इस पोस्ट में उत्तर प्रदेश लोक नृत्य चित्रकला मूर्तिकला से संबंधित विस्तार से जानकारी दी गई है।
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उत्तर प्रदेश की चित्रकला व मूर्तिकला
Uttar Pradesh Chitrakala Murtikala
- प्रदेश में मिर्जापुर सोनभद्र के मानिकपुर होशंगाबाद जोगीमारा रायगढ़ आदि स्थलों की गुफाओं में प्राचीन शैल चित्रकार के कुछ नमूने प्राप्त हुए हैं।
- मध्य काल में प्रदेश की प्रमुख चित्रकला शैली मुगल शैली थी जिसकी नींव हुमायूं द्वारा रखी गई थी
- अकबर ने चित्रकार के लिए एक अलग विभाग ही खोल दिया था।
- जहांगीर के समय मुगल चित्रकला अपने चरमोत्कर्ष पर था।
- मथुरा में जैन चित्रकला का विकास हुआ।
- प्रदेश में आधुनिक चित्रकला का विकास 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में कब शुरू हुआ जब 1911 में लखनऊ में कला एवं शिल्प महाविद्यालय की स्थापना की गई।
- 1925 में बंगाल के असित कुमार हल्दार जो की अवनी बाबू और टैगोर के शिष्य थे लखनऊ आए और कला एवं शिल्प महाविद्यालय के प्रथम भारती आचार्य बने उन्होंने लखनऊ में चित्रकला की वास तथा टेम्पा नामक दो नई शैलियां शुरू की जो बाद में लखनऊ शैली के रूप में विकसित हुई।
उत्तर प्रदेश की चित्रकला
- लंदन प्रशिक्षित और 1945 में कला एवं शिल्प महाविद्यालय के प्रधानाचार्य नियुक्त हुए ललित मोहन सेन ने चित्रकला को नई दिशा प्रदान करते हुए पेस्टल व ऑयल पेस्टल से नैसर्गिक सौंदर्य तथा आकृतियों के चित्रण पर जोर दिया। उन्होंने ग्राफिक विद्या की शुरुआत की और उन्होंने शबीह चित्रों की रचना की।
- 1956 में आचार्य रहे सुधीर रंजन खास्तगीर को इस महाविद्यालय का सूर्य कहा जाता है।
- मेरठ निवासी चमन सिंह चमन ने चित्रकला एवं मूर्तिकला पर 50 से अधिक पुस्तक लिखकर तथा सर्वाधिक अंतरराष्ट्रीय चित्र प्रदर्शनियां आयोजित करके विशेष ख्याति अर्जित की है।
प्रख्यात चित्रकार किरण उनकी धर्मपत्नी है।
- जय नारायण सिंह व अवतार सिंह पवार प्रसिद्ध चित्रकार हुआ मूर्तिकार रहे हैं।
- रणवीर सिंह बिष्ट के प्रमुख क्षेत्र में पहाड़ी लोक नृत्य पहाड़ी सीट से बचने का शहर गांव की सुबह काम की समाप्ति परसालत बालक बाजार की शेरनी, शहर की शेरनी जाड़े की रातें, पहाड़ी घसियारे, नीलकंठ आदि शामिल हैं, जो दर्शकों को अभिभूत कर देती हैं।
- रणवीर सक्सेना के प्रिय चित्रों में प्रतीक्षा, बुद्ध का गृह त्याग, झूला आदि उल्लेखनीय है।
- किरण दर लखनऊ स्कूल के वरिष्ठ कलाकारों में सेजिनके चित्रण पद्धति पर चीनी जापानी प्रभाव झलकता है।
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UP उत्तर प्रदेश की मूर्तिकला
Uttar Pradesh Chitrakala Murtikala Loknritya
- भवानी चरण का सुप्रसिद्ध चरित्र रामलीला है।
- शमशेर सिंह महादेवी वर्मा आचार्य रामचंद्र शुक्ल राय आदि कवि होने के साथ ही चित्रकार भी थे। रामचंद्र शुक्ल के प्रमुख चित्र निम्नलिखित है- पश्चाताप, आकांक्षा, प्रतिशोध, रोगी का स्वप्न, मौत की आंखें रोगी का स्वप्न, शेष अग्नि सृष्टि और ध्वंश, पराजय की पीड़ा, आदि।
- अमृत शेरगिल (गोरखपुर) विशिष्ट और यथार्थ की गहरी पकड़ उपेक्षित समाज एवं महिला वर्ग की गहरी संवेदना की ख्याति प्राप्त चित्रकार हैं।
