Digestive Glands (पाचक ग्रन्थियाँ)

इस पोस्ट में Digestive Glands पाचक ग्रन्थियाँ के बारे में पूरी जानकारी प्रदान की गयी है। कृपया पोस्ट पर कमेन्ट करें

लार ग्रन्थियाँ (Salivary Glands)

भोजन करते समय मुख में से एक चिकना तरल पदार्थ निकलता है। यह चिकना पदार्थ ही लार है। इस लार में पाचक रस पाए जाते हैं। ये भोजन को पचाने में सहायता देते हैं। मुख के अन्दर जीभ के दोनों ओर 3-3 लार ग्रन्थियाँ पाई जाती हैं।

ये ग्रन्थियाँ अलग-अलग प्रकार की होती हैं :

(क) कर्णमूल ग्रन्थियाँ: ये संख्या में दो होती हैं, एक जीभ के दाईं ओर तथा एक जीभ के बाईं ओर।

(ख) जिह्वा ग्रन्थियाँ: ये दो होती है और जीभ के नीचे स्थित होती है।

(ग) जबड़े के नीचे की ग्रन्थियाँ: ये भी संख्या में दो होती हैं तथा जीभ के ही नीचे स्थित होती हैं।

यकृत (Liver) Digestive Glands

यह एक बड़ी ग्रन्थि है जो पित्त रस (bile juice) उत्पन्न करती है। यह उदर गुहा में दाहिनी ओर स्थित होती है।। इसका भार लगभग 1.5 किलोग्राम होता है। इसके ऊपर एक शैली-सी लटकी रहती है। इसे पित्ताशय (gall bladder) कहते हैं। इसमें पित्त रस एकत्रित रहता है। यहाँ से एक नली पित्त रस को ग्रहणी में पहुँचाती है। इस नली को पित्त नली (bile duct) कहते हैं।

यकृत के कार्य

(i) हिपेरिन (Heparin): यकृत कोशिकाएँ हिपेरिन

नामक पदार्थ का स्राव करती हैं जो रुधिर वाहिनियों में रुधिर को जमने से रोकता है।

 (ii) पित्तरस (Bile Juice) का स्त्राव आमाशयिक रस के अम्ल को प्रभावहीन करने के लिए पित्त रस बनाता है और भोजन को क्षारीय बनाता है।

(iii) पचे हुए अवशोषित प्रोटीन को पेप्टोन तथा एमिनो एसिड के रूप में संचित रखता है।

(iv) इमल्सीफिकेशन वसा का पायसीकरण (इमल्सीफिकेशन) पित्त रस के द्वारा होता है।

(v) पित्त लवण तथा पित्त वर्णक का उत्सर्जन करता है।

(vi) रुधिर के निर्माण में भी सहायता करता है क्योकि यकृत के अन्दर लाल रुधिर कणों का संचय, निर्माण व टूट-फूट आदि कार्य होते हैं।

(vii) रुधिर का थक्का बनना (Clotting of Blood):

रुधिर में फाइब्रिनोजन का निर्माण होता है जो रुचिर को जमाने में सहायता देता है।

(viii) ग्लाइकोजन का संचय यकृत शरीर का भण्डार गृह है। जब पाचन के बाद रुधिर में आवश्यकता से अधिक

ग्लूकोज पहुँचता है तो वह यकृत कोशिकाओं में ग्लाइकोजन (glycogen) में बदल जाता है और ग्लाइकोजन के रूप में संग्रहित किया जाता है। (ix) ग्लूकोजीनोलाइसिस (Glucogenolysis): रुधिर में ग्लूकोज की मात्रा कम होने पर यकृत में संचित ग्लाइकोजन

ग्लूकोज में बदल दिया जाता है। (x) ग्लाइकोनिओजेनेसिस (Glyconeogenesis): शरीर में एमीनो और वसा अम्लों की अतिरिक्त मात्रा को ग्लाइकोजन में बदलकर संचित कर लिया जाता है।

(xi) वसा संश्लेषण (Fat Synthesis): यकृत कोशिकाओं में ग्लूकोज की अतिरिक्त मात्रा को वसा में बदल दिया जाता है। वसा को वसीय ऊतकों में संचित कर लिया जाता है।

(xii) छोटी आंत, ग्रहणी तथा आमाशय में प्रोटीन के पाचन से बने एमीनो अम्लों को रुधिर यकृत में ले जाता है। यहाँ उन्हें यूरिया में बदलकर मूत्र द्वारा शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है। यदि शरीर में से यूरिया न निकले तो शरीर में गठिया आदि रोग हो जाते हैं।

अग्न्याशय (Pancreas) [Digestive Glands]

आमाशय के ठीक पीछे अग्न्याशय नाम की एक बड़ी ग्रन्थि होती है। इसकी लम्बाई 18 सेमी तथा चौड़ाई 4 सेमी होती है। यह गुलाबी रंग की पत्ती-सदृश संरचना होती है। इसका दाहिना सिरा चौड़ा तथा बायाँ सिरा प्लीहा से चिपका होता है।

Digestive Glands
Digestive Glands

अग्न्याशय एक मिश्रित ग्रन्थि है। इसका बहिःस्रावी भाग (exocrine part) छोटे-छोटे पिण्डकों का बना होता है। इन पिण्डकों की कोशिकाएँ अग्न्याशयिक रस (pancreatic juice) का स्त्राव करती हैं। इसका अन्तःस्त्रावी भाग (endocrine part) लैंगरहैन्स की द्वीपिकाओं (Islets of Langerhans) का बना होता है।

अग्न्याशय के कार्य 

अग्न्याशय रस का स्त्राव (Secretion of Pancreatic Juice) :

अग्न्याशयिक रस में तीन एन्जाइम पाये जाते हैं :

(i) एमाइलोप्सिन या एमाइलेज (Amylopsin or Amylase) :

Digestive Glands काबर्बोहाइड्रेट्स का जो भाग मुखगुहा में लार के प्रभाव से बच जाता है वह इस एन्जाइम के प्रभाव से शक्कर में बदल जाता है।

  1. ii) लाइपेज या स्टीएप्सिन (Lipase or Steapsin) : यह वसा को (

वसा अम्लों में परिवर्तित कर देता है जो रुधिर तथा लसीका द्वारा अवशोषित कर लिए जाते हैं।

 (iii) ट्रिप्सिन तथा काइमोट्रिप्सिन (Trypsin and Chymotrypsin) : ये एन्जाइम प्रोटीन का पाचन करते हैं। 2. हॉर्मोन्स का स्त्राव (Secretion of Hormones) : अग्न्याशय की लैंगरहैन्स की द्वीपिकाओं की बीटा-कोशिकाएँ

इन्सुलिन तथा ग्लूकेगॉन नामक हॉर्मोन्स का स्राव करती हैं। ये हॉमोंन ग्लूकोज के उपापचय का नियन्त्रण करते हैं। रुधिर में

सामान्य स्तर से अधिक ग्लूकोज होने पर उसे ग्लाइकोजन में बदलने की क्रिया इन्सुलिन के प्रभाव से होती है।

प्रश्न: मधुमेह (Sugar सुगर) किसे कहते हैं?

उत्तर: यदि अग्न्याशय ग्रन्थि में इन्सुलिन कम बनने लगता है तो रुधिर में ग्लूकोज की मात्रा बहुत बढ़ जाती है और मूत्र के साथ ग्लूकोज आने लगता है। इसे मधुमेह रोग (diabetes) कहते हैं।

 

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