Jaiv Prakriyaye Jeevan ki Prakriya | जैव प्रक्रियाएँ या जीवन की प्रक्रियाएँ | (Life Processes) Free PDF

आज के पोस्ट में Jaiv Prakriyaye Jeevan ki Prakriya के बारे में विस्तार से बताया गया है। जीवधारियों में चाहे वो एक कोशिकीय अमीबा हों या मनुष्य अथवा विशालकाय वृक्ष, कुछ विशेष प्रक्रियायें पायी जाती हैं जिनके आधार पर उन्हें निर्जीव पदाथों से अलग पहचान सकते हैं. जैसे कि सभी जीवधारी :

  1. भोजन करते हैं (पोषण)।
  2. भोजन के ऑक्सीकरण से ऊर्जा प्राप्त करने के लिए ऑक्सीजन साँस लेकर प्राप्त करते हैं (श्वसन)।
  3. अपशिष्ट पदार्थों को शरीर से बाहर निकालते हैं (उत्सर्जन)।
  4. अपनी जाति को बनाये रखने के लिए सन्तान उत्पन्न करते हैं (जनन)।
  5. पर्यावरण से संवेदनाएँ ग्रहण करते हैं।

उपर्युक्त तथा अन्य उन सभी प्रक्रियाओं को जिनके द्वारा जीव स्वयं को बनाये रखते हैं तथा अपने समान सन्तान उत्पन्न करते हैं जैव प्रक्रियाएँ (life processes) कहते हैं। शरीर क्रिया विज्ञान या कार्यिका ने समान सन्तान उत्पन अध्ययन किया जाता है।

Jaiv Prakriyaye Jeevan ki Prakriya
Jaiv Prakriyaye Jeevan ki Prakriya

जीवों में होने वाली रासायनिक अभिक्रियाओं को जैव-रासायनिक अभिक्रियाएँ (biochemical reactions) कहते हैं। देव क्रियाएँ दो प्रकार की होती हैं :

(1) अपचयी क्रियाएँ (Catabolic Reactions):

इन क्रियाओं में जटिल कार्बनिक अणु सरल अणुओं में टूटते हैं, जैसे पाचन तथा श्वसन क्रियाएँ।

(2) उपचयी क्रियाएँ (Anabolic Reactions):

इनमें सरल कार्बनिक अणुओं से जटिल अणुओं का संश्लेषण होता

है, जैसे पौधों में प्रकाश संश्लेषण तथा जीवों में वसा, प्रोटीन व न्यूक्लीक अम्लों का संश्लेषण।

पोषण (Nutrition)

पोषण क्या है? (What is Nutrition?)

जीवों द्वारा भोजन या पोषक तत्त्वों को प्राप्त करने की क्रिया को पोषण (nutrition) कहते हैं।

पोषण की आवश्यकता (Need of Food)

  1. ऊर्जा स्त्रोत (Energy Source): समस्त जैविक क्रियाओं को सुचारू रूप से चलाने के लिए सभी जीवों को ऊर्जा

की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा भोजन से मिलती है।

  1. शारीरिक वृद्धि (Growth) भोजन से नया जीवद्रव्य बनता है जिससे कोशिकाएँ आकार में बढ़ती हैं और उनके

विभाजन से जीवों के आकार में वृद्धि होती है।

  1. शरीर में टूट-फूट की मरम्मत (Repair of Damaged Body Parts): नये जीवद्रव्य से कोशिकाओं और ऊतकों

में होने वाली टूट-फूट की मरम्मत होती है।

  1. रोगों से प्रतिरक्षा (Protection from Diseases)

भोजन के मुख्य घटक अथवा पोषक तत्त्व (Main Components of Food or Nutrients of Food)

कार्बोहाइड्रेट्स, वसा, प्रोटीन्स, विटामिन्स, खनिज लवण तथा जल भोजन के मुख्य घटक है। जब हमारे भोजन में सभी तस्व या पर्याप्त मात्रा में होते हैं तो हम स्वस्थ रहते हैं। इस प्रकार के भोजन को सन्तुलित भोजन (halanced diet) कहते हैं।

पोषक तत्त्वों को उनके कार्यों के आधार पर निम्नलिखित तीन समूहों में बाँटा गया है

  1. ऊर्जा प्रदान करने वाले पोषक तत्त्व (Energy giving Nutrients):

