इस पोस्ट में त्वचा की संरचना एवं उसके कार्य Skin Function से सम्बन्धित पूरा जानकारी प्रदान की गयी है। मेरा इस क्षेत्र में 7 वर्षों का अनुभव है जो मैं आपको इस पोस्ट में शेयर करने जा रहा हूँ। सभी कशेरुकी जन्तुओं के शरीर पर एक मोटा आवरण होता है जिसे देहभित्ति (body wall) कहते हैं। इसका बाहरी सहर त्वचा या अध्यावरण (integument) कहलाता है। इसके नीचे पेशी स्तर होता है। मनुष्य में त्वचा प्रीओलर ऊतक द्वारा देशी स्तर से जुड़ी होती है तो चलिये जान लेते हैं कि त्वचा मुख्यत: कितने प्रकार की होता है?
त्वचा में मुख्यतः दो स्तर होते हैं उपचर्म या अधिचर्म तथा चर्म।
उपचर्म या अधिचर्म या एपिडर्मिस (Epidermis)
उपचर्म भ्रूणीय एक्टोडर्म से विकसित होती है और निम्नलिखित पाँच उपस्तरों में विभेदित होती है:
- मैल्पीधी स्तर
- स्पाइनोसा स्तर
- ग्रेन्यूलोसा स्तर
- ल्यूसिडम स्तर
- कार्नियल स्तर या कार्नियम
(i) अंकुरण स्तर या मैल्पीधी स्तर (Malpighian Layer or Stratum Malpighi):
उपचर्म का सबसे भीतरी उपस्तर अंकुर स्तर या मैल्पीधी स्तर कहलाता है। यह सजीव स्तम्भीय कोशिकाओं की एक परत का बना होता है जो जीवनभर विभाजित होती रहती हैं और एक के बाद एक नयी परत बनाती रहती हैं और त्वचा की सतह की ओर बढ़ती जाती हैं। इस स्तर से उत्पन्न कोशिकाओं के नये स्तर चार उपस्तरों का निर्माण करते हैं।
मैल्पीधी स्तर की कोशिकाओं के बीच रंगा कोशिकाएँ (pigment cells or chromatophores) पायी जाती हैं। इनकी संख्या के आधार पर हमारी त्वचा का रंग गहरा या हल्का होता है।
(ii) शूल स्तर या स्पाइनोसा स्तर या स्ट्रेटम स्पाइनोसम (Stratum Spinosum):
यह स्तर मैल्पीधी स्तर के ठीक बाहर स्थित होता है। दबाव के कारण इस स्तर की कोशिकाएँ कुछ चपटी तथा शाखित दिखाई देती है।
(iii) ग्रेन्यूलोसा स्तर या स्ट्रेटम ग्रेन्यूलोसम (Stratum Granulosum):
इस स्तर की कोशिकाएँ चपटी होती है और इनके कोशिकाद्रव्य में किरेटोहायलाइन प्रोटीन (protein keratohyaline) के कण होते हैं। इसी कारण इस स्तर की कोशिकाएँ ग्रेन्यूलर दिखती हैं।
(iv) ल्यूसिडम स्तर या स्ट्रेटम ल्यूसिडम (Stratum Lucidum):
यह स्तर ग्रेन्युलोसा स्तर के बाहर होता है। इसकी कोशिकाओं में प्रोटीन किरेटोहायलाइन एलीडिन (elidin) में बदल जाता है। एलीडिन पारदशीं होता है। इस स्तर की कोशिकाएँ (v) कॉर्नियल स्तर या स्ट्रेटम कार्नियम (Stratum Corneum): यह अधिचर्म का बाहरी स्तर है। इसकी कोशिकाएँ
ग्रेन्यूलर कोशिकाओं की अपेक्षा अधिक चपटी होती है।
सबसे ज्यादा चपटी, शल्की और जलरोधी होती हैं। इन कोशिकाओं में इलेडिन अजीवित पदार्थ किरेटिन (keratin) में बदल जाता है। इस स्तर की कोशिकाएँ मृतक होती हैं और समय-समय पर शरीर से अलग होती रहती है।
(चित्र : मनुष्य की त्वचा की खड़ी काट)
मैल्पीभी स्तर की कोशिकाओं के बीच कुछ रंगा कोशिकाएँ या मिलैनोसाइट्स होते हैं लेकिन इनमें उपस्थित वर्णक त्वचा को रंग प्रदान करता है। मानव त्वचा का रंग-भेद मिलेनिन वर्णक की मात्रा पर निर्भर करता है। नीग्रो प्रजाति के लोगों मे यह वर्णक अधिकतम होता है तो इसी कारण भीम्रो सबसे अधिक काले होते हैं। मिलैनिन तापरोधी होती है और सूर्य की UV किरणों को शरीर में प्रवेश से रोकती है।
