Manushy Me Janan Tantra (Reproductive System in Human)

नमस्कार दोस्तों आज का टापिक है Manushy Me Janan Tantra (Reproductive System in Human) इसकी पूरी जानकारी इस पोस्ट में दी गयी है।

मनुष्य में जनन तन्त्र (Reproductive System in Human)

मनुष्य एकलिंगी प्राणी है अर्थात् नर और मादा जनन अंग अलग-अलग प्राणियों में होते हैं। जिस मानव में नर जनन अंग होते हैं उन्हें पुरुष तथा जिनमें मादा जनन अंग होते हैं उन्हें स्त्री कहते हैं। पुरुषों एवं स्त्रियों को बाह्य लक्षणों द्वारा पहचाना जा सकता है। इन लक्षणों को गौण लैंगिक लक्षण (secondary sexual characters) कहते हैं। इन लक्षणों का विकास लड़कों में 15-18 वर्ष की आयु तक तथा लड़कियों में 11-14 वर्ष की आयु में प्रारम्भ हो जाता है।

Manushy Me Janan Tantra (Reproductive System in Human)

नर के गौण लैंगिक लक्षण (Reproductive System in Human)

यौवनावस्था के साथ लड़कों में निम्नलिखित परिवर्तन शुरू हो जाते हैं :

  1. शुक्रजनन नलिकाएँ शुक्राणुओं का निर्माण शुरू कर देती हैं।
  2. वृषण कोषों तथा शिश्न के आकार में वृद्धि।
  3. कंधे चौड़े हो जाते हैं तथा अस्थियों के आकार एवं पेशीन्यास में वृद्धि होती है।
  4. चेहरे तथा शरीर पर बाल उग आते हैं।
  5. स्वर भारी हो जाता है तथा शरीर की लम्बाई में वृद्धि होती है।

स्त्री के गौण लैंगिक लक्षण

यौवनारम्भ के समय लड़कियों में निम्नलिखित परिवर्तन होते हैं :

  1. बाह्य जनन अंगों तथा स्तनों का विकास।
  2. अण्डोत्सर्ग तथा आर्तव चक्र का प्रारम्भ।
  3. श्रोणि प्रदेश का फैलकर चौड़ा होना।
  4. कक्षीय एवं जघन बालों का उगना।

 

नर जनन तन्त्र (Male Reproductive System)

नर जनन तन्त्र में वृषण (testes), अधिवृषण (epididymis), vesicle), प्रोस्टेट ग्रन्थि (prostate gland), काउपर ग्रन्थि (Cowper’s gland) एवं शिश्न (penis) होते हैं। शुक्राशय, प्रोस्टेट ग्रन्थि व काउपर ग्रन्थि के द्वारा स्रावित द्रव शुक्राणु द्रव (spermatic fluid) का अधिकांश भाग बनाते हैं।

फोकस की Manushy Me Janan Tantra (Reproductive System in Human)

वृषणों का केवल एक जोड़ा होता है। ये उदरगुहा के बाहर त्वचा की बनी थैलियों अर्थात् वृषण कोषों में स्थित रहते हैं और ये वृषण कोषों की दीवार से दृढ़ तन्तुओं द्वारा जुड़े रहते हैं। वृषण से एक पतली, संकरी लगभग 6 मीटर लम्बी नली निकलती है जिसे शुक्रवाहिनी कहते हैं।

इसका निकटस्थ अधिकांश भाग वृषण कोषों के भीतर ही कुण्डलित रहता है और एपिडिडाइमिस कहलाता है।। इसका शेष दूरस्थ भाग उदर गुहा में प्रवेश करता है और मूत्र नाल में खुलता है। मूत्राशय भी मूत्र नाल में खुलता है। मूत्र नाल एक पेशीय मोटी नली है। यह शिश्न के दूरस्थ सिरे पर खुलती है। इस प्रकार हम देखते हैं कि पुरुषों में मूत्र तथा शुक्राणु दोनों ही मूत्र नाल द्वारा बाहर निकलते हैं।

