी एक विधि का वर्णन कीजिए।(2015, 19)
उत्तर- पोलेराइड एक बड़े आकार की फिल्म होती है जिसे दो काँच की प्लेटों के बीच रखा जाता है। इस फिल्म को बनाने के लिए कार्बनिक यौगिक हरपेथाइट या आयोडो सल्फेट ऑफ क्यूनाइन के अतिसूक्ष्म क्रिस्टल, नाइट्रो-सेलुलोस की पतली चादर पर विशेष विधि द्वारा इस प्रकार फैला दिये जाते हैं कि सभी क्रिस्टलों की प्रकाशिक अक्षे समान्तर रहें। ये क्रिस्टल द्विवर्णक होते हैं।
कार्यविधि-अधुवित प्रकाश में वैद्युत वेक्टर सभी दिशाओं में होते हैं। जब कोई प्रकाश किरण पोलेराइड फिल्म पर आपतित होती है, तो यह दो समतल ध्रुवित किरणों में विभक्त हो जाती है। एक किरण में वैद्युत वेक्टर हरपेथाइट क्रिस्टल की अक्ष के समान्तर तथा दूसरे में अक्ष के लम्बवत् होते हैं। इनमें से हरपेथाइट की अक्ष के लम्बवत् वैद्युत वेक्टर वाली किरण पूर्णतया अवशोषित हो जाती है।
इस प्रकार निर्गत प्रकाश पूर्णतया ध्रुवित होता है। पोलेराइड से निर्गत प्रकाश समतल ध्रुवित होता है, इसकी जाँच एक-दूसरे पोलेराइड द्वारा संचरित हो जाता है। जब द्वितीय पोलेराइड को 90° से घुमाकर उसको क्रॉस स्थिति में लाते हैं, तो उनमें से प्रकाश संचरित नहीं होता । इस स्थिति में दोनों पोलेराइड की ध्रुवण दिशाएँ परस्पर लम्बवत् होती हैं। इस दशा में पोलेराइड क्रॉसित पोलेराइड हैं। उपर्युक्त प्रक्रिया में पहला (analyser) कहलाता है।
ध्रुवित प्रकाश प्राप्त करना-जब ध्रुवित प्रकाश का एक किरण-पुंज पोलेराइड फिल्म में से गुजरता है, तो फिल्म केवल उन घटकों को पार होने देती है जिनके वैद्युत-वेक्टर पोलेराइड की ध्रुवण दिशा के समान्तर कम्पन करते हैं। इस प्रकार पारगमित प्रकाश समतल-ध्रुवित प्रकाश होता है।
समतल-ध्रुवित प्रकाश का संसूचन-पोलेराइड की सहायता से अधुवित, आंशिक रूप से ध्रुवित अथवा पूर्णतया ध्रुवित प्रकाश का पता लगाया जाता है। किसी पोलेराइड को आपतित प्रकाश के परितः पूरा एक चक्कर घुमाने से यदि निर्गत प्रकाश की तीव्रता में कोई अन्तर नहीं पड़ता तो आपतित प्रकाश अध्रुवित है, निर्गत प्रकाश की तीव्रता में परिवर्तन तो होता है, परन्तु किसी भी स्थिति में तीव्रता शून्य नहीं होती तो आपतित प्रकाश आंशिक रूप से ध्रुवित है, यदि निर्गत प्रकाश की तीव्रता में परिवर्तन होता है तथा पोलेराइड के एक चक्कर में दो बार तीव्रता अधिकतम तथा दो बार शून्य हो जाती है तो आपतित प्रकाश पूर्णतः समतल ध्रुवित है।
प्रश्न 97. समस्थानिक तथा समभारिक का अर्थ दो-दो उदाहरण देकर समझाइए । समन्यूट्रॉनिक को भी बताइए।(2014, 17, 19, 20, 22, 23)
उत्तर– 1. समस्थानिक अथवा समप्रोटॉनिक (Isotopes or Isoprotons) – किसी एक ही तत्त्व के ऐसे परमाणु जिनके नाभिकों में प्रोटॉनों की संख्या समान होती है, परन्तु न्यूट्रॉनों की संख्या भिन्न-भिन्न होती है, उस तत्त्व के ‘समस्थानिक’ या ‘समप्रोटॉनिक’ कहलाते हैं। इस प्रकार किसी तत्त्व के विभिन्न समस्थानिकों के परमाणु क्रमांक (2) समान होते हैं, परन्तु द्रव्यमान संख्या (A) भिन्न-भिन्न होती है। क्योंकि इनके परमाणु-क्रमांक समान हैं, अतः आवर्त सारणी में इनका स्थान समान होता है। इसी कारण इन्हें समस्थानिक भी कहते हैं।
उदाहरणार्थ-
हाइड्रोजन : 1H1 , 1H2, 1H3 ऑक्सीजन : 8016, 8017, 8018