चर्म या डर्मिस (Dermis)
यह उपचर्म के नीचे तन्तुमय संयोजी ऊतक से बना त्वचा का मोटा स्तर है। यह भ्रूण की मोसोडर्म से विकसित होता है। संयोजी ऊतक में श्वेत कोलेजन एवं लचीले इलास्टिन तन्तु तथा संयोजी ऊतक की कोशिकाएँ होती हैं। इसमें अनेक प्रकार की त्वक् ग्रन्यिर्या (स्वेद ग्रन्थियाँ, तेल ग्रन्थियाँ), रोम (hair), तन्त्रिका तन्तु, अरेखित पेशी तन्तु तथा स्पर्श कणिकाएँ व अन्य संवेदी कोशिकाएँ भी पड़ी होती है।
डर्मिस व पेशी स्तर के बाँच वसा कोशिकाओं का एक मोटा स्तर होता है। वसीय स्तर तापरोधन व खाद्य संचयन का कार्य करता है लेकिन शरीर को सुडोल बनाता है और बाहरी आपातों से शरीर के भीतरी अंगों को रक्षा करता है। व्हेल, सॉल आदि समुद्रा जीवों में यह स्तर बहुत मोटा होता है। इसे ब्लवर कहते है।
त्वचा के व्युत्पन्न (Skin Derivatives)
त्वचा के उपचर्म तथा चर्म से निम्नलिखित संरचनाएँ जुड़ी होती है:
उपचर्म के व्युत्पन्न (Epidermal Derivatives)
बाल या रोम (Hair)
बाल उपचर्म के व्युत्पन्न है। त्वचा के अन्दर स्थित बाल के भाग को बाल की जड़ कहते। है। यह रोम पुटिका (hair follicle) में बन्द होता है। रोम पुटिका का फूला हुआ आधार भाग रोम पैपिला (hair papilla)
कहलाता है। इसमें रुधिर केशिकाओ का गुच्छा होता है जो बाल को भोजन तथा अऑक्सीजन पहुंचाता है।
बाल का वह भाग जो त्वचा से बाहर निकला होता है रोम कांड (hair shaft) कहलाता है। रोम पुटिका में सीबेशियस ग्रन्थि (sebaceous gland) तथा ऐरेक्टर पिलई (arrector pili) पेशियाँ जुड़ी होती है। इन पेशियों के संकुचन से बाल खड़े हो जाते हैं।
त्वक् ग्रन्थियाँ (Cutaneous Glands): उपचर्म के मैल्पीपी स्तर की कोशिकाओं से निम्नलिखित त्वक् श्रन्थियाँ विकसित होती है:
(a) स्वेद ग्रन्थियाँ (Sweat Glands): ये अन्थियों अशाखित व लम्बी कुडलित नली के रूप में होती है और त्वचा की डर्मिस में पड़ी रहती हैं तो ये पसीने का स्राव करती हैं। (
b) सीबेशियस ग्रन्थियाँ (Sebaceous Glands): ये रोम पुटिका में खुलती है। और तैलीय पदार्थ का स्राव करती हैं। ये बाल व त्वचा को चिकना एवं जलरोधी बनाती हैं।
(c) स्तन ग्रन्थियाँ (Mammary Glands): ये सीबेशियस ग्रन्थियों का रूपान्तरित रूप होती हैं, ये केवल स्त्रियों में विकसित होती है लेकिन प्रसव के पश्चात् स्तन अन्धियों से दूध का स्राव होता है। पुरुषों में स्तन ग्रन्थियाँ अवशेषी (vestigial) होती हैं।
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(d) अश्रु ग्रन्थियाँ तथा लैक्राइमल ग्रन्थियाँ (Tear Glands and Lacrimal Glands): लैक्राइमल ग्रन्थियाँ प्रत्येक नेत्र के भीतरी कोण पर ऊपर की ओर स्थित होती हैं। इनका जलीय स्राव कॉर्निया को साफ रखता है।