(Manushy Me Janan Tantra)

शुक्रवाहिनी जिस स्थान पर मूत्रवाहिनी से मिलती है वहीं पर शुक्राशय तथा प्रोस्टेट ग्रन्थियाँ स्थित होती हैं। शुक्राशय तथा प्रोस्टेट ग्रन्थियाँ एक क्षारीय द्रव स्रावित करती हैं जिससे शुक्राणु जीवित रह सकें। प्रोस्टेट ग्रन्थियाँ केवल पुरुष में मिलती हैं, स्त्रियों में ये नहीं होतीं।।

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इनके अतिरिक्त काउपर ग्रन्थियाँ, पैरिनियल ग्रन्थियाँ तथा रेक्टल ग्रन्थियाँ भी होती हैं जिनका स्राव यूरेथ्रा अर्थात् मूत्र मार्ग को चिकना बनाये रखता है तथा विशेष प्रकार की गन्ध उत्पन्न करता है।

पुरुष में यौवनारम्भ (Puberty in Man):

जब नर जननांग अपना कार्य करना प्रारम्भ करते हैं तो इस अवस्था को यौवनारम्भ कहते हैं। यह सामान्यतः 15-18 वर्ष की आयु में होता है। यौवनारम्भ होते ही वृषण टेस्टोस्टीरोन हॉर्मोन उत्पन्न करने लगते हैं। यह हॉर्मोन वृद्धि तथा गौण लैंगिक अंगों की परिपक्वता का नियमन करता है।

वृषण के कार्य तथा शुक्राणु की संरचना (Structure of Sperm and Function of Testis): वृषण में शुक्राणुओं एवं नर हॉर्मोन्स का निर्माण होता है। प्रत्येक शुक्राणु सिर (head), सूक्ष्म ग्रीवा (neck), मध्यभाग (middle piece) तथा पूँछ (tail) में विभेदित होता है। सिर में एक केन्द्रक होता है जिसमें गुणसूत्र का हैप्लॉयड सैट होता है (23 गुणसूत्र)। मध्यभाग में अनेक माइटोकॉण्ड्रिया सर्पिल क्रम में व्यवस्थित होकर माइटोकॉण्ड्रियल शीथ बनाते हैं। ये शुक्राणुओं के चलन के लिए ऊर्जा (ATP) प्रदान करते हैं।

मादा जनन तन्त्र (Female Reproductive System)

मादा जनन तन्त्र के मुख्य अंग दो अण्डाशय (ovaries), अण्डवाहिनियों Soviducts), गर्भाशय (uterus), योनि (vagina) एवं भग (vulva) होते 10 स्त्रियों में यौवनारम्भ 12-13 वर्ष की आयु में शुरू होता है।।

एक जोड़ी अण्डाशय वृक्क के नीचे उदरगुहा में पृष्ठ तल पर उच्चपके रहते हैं। अण्डाशय के समीप से अण्डवाहिनी (ovider चा डिपावाहिनी (fallopian tube) एक कीप की तरह शुरू होती है। दोनों ओर की डिम्बवाहिनी नलिकाएँ जुड़कर एक बड़ा कोष्ठ बनाती है जिसे गर्भाशय (uterus) कहते हैं। गर्भाशय एक छोटे कोष्ठ, योनि (vagina) में खुलता है और योनि (vulva) द्वारा बाहर खुलती है।

स्त्रियों में पुरुष के शिश्न के समजात क्लाइटोरिस (clitoris) होता है। अण्डाशय अण्डाणु (मादा युग्मक) तथा कुछ हॉर्मोन्स बनाते हैं। योनि लगभग 8-10 सेमी लम्बी मांसल नलिका है जो सम्भोग के समय नर लिंग (शिश्न) को ग्रहण करती है।