काहाइड्रेट्स (मण्डव शर्करा तथा उसाएँ।

  1. निर्माणकारी पोषक तत्त्व प्रोटीना।
  2. प्रतिरक्षा प्रदान करने वाले पोषक तत्त्व (Immunity giving Nutrients): टिफिन्स तथा खनिज लाम।
  3. कार्बोहाइड्रेट्स (Carbohydrates)

कार्बोहाइड्रेट्स कार्बन, हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन के मिलने से बनते हैं। ये दी प्रकार के होते हैं।

सरल कार्बोहाइडेट्स जैसे मलूकोज, फ्रक्टोज, सुक्रोज (शर्करा) तथा लैक्टोज आदि सरल रूप में वे गन्ना, चुकन्दर, खजूर आदि में पाये जाते है। जटिल कार्बोहाइड्रेट्स मण्ड (March ) के रूप में आलू, चावल, अरबी, मक्का तथा साबूदाना आदि में पाया जाता है।

कार्बोहाइड्रेट्स की उपयोगिता (1) कार्बोहाइडेदस जैविक कार्यों के लिए कर्जा प्रदान करते हैं। (३) लुकोजको कोशिका का इंधन कहते हैं। यह शरीर को तुरन्त ऊर्जा प्रदान करने का स्रोत है। (ii) ग्लुकोजको इकोजन के में पकृत कोशिकाओं में संचित किया जाता है।

वसाएँ (Fats)

वसाओ का निर्माण भी कार्बन, हाइड्रोजन व ऑक्सीजन के मिलने से होता है किन्तु इनमें अक्सिजन को मात्रा अपेक्षाकृत कम होती है।

पशुओं से यह हमे मक्खन, पनीर, दूध तथा भी के रूप में मिलता है। नारियल, बादाम, मूँगफली, सरसों, तिलहन आदि

इसके वानस्पतिक स्रोत है।

वसा की उपयोगिता: (1) शरीर में अतिरिक्त भोज्य पदार्थ वसा के रूप में संग्रहित होते हैं। (३) कस्य ऊर्जा प्रदान करते है। (iii) में ताप नियन्त्रक तथा कोशिकाकला के निर्माण में सहयोग देते हैं। (iv) वसा शरीर को आकृति भी प्रदान करते हैं।

प्रोटीन्स (Proteins)

कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन व नाइट्रोजन प्रोटीन्नस के निर्माण में भाग लेते हैं। प्रोटोन का एक अणु कई अमीनो अम्लो

(amino acids) में मिलकर बनता है। जन्तुओं में प्रोटीन्स के स्रोत मांस, मछली, दूध, अण्डा तथा पनीर आदि हैं। वनस्पति जगत में यह दालों, गेहूँ, मूंगफली, बादाम आदि से उपलब्ध होता है।

प्रोटीन्स की उपयोगिता (1) प्रोटीन्स जीवद्रव्य का निर्माण करने वाला प्रमुख पदार्थ है। (ii) ये सभी प्रकार के एन्जाइमों का निर्माण करते है। (iii) ये शरीर में हुई टूट-फूट की मरम्मत करते हैं। (iv) आवश्यकता पड़ने पर ऑक्सीकरण द्वारा ऊर्जा भी प्रदान करते हैं। तथा (v) प्रोटीन्स से बनी एण्टीबॉडीज (antibodies) हमे रोगों से सुरक्षा प्रदान करती है।

 

प्रोटीन ऊर्जा कुपोषण (Protein Energy Matnutrition): प्रोटीन ऊर्जा कुपोषण [Protein Energy Malnutrition (PEM)) बच्चों की खुराक (diet) में पोषण विशेषकर प्रोटीन की कमी का चिकित्सकीय स्पैक्ट्रम दर्शाता है। यह नवजात शिशुओं और बच्चों में अधिक पाया जाता है। जिसके कारण बच्चों में क्वाशरकर और मेरेस्मस जैसी महत्वपूर्ण व्याधियों हो जाती है।

(1) क्याशरकर (Kwashiorkor) क्वाशरकर रोग मुख्यतः प्रोटीन की कमी से होता है। यह स्थिति लगभग 12 माह की आयु में आती है, जब माँ के दूध की अनियमितता हो जाती है। जिन बच्चों का क्वाशरकर हो जाता है उनको बाजू तया टॉग अत्यधिक पतली हो जाती है। शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो जाती है तथा मानसिक मन्दता उत्पन्न हो जाती है।

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