- समभारिक (Isobaric) – ऐसे नाभिकों को जिनमें न्यूक्लिऑनों की कुल संख्या समान होती है, परन्तु प्रोटॉनों और न्यूट्रॉनों की संख्या भिन्न-भिन्न होती है, ‘समभारिक’ कहते हैं। इन नाभिकों का परमाणु क्रमांक (Z) भिन्न-भिन्न तथा द्रव्यमान संख्या (A) समान होती है। अतः आवर्त सारणी में इनका स्थान भिन्न-भिन्न होता है और इनके रासायनिक गुण भी एक जैसे नहीं होते।
उदाहरणार्थ-1H³ तथा 2 He³, 7N14 तथा 6C14, 8017 तथा 9F17
समन्यूट्रॉनिक– ऐसे नाभिक जिनमें केवल न्यूट्रॉनों की संख्या समान होती है, समन्यूट्रॉनिक कहलाते हैं अर्थात् इनके लिए परमाणु-क्रमांक (Z) तथा द्रव्यमान संख्या (A) दोनों भिन्न-भिन्न होते हैं, परन्तु (A – Z) का मान समान होता है।
उदाहरण – 3Li7 तथा 4Be8; 1H3 तथा 2He4 :
3Li7 के लिए (A – Z) =7 – 3 = 4
प्रश्न 98. प्रकाश-वैद्युत प्रभाव के नियम लिखिए। या प्रकाश-वैद्युत उत्सर्जन के नियम लिखिए। (2015, 17, 18, 19, 22)
या प्रकाश-विद्युत उत्सर्जन के लिए शर्तों का उल्लेख कीजिए। (2019)
उत्तर- प्रकाश-वैद्युत प्रभाव के नियम-वैज्ञानिक लेनार्ड तथा मिलीकन ने प्रकाश-वैद्युत प्रभाव के सम्बन्ध में किये गये प्रयोगों से प्राप्त प्रेक्षणों के आधार पर कुछ नियम दिये जो प्रकाश-वैद्युत प्रभाव (ऊष्मा उत्सर्जन) के नियम कहलाते हैं।
प्रकाश-वैद्युत प्रभाव के नियम निम्नलिखित हैं-
- किसी धातु की सतह से प्रकाश- इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन की दर धातु की सतह पर गिरने वाले प्रकाश की तीव्रता के अनुक्रमानुपाती होती है।
- उत्सर्जित प्रकाश- इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा प्रकाश की तीव्रता पर निर्भर नहीं करती।
- प्रकाश-इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा प्रकाश की आवृत्ति के बढ़ने पर बढ़ती है।
- यदि आपतित प्रकाश की आवृत्ति एक न्यूनतम मान से कम है तो धातु से कोई भी प्रकाश-इलेक्ट्रॉन नहीं निकलता। यह न्यूनतम आवृत्ति (देहली आवृत्ति) भिन्न-भिन्न धातुओं के लिए भिन्न-भिन्न होती है।
- प्रकाश के धातु की सतह पर गिरते ही इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होने लगते हैं, अर्थात् प्रकाश के सतह पर गिरने तथा इलेक्ट्रॉन के सतह से बाहर निकलने के बीच कोई समय-पश्चता (time-lag) नहीं होती, चाहे प्रकाश की तीव्रता कितनी भी क्यों न हो।
प्रश्न 99. अन्तःनाभिकीय बल से क्या तात्पर्य है? इन बलों की प्रकृति के बारे में क्या तथ्य प्राप्त किये गये? (2017)
या अन्तःनाभिकीय बलों के गुण लिखिए। नाभिकीय बल किसे कहते हैं? (2017)
उत्तर- नाभिकीय बल (Nuclear Forces) – किसी भी परमाणु के नाभिक में दो मूल कण, प्रोटॉन एवं न्यूट्रॉन होते हैं। समान रूप से आवेशित कण होने के कारण प्रोटॉनों के बीच एक वैद्युत प्रतिकर्षण बल कार्य करता है, जबकि आवेश-रहित न्यूट्रॉनों के बीच इस प्रकार का कोई बल नहीं लगता। ये कण नाभिक के अत्यन्त सूक्ष्म स्थान (≈ 10-15 मीटर) में एक साथ कैसे रहते हैं? इस तथ्य को समझने के लिए यह परिकल्पना की गयी कि नाभिक के भीतर ऐसे बल कार्यशील रहते हैं जो कि न्यूक्लिऑनों को परस्पर नाभिक में एक साथ बाँधे रखते हैं। इन बलों को ‘नाभिकीय बल’ (nuclear forces) कहते हैं। इन बलों के विषय में निम्नलिखित तथ्य ज्ञात हुए हैं-