शिशु बालिका में जन्म के समय दोनों अण्डाशयों में 2,50,000 से 4,00,000 पुटिकाएँ (follicles) होती हैं। इनमें से केवल 400 पुटिकाएँ ही स्त्री के जीवन काल में परिपक्व हो पाती है। शेष पुटिकाएँ वयस्क अवस्था के बाद निष्क्रिय हो जाती है। वयस्क स्त्रियों में 14 साल की आयु से लगभग 45 साल की आयु तक ही डिम्बा पुटिकाएँ परिपक्व होती है। उसके बाद स्त्रियों में जनन क्षमता समाप्त हो जाती है। स्त्रियों में प्रतिमाह केवल एक पुटक ही परिपक्व होता है जो दायें या बायें, किसी भी अण्डाशय में हो सकता है।

स्त्री में यौवनारम्भ तथा आर्तव चक्र (Puberty in Women and Menstrual Cycle)

स्त्रियों में यौवनारम्भ 11-14 वर्ष की आयु में होता है। इस समय स्त्रियों के जनन अंगों की संरचना एवं कार्यों में अनेक परिवर्तन होते हैं। यौवनारम्भ के बाद स्त्रियों में मादा जनन चक्र शुरू होता है। इसकी अवधि लगभग 28 दिन होती है। इन 28 दिनों के बीच अण्डाशय व गर्भाशय में अनेक परिवर्तन होते हैं। इसे आर्तव चक्र (menstrual cycle) कहते हैं। आर्तव चक्र या रजोधर्म का नियमन पीयूष ग्रन्धि द्वारा स्रावित हॉमोंनों द्वारा होता है। गर्भधारण करने के बाद रजोधर्म व अण्डोत्सर्ग बन्द हो जाते हैं। शिशु का जन्म होने के बाद अण्डोत्सर्ग व रजोधर्म पुनः शुरू हो जाते हैं।

अण्डोत्सर्ग (Ovulation)

प्रत्येक 28-30 दिन बाद किसी एक अण्डाशय से एक अण्डा परिपक्व होता है। यह अण्डाशय की दीवार को भेदकर देहगुहा में मुक्त होता है। अण्डाशय से अण्डे के मुक्त होने की क्रिया को अण्डोत्सर्ग (ovulation) कहते हैं। यह क्रिया 12- 13 वर्ष की आयु से प्रारम्भ होकर 45-50 वर्ष की आयु तक चलती रहती है। इस क्रिया के प्रारम्भ होते समय गर्भाशय का अन्तःस्तर गिर जाता है और रुधिर के रूप में 3-5 दिन तक योनिमार्ग से बाहर बहता रहता है। इस क्रिया को रजोधर्म कहते हैं। कुछ समय बाद गर्भाशय में नया अन्तःस्तर बन जाता है। रजोधर्म के 12-14 दिन बाद अण्डोत्सर्ग होता है। 16वें दिन तक अण्डा शुक्राणु की प्रतीक्षा करता है तथा निषेचन न होने की दशा में यह नष्ट हो जाता है तथा 28 दिन बाद होने वाले रजोधर्म के साथ बाहर निकल जाता है।

निषेचन (Fertilisation)

मानव में नर व मादा युग्मक मादा के शरीर में संयोजन करते हैं। इसे आन्तरिक निषेचन कहते है। निषेचन के समय केवल एक शुक्राणु अण्डे में प्रवेश करता है। तथा शेष शुक्राणु नष्ट हो जाते हैं।

बाह्य एवं आन्तरिक निषेचन (External and Internal Fertilisation)

  1. बाह्य निषेचन (External Fertilisation) : इस प्रकार के निषेचन में नर व मादा अपने-अपने युग्मक जल में एक ही स्थान पर तथा साथ-साथ स्खलित करते हैं। निषेचन जल में होता है तथा इस प्रकार बना युग्मनज सन्तति जीव बनता है। उदाहरण : मछलियों।
  2. आन्तरिक निषेचन (Internal Fertilisation): आन्तरिक निषेचन में अण्डाणु का निषेचन मादा की जनन वाहिनियों के अन्दर होता है। इस प्रकार के निषेचन में शुक्राणुओं को मादा की जनन वाहिनियों में पहुँचाने के लिए नर में विशेष मैथुन अग होते हैं। मनुन्य में आन्तरिक निषेचन ही होता है।