- राज कपूर चितेरा प्रयागराज ने तेंदुलकर की 1500 फीट लंबी चित्र श्रृंखला बनाई है।
- महेंद्र नाथ सिंह ने कांगड़ा में काशी शैली पर काम किया।
- विश्वनाथ मेहता के प्रसिद्ध चित्र हैं प्यासा ऊंट सुहाग बिंदी व सृष्टि आदि।
- सत्यम शिवम सुंदरमशिवनंदन नौटियाल का प्रसिद्ध चित्र है।
- नंदकिशोर शर्मा कालीन ट्रे व चीनी मिट्टी बर्तनों पर डिजाइन के लिए प्रसिद्ध है।
Uttar Pradesh उत्तर प्रदेश का लोकगीत
- प्रदेश में लोकगीतों की एक समृद्ध परंपरा रही है। यहां क्षेत्र और अवसर के अनुसार लोकगीतों की भिन्नता देखने को मिलती है।
प्रदेश में क्षेत्रवार गए जाने वाले कुछ प्रमुख लोकगीत इस प्रकार हैं- कजरी, चौलर, कराही, गारी, पूर्वी, कहरवा, सोहनी, रोपनी, दादर, नाटक, बिरहा, झूमर, झूला, लोरकी, चैता, फगुआ, जोगीरा, विदेशिया, सोहर, बधाई गीत,कव्वाली आदि लोकगीत पूर्वाँचल में गाये जाते हैं।
- कजरी वर्षा ऋतु का लोकगीत है। इसकी उत्पत्ति मिर्जापुर में मानी जाती है। मिर्जापुर में भाद्र कृष्ण तृतीया को विंध्यवासिनी देवी का जन्मोत्सव कजरी पर्व के रूप में मनाया जाता है। मिर्जापुर में कजरी के चार अखाड़े – पंडित शिवदास मालवीय अखाड़ा, जहांगीर अखाड़ा, बैरागी अखाड़ा, अखाड़ा है। थोड़े बहुत अन्तर के साथ कजरी संपूर्ण पूर्वांचल तथा अवध क्षेत्र में गायी जाती है।
- मालिनी अवस्थी उर्मिला श्रीवास्तव अजीत श्रीवास्तव उषा गुप्त कजरी की प्रमुख गायिकायें हैं।
- सोहर, बधाई, झूला, कजरी व संस्कार गीत हैं।
Uttar Pradesh उत्तर पदेश न्यू लोकगीत
- झूला, होरी, रसिया, बम रसिया, समाज गायन, मल्हार व पका आदि ब्रज क्षेत्र में गाए जाने वाले प्रमुख लोकगीत हैं। समाज गायन ब्रज क्षेत्र के मंदिरों वह आश्रमों में किया जाता है।
- हरदौल, आल्हा, पंवारा, डुमरियाही चांगलिया कोही राजहरा गीत आदि बुंदेली लोकगीत हैं।
- यद्यपि आल्हा पूरे प्रदेश में गया जाता है लेकिन मुख्य रूप से या एक बुंदेली लोकगीत है और इसके गायन में वीर रस की प्रधानता रहती है।
- रागिनी, ढोला, लावनी, बन्ना व गुजरी आदि पश्चिम क्षेत्र के लोकगीत हैं।
- भजन पूरन भगत, भार्तिहरि निर्गुण आदि वैराग्य एवं भक्तिपूर्ण गीत है जो साधुओं द्वारा पूरे प्रदेश में गाए जाते हैं।
- गीतों के साथ प्रयुक्त होने वाले वाद्य यंत्रों में ढोल, नगाड़ा, रणसिंहा, मंजीरा, झांझ, चिमटा, करताल, बेला चम्मच, हारमोनियम तथा थाली आदि प्रमुख रूप से पाए जाते हैं।
उत्तर प्रदेश शास्त्रीय नृत्य Uttar Pradesh Shashtriy Nrity
- प्रदेश का एकमात्र शास्त्री नृत्य कत्थक है जिसका प्रारंभ मंदिर के पुजारी द्वारा कथा बाँचते समय हाव-भाव के प्रदर्शन से माना जाता है। मुस्लिम शासको ने इस नृत्य को राज दरबार में आश्रय देना शुरू किया। वाजिद अली शाह के दरबार में इसका विशेष विकास हुआ। इस नृत्य का मुख्य केंद्र लखनऊ है। इस नृत्य का उन्नयन ठाकुर प्रसाद को माना जाता है। बिंदादिन ने कत्थक में ठुमरी गायन का प्रवेश कराया। बींसवी शताब्दी में कत्थक के उत्थान में लीला सोखे मेनका का विशेष योगदान रहा।
- प्रदेश में चार संस्थाओं द्वारा कत्थक में स्नातक की डिग्री दी जाती है। वे संस्थाएं हैं- बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, आगरा विश्वविद्यालय, भातखंडे संगीत लखनऊ, राष्ट्रीय कथक संस्थान लखनऊ।