(e) मीबोमियन ग्रन्थियाँ (Meibomian Glands): इन प्रन्थियों का साव नेत्र के कॉर्निया को नम व चिकना रखता है। (1) सोरूमिनस ग्रन्थियाँ (Ceruminous Glands): इन ग्रन्थियों से मोम के समान पदार्थ, सीरूमेन (cerumen) स्रावित होता है। ये कर्णपटह को नम रखता है और बाह्य कर्ण नलिका को चिकना रखता है।
त्वचा के कार्य (Functions of Skin)
त्वचा हमारे शरीर का सबसे बड़ा तथा महत्त्वपूर्ण तन्त्र है। इसके महत्त्वपूर्ण कार्य निम्नलिखित है।
(1) शरीर को सुरक्षा:
(a) त्वचा सारे शरीर पर सुरक्षा आवरण बनाती है। यह रोगाणुओं तथा रसायनों को शरीर के अन्दर जाने से रोकती है। (b) शरीर के कोमल अन्तरगों को रगड़ व चोट से बचाती है। (c) नाखून व पंजे आदि दूसरे जीवों से बचाते है। (d) त्वचा का मिलेनिन वर्णक सूर्य को हानिकारक पराबैंगनी (UV) किरणों से शरीर की रक्षा करता है।
(ii) ताप नियन्त्रण:
त्वचा गर्मियों में पसीने के वाष्पीकरण द्वारा शरीर के तापमान को कम करती है और सर्दियों में तापरोधक बनकर शरीर की गमों को बाहर नहीं जाने देती और शरीर का तापमान स्थिर बनाये रखती है।
(iii) अवशोषण:
त्वचा जल व कुछ हानिकारक पदार्थों को शरीर के अन्दर नहीं जाने देती किन्तु कुछ उपयोगी पदाथों जैसे दवाइयों का अवशोषण करती है।
(iv) स्वेद ग्रन्थियाँ:
वे स्वेद (पसीने) के रूप में जल व उसमें घुले लवण जैसे क्लोराइड, फॉस्फेट, अमोनिया, यूरिया व यूरिक अम्ल जैसे उत्सजों पदाथों का उत्सर्जन करती हैं।
(v) तैल ग्रन्थियाँ:
ये रोम पुटको से जुड़ी होती है और तैलीय पदार्थ-सीबम का साय करती हैं जो त्वचा को चिकना
एवं ताप तथा जलरोधी बनाते हैं। (vi) स्तन ग्रन्थियाँ: ये रूपान्तरित स्वेद ग्रन्थियाँ है जो दुग्ध बनाती है और शिशु को पोषण प्रदान करती हैं। ये ग्रन्थियाँ
केवल स्त्रियों में ही सक्रिय होती है और वक्ष भाग में स्थित होती है।
(vii) त्वक संवेदांग :
ये त्वचा की चर्म में पायी जाने वाली संवेदी कोशिकाएँ, संवेदी कोशिका समूह तथा तन्त्रिकाओं के आंन्तम सिरों के रूप में होते हैं। ये स्पर्श, दाब, पीड़ा व ताप संवेदी होते हैं।
(viii) खाद्य संग्रहण :
त्वचा के वसा स्तर को वसा कोशिकाओं में खाद्य पदार्थ वसा के रूप में संग्रहित रहते हैं। (ix) विटामिन D का संश्लेषण सूर्य के प्रकाश की पराबैगनी किरणों का अवशोषण करके त्वचा में विटामिन D का लषण होता है।
(x) कंकाल का निर्माण:
परिवर्धन काल में त्वचा के चर्म स्तर में कलाजात अस्थियों का निर्माण होता है।
(xi) बाल :
ये शरीर पर तापरोधी आवरण बनाते हैं। ठण्ड लगने तथा उत्तेजना के समय ये खड़े हो जाते है और शरीर
की रक्षा करते हैं। नाक के अन्दर, पलकों पर व बरोनियों के बाल रक्षात्मक होते हैं।
त्वचा के संवेदांग व उनके कार्य (Cutaneous Sense Organs)
तन्त्रिकाओं के अन्तिम स्वतन्त्र सिरे | पीड़ा ग्रही |
मिसनर्स कॉर्च्यूसल्स | ताप ग्राही |
पक्सीनियम कॉप्यूसल्स | दाब ग्राही |
मर्केल डिस्क | स्पर्श ग्राही |
रोम पुटिकाएँ | स्पर्श ग्राही |
आज का पोस्ट था- त्वचा के कार्य और प्रकार। यह पोस्ट आपको कैसा लगा कमेन्ट में जरुर बताइयेगा। हम आपके लिये इसी तरह का पोस्ट लाते रहेंगे।