पोषण एवं भ्रूण परिवर्धन (Implantation and Embryonic Development) :

निषेचन अण्डवाहिनी में होता है। परिपक्व अण्डाणु एवं शुक्राणु के संयोजक से बना युग्मनज 2-3 दिन में गर्भाशय में पहुँच जाता है जहाँ यह गर्भाशय की दोका से चिपक जाता है। इस क्रिया को पोषण कहते हैं। अब युग्मनज में विदलन होता है। यह मादा के गर्भाशय में आंवल या प्लेबेरा द्वारा गर्भाशय से जुड़ा रहता है। आंवल द्वारा भ्रूण का पोषण होता है। पोषण से शिशु के जन्म की अवधि गर्भावस्था कहलाती है। मनुष्य में यह 280 दिन, चूहे में 20 दिन व हाथी में 640 दिन होती है।

पाठ के स्मरणीय बिन्दु Focus Point of this Post

  1. शरीर के बाहर चारों ओर स्थित आवरण को देहभित्ति कहते हैं। इसके बाहरी स्तर को त्वचा का अध्यावरण कहते हैं। त्वचा में दो स्तर होते हैं उपचर्म तथा चर्म। त्वचा शरीर की सुरक्षा करती है तथा रोगाणुओं व रसायनों को शरीर में जाने से रोकती है।
  2. मनुष्य के पाचक तन्त्र के अन्तर्गत भोजन को चबाना, चबाये हुए भोजन को निगलना तथा पचाना एवं अपच भोजन को बाहर निकालना आदि क्रियाएँ पाचक तन्त्र द्वारा होती हैं।
  3. मनुष्य की आहार नाल 8-10 मीटर लम्बी होती है और इसके अग्रलिखित भाग होते हैं-मुख एवं मुख गुहिका, असनी ग्रास नली, अमाशय, छोटी आंत्र तथा बड़ी ऑत्र व मलाशय।
यह भी जानें
  1. लार ग्रन्थियाँ, यकृत तथा अग्न्याशय पाँच ग्रन्थियाँ हैं जो भोजन के पाचन के लिए एन्जाइम स्रावित करती हैं।
  2. मनुष्य में ऑक्सीन व कार्बन डाइऑक्साइड के आदान-प्रदान के लिए श्वसन तन्त्र होता है। श्वसन तन्त्र में बाहानाम्स रन्ध्र, नासा पथ, वायु नाल (कंठ व श्वास नली) तथा फेफड़े होते हैं। शरीर में रुधिर के परिसंचारण के लिए एक परिसंचरण तन्त्र होता है जिसमें हृदय एवं रुधिर वाहिनयों शामिल है।
  3. एक जोड़ी वृक्क मानव का उत्सर्जन तन्त्र बनाते हैं। ये उदर गुहा में कशेरुक दण्ड के रूप में दोनों ओर स्थित होते हैं। वृक्क सेम के बीज के आकार के होते हैं। प्रत्येक वृक्क में लाखों की संख्या में बोमेन सम्पुट होते हैं जो रुधिर से उत्सर्जी पदाथों व जल को अलग करते हैं।
  4. यकृत त्वचा व फेफड़े भी उत्सर्जी अंगों का कार्य करते हैं।
  5. मनुष्य एकलिंगी प्राणी है। इसमें नर एवं मादा जनन अंग अलग-अलग प्राणियों में होते हैं। पुरुषों व स्त्रियों को बाहा लक्षणों द्वारा पहचाना जा सकता है। इन लक्षणों को गौण लैंगिक लक्षण कहते हैं।
  6. पुरुषों में यौवनारम्भ 15-18 वर्ष की आयु में तथा स्त्रियों में यह 12-13 वर्ष की आयु में होता है। पुरुषों में वृपण तथा स्त्रियों में अण्डाशय प्रमुख जनन तन्त्र हैं।

 

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