- ये बल आकर्षण-बल हैं अन्यथा समान आवेश के प्रोटॉन नाभिक जैसे सूक्ष्म स्थान में जमा नहीं रह पाते।
- ये बल अत्यन्त तीव्र (very strong) हैं। मानव जानकारी में अब तक जितने भी बल ज्ञात हैं उनमें सबसे अधिक तीव्र नाभिकीय-बल ही हैं।
- ये वैद्युत बल नहीं हैं। यदि ये वैद्युत बल होते, तो इनके कारण प्रोटॉनों के बीच प्रतिकर्षण होता और नाभिक की संरचना सम्भव न हो पाती।
- ये गुरुत्वीय बल भी नहीं हैं। दो न्यूक्लिऑनों के बीच गुरुत्वीय बल बहुत क्षीण होते हैं, जबकि नाभिकीय बल अत्यन्त तीव्र होते हैं।
- ये बल आवेश पर किसी प्रकार भी निर्भर नहीं करते अर्थात् विभिन्न न्यूक्लिऑनों के बीच (जैसे-प्रोटॉन-प्रोटॉन के बीच, न्यूट्रॉन-न्यूट्रॉन के बीच, प्रोटॉन-न्यूट्रॉन के बीच) बल एकसमान (uniform) होते हैं।
- ये बल अत्यन्त लघु परिसर (short range) के हैं। अतः ये बहुत कम दूरी (केवल नाभिकीय व्यास, 10-15 मीटर के अन्दर) तक ही प्रभावी होते हैं।
प्रश्न 100. प्रकाश के प्रतिपालित व्यतिकरण, कला-सम्बद्ध स्रोतों, अध्यारोपण का सिद्धान्त, द्वि-अपवर्तन , प्रकाश के विवर्तन से आप क्या समझते हैं? (2018, 19, 22,20 23) (2016)
उत्तर- प्रकाश के प्रतिपालित व्यतिकरण– यदि प्रकाश के व्यतिकरण की घटना में पर्दे पर विभिन्न बिन्दुओं पर तरंगों के बीच कलान्तर समय के साथ परिवर्तित न हो, तो पर्दे पर प्राप्त व्यतिकरण प्रारूप में दीप्त तथा अदीप्त बैण्डों की स्थितियाँ स्थिर बनी रहेंगी। ऐसे व्यतिकरण को प्रकाश का स्थायी अथवा प्रतिपालित व्यतिकरण कहते हैं।
कला-सम्बद्ध स्रोतों – ऐसे दो स्रोतों को जिनके बीच कलान्तर सदैव नियत रहता है, कला-सम्बद्ध स्रोत (coherent sources) कहते हैं। दो कला-सम्बद्ध स्रोतों से हम स्थायी (sustained) व्यतिकरण प्रतिरूप प्राप्त कर सकते हैं। ऐसे स्रोत किसी युक्ति द्वारा एक ही स्रोत से प्राप्त किये जाते हैं।
अध्यारोपण का सिद्धान्त – किसी माध्यम में दो अथवा दो से अधिक प्रगामी तरंगें एक साथ परन्तु एक-दूसरे की गति को बिना प्रभावित किये चल सकती हैं। अत: माध्यम के प्रत्येक कण का किसी क्षण परिणामी विस्थापन दोनों तरंगों द्वारा अलग-अलग उत्पन्न विस्थापनों के सदिश (vector) योग के बराबर होता है। इस सिद्धान्त को ‘अध्यारोपण का सिद्धान्त’ कहते हैं।
द्वि-अपवर्तन (Double Refraction)- टूरमैलीन, कैलसाइट, क्वार्ट्ज जैसे कुछ क्रिस्टल ऐसे होते हैं कि जब उन पर साधारण प्रकाश (अध्रुवित प्रकाश) की कोई किरण डाली जाती है तो वह क्रिस्टल में प्रवेश करने पर दो अपवर्तित किरणों में बँट जाती है। इस घटना को द्वि-अपवर्तन कहते हैं। इन दो अपवर्तित किरणों में से जो एक किरण अपवर्तन के नियमों का पालन करती है, साधारण किरण (ordinary ray) कहलाती है तथा दूसरी किरण जो अपवर्तन के नियमों का पालन नहीं करती, असाधारण किरण (extra-ordinary ray) कहलाती है। ये दोनों किरणें परस्पर लम्बवत् तलों में समतल ध्रुवित होती हैं।
प्रकाश के विवर्तन – जब प्रकाश किसी अवरोध या द्वारक पर आकर किनारों से मुड़ जाता है, तब प्रकाश का इस प्रकार मुड़ना ही प्रकाश का विवर्तन कहलाता है।
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