दोस्तों आज के पाेस्ट में कबीर दास Kabeer Das ka Jeevan Parichay और श्रीराम शर्मा Shreeram Sharma दोनों लोगों के जीवन परिचय की जानकारी दिया जायेगा। आपकी परीक्षा में ये दोनों कवियों लेखकों के बारे में पूछा जाता है। आप इसे याद करके तैयार रहें ताकि परीक्षा में लिख सकें।
सबसे पहले श्रीराम शर्मा के जीवन परिचय से शुरु करते हैं।
श्रीराम शर्मा जीवन परिचय
जीवन कथा : हिन्दी श्रेष्ट साहित्कार आलोचनात्क श्रीराम शर्मा जी का जन्म उत्तर प्रदेश राज्य के मैनपुरी जिले के किरथरा (मक्खनपुर के पास) नामक गाँव में 23 मार्च , सन् 1892 ईं को हुआ था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा मक्खनपुर में ही हुई। इसके पश्चात इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी0ए0 की परीक्षा उत्तीर्ण की।
(Kabeer Das ka jeevan Parichay)
ये अपने बाल्यकाल से ही अत्यन्त साहसी एवं आत्मविश्ववासी थे। राष्ट्रीयता की भावना भी इनमें कूट- कूटकर भरी हुई थी। प्रारम्भ में इन्होंने शिक्षण – कार्य भी किया। राष्ट्रीय आन्दोलन में इन्होंने सक्रिय भाग लिया और जेल भी गए। आत्मविश्वास इनका इतना सबल था। बड़ी से बड़ी कठिनाई आने पर भी विह्वल नहीं होते थे।
इनका विशेष झुकाव लेखन और पत्रकारिता की ओर था । ये लम्बे समय तक ‘विशाल भारत’ पत्रिका के सम्पादक रहे। अपने जीवन के अन्तिम समय ये बड़ी कठिनाई से बीताए। श्रीराम शर्मा जी लम्बी बीमारी के कारण सन् 1967 ईं में इनका निधन हो गया।
साहित्य परिचय
श्रीराम शर्मा ने अपना साहित्यिक जीवन पत्रकारिता से आरम्भ किया। ‘विशाल भारत’ के सम्पादन के अतिरिक्ति इन्होंने गणेशशंकर विद्यार्थी दैनिक पत्र ‘प्रताप’ में भी सहसम्पादक के रुप में कार्य किया। राष्ट्रीयता की भावना से ओतप्रोत एवं जनमानस को झकझोर देनेवाले लेख लिखकर इन्होंने अपना ख्याति अर्जित की।
ये शिकार साहित्य के प्रसिद्ध लेखक थे। हिन्दी – साहित्य में शिकार – साहित्य का प्रारम्भ इन्हीं के द्वारा माना जाता है। सम्पादन एवं शिकार – साहित्य के अतिरिक्ति इन्होंने संस्मरण और आत्मकथा आदि विधाओं के क्षेत्र में भी अपनी प्रखर प्रतिभा का परिचय दिया। इन्होंने ज्ञानवर्द्धक एवं विचारोत्तेजक लेख भी लिखे हैं, जो विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहैं हैं।
कृतियाँ
शर्मा जी ने संस्मरण , जीवनी , शिकार – साहित्य आदि विविध विधाओं में साहित्य का सृजन किया था। इनकी कृतियों का विवरण इस प्रकार हैं ।
शिकार साहित्य
‘प्राणों का सौदा’, ‘जंगल के जीव’, ‘बोलती प्रतिमा’, और ‘शिकार’ । इन सभी रचनाओं में शिकार को रोमांचकारी वर्णन किया गया है। इसके साथ ही पशुओं के मनोविज्ञान का भी वयस्क परिचय मिलता है।
संस्मरण साहित्य
सेवा ग्राम की डायरी, ‘सन् बयालीस के संस्मरण ’। इनमें लेखक ने तत्कालीन समाज की झाँकी बड़े ही रोचक ढंग से प्रस्तुत की है ।
जीवनी
गंगा मैया ‘एवं’ नेताजी’। इसके अतिरिक्ति विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में प्रकाशित फुटकर लेख भी आपकी साहित्य – साधना के ही ढंग हैं।
कबीर दास जी का जीवन परिचय Kabeer Das ka jeevan Parichay
भक्तिकाल के माने जाने वाले महान कवि एंव समाज सुधारक महात्मा कबीर का जन्म काशी में सन् 1398 ईं (संवत् 1455 वि0) में हुआ था। ‘कबीर पंथ’ में भी इनका आविर्भाव –काल संवत् 1455 में ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष पूर्णिमा सोमवार के दिन माना जाता है। इनके जन्म स्थान को लेकर अनेक मत हैं – काशी , मगहर, आजमगढ़ । अनेको प्रमाण के आधार पर इनका जन्म स्थल काशी माना गया है।
भक्त परम्परा में प्रसिद्ध है कि किसी विधवा ब्राह्मणी को स्वामी रामानन्द के आशीर्वाद से पुत्र उत्पन्न होने पर उसने समाज के लोक लाज से काशी के समीप लहरतारा नामक तालाब पर रख दिया , वहाँ से नीरु और नीमा नामक जुलाहा ने ले जाकर उनका पालन पोषण किया औ उनका नाम कबीर रखा ।
Kabeer Das ka jeevan Parichay
इस प्रकार कबीर पर बचपन से ही हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्मों के संस्कार पड़े। कबीर जी का विवाह ‘लोई’ नामक स्त्री से हुआ जिससे कमाल और कमाली नाम के इनके दो संतान उत्पन्न हुए । स्वामी रामानन्द जी इनके गुरु थे, जिनसे गुरु – मन्त्र पाकर ये सन्त महात्मा कबीर बन गए।
कबीर अपने जीवन काल के अन्त समय में मगहर चले गए । उस वक्त काशी में यह धारणा प्रचलित थी कि काशी में मरने से व्यक्ति को स्वर्ग प्राप्त होता है तथा मगहर में मरने से नरक । समाज में फैले इस अन्धविश्वास को दूर करने के लिए कबीर अन्तिम समय में मगहर चले थे। कबीर के मृत्यु को लेकर अनेक मत हैं , लेकिन कबीर परचई में लिखा हुआ मत सत्य प्रतीत होता है कि बीस वर्ष में ये चेतन हुए और सौ वर्ष तक भक्ति करने के बाद मुक्ति पायी ।
‘कबीर पंथ’ के अनुसार इनकी मृत्यु 1575 माघ शुक्ल एकादशी बुधवार को माना जाता है। इनके मृत्य शरीर का संस्कार किस विधि से हो, इस बात को लेकर हिन्दु और मुस्लमानों में झगड़ा हो गया । हिन्दू धर्म के लोग इनका दाह संस्कार करना चाहते थे , और मुसलमान वर्ग के लोग दफनाना चाहते थे। एक किंवदन्ती के अनुसार जब इनके शव पर से कफन उठाया गया तो शव के स्थान पर पुष्प दिखायी दीया, जिसे हिन्दू और मुसलमान लोगों ने आधा – आधा बाँट लिया और दोनों वर्गों में उत्पन्न विवाद खत्म हो गया।
साहित्यक सेवाएँ (Kabeer Das ka jeevan)
कबीर को शिक्षा प्राप्ती का अवसर नहीं प्राप्त हुआ था। उनकी काव्य – प्रतिभा उनके गुरु रामानन्द जी कृपा से ही जागृत हुई। अत: यह निर्विवाद रुप से सत्य है कि इन्होंने अपनी रचनाओं को लिपिबद्ध नहीं किया । अपने मन की अनुभूतियाँ को इन्होंने स्वाभाविक रुप से अपनी ‘साखी’ में व्यक्त किया है। अनपढ़ होते हुए भी कबीर ने जो काव्य – सामाग्री प्रस्तुत की, वह अत्यन्त विस्मयकारी है।
ये भावना की प्रबल अनुभूति से युक्त , उत्कृष्ट रहस्यवादी , समाज – सुधारक , पाखण्ड के आलोचक तथा मानवता की भावना से ओतप्रोत भक्तिकाल के कवि थे। अपनी रचनाओं में इन्होंने मन्दिर , तीर्थाटन, माला, नमाज , पूजा – पाठ आदि धर्म के बाहरी आचार व्यवहार तथा कर्मकाण्ड की कठोर शब्दों में निन्दा की ओर सत्य , प्रेम , सात्विकता , पवित्रता , सत्संग , इन्द्रिय – निग्रह , सदाचार गुरु-महिमा ईश्वर भक्ति आदि पर विशेष बल दिया।
रचनाएँ
कबीर पढ़े लिखे नहीं थे , इन्होंन स्वंय स्वीकार किया हैं – ‘मसि कागज छुऔ नहीं, कलम गह्रौ नहिं हाथ’ यद्यपि कबीर की प्रामाणिक रचनाओं और इनके शुद्ध पाठ का पता लगाना कठिन कार्य हैं , फिर भी इतना स्पष्ट है कि जो कुछ गा उठाते थे, इनके शिष्य उसे लिख लिया करते थे। कबीर के शिष्य धर्मदास ने इनकी रचनाओं का ‘बीजक’ नाम से संग्रह किया है , जिसके तीन भाग हैं – साखी , सबद , रमैनी।
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