यदि आप संख्यावाची गूढार्थक शब्द का जानकारी चाहते हो , तो आप सही वेवसाइट पर आए है। यहाँ आप लोगो के लिये 100 से अधिक संख्यावाची शब्द की जानकारी दी गयी है। इस शब्दों का ज्ञान होना बहुत ही जरूरी है। यह सामाजिक व्यवहार में भी आता है। व्याकरण से जुड़ी हुई जीवन से सम्बन्धित सारी जानकारी मिल जाएगी । हिन्दी और संस्कृत में कुछ ऐसे शब्द हैं, जो संख्याओं से संबंधित हैं और जीवन के विविध अंगों, देवी देवताओ और शक्ति आदि की दृष्टि से विशिष्ट अर्थ में प्रयुक्त होते हैं – संख्यावाचक शब्दों की तालिका इस प्रकार है –
1. एक – ब्रम्हा, सूर्य, चन्द्र, पृथ्वी।
2.दो पक्ष – शुक्ल पक्ष, कृष्ण पक्ष।
3. दो आयन – उत्तरायण, दक्षिणायन।
4. दो मार्ग – प्रवृति, निवृति ।
5. दो विद्या – परा, अपरा ।
6. दो उपासना – सगुण, निर्गुण ।
7. तीन गुण – सतोगुण, रजोगुण, तमोगुण।
8. तीन काल – वर्तमानकाल, भूतकाल, भविष्यकाल।
9. तीन देव – ब्रम्हा, विष्णु, महेश।
10. तीन ऋण – पितृ ऋण, मातृ ऋण, गुरू ऋण।
11. तीन अग्नि – दावाग्नि, बड़वाग्नि, जठराग्नि।
12. तीन दोष – वात, पित्त, कफ।
13. तीन दुःख – दैहिक, दैविक, भौतिक।
14. तीन अवस्था – बाल्यावस्था, यौवनावस्था, वृध्दावस्था।
15. तीन शरीर – सूक्ष्म, स्थूल, कारणरूण
16. तीन बल – तन, मन, धन।
संख्यावाची विशिष्ट गूढार्थक शब्द
17. तीन स्त्रोत – मुक्त, मुमुक्ष, और विषयी।
18. तीन राम – राम, बलराम, परशुराम।
19. तीन कांड – ज्ञान, कर्म, उपासना।
20. तीन वायु – शीतल, मन्द, और सुगन्ध।
21. तीन जीव – जलचर, थलचर, नभचर।
22. तीन दिव्य पदार्थ – ब्रम्हा, जीव, और प्रकृति।
23. चार आश्रम – ब्रम्हाचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास।
24. चार अवस्था – जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्त, तुरीय।
25. चार वर्ण – ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।
26.चार वेद – ऋग्वेद, सामवेद, युजुर्वेद, अथर्ववेद।
27. चार उपवेद – आयुर्वेद, धनुर्वेद, गन्धर्व वेद, स्थापत्य वेद।
28. चार ब्राम्हण – शतपथ, गोपथ, ऐतरेय, स्त्रांत।
29. चार अंग – साम, दाम, दण्ड, भेद।
30. चार युग- सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग।
31. चार फल – अर्थ, धर्म, काम , मोक्ष।
32. चार दिशा – पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण।
33. चार शत्रु – काम, क्रोध , मोह, लोभ ।
संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द वाक्य
34. चार धाम – बद्रीनाथ, द्वारिका, जगन्नाथ, रामेश्वर।
35. चार सेना – हाथी , घोड़ा, रथ, पैदल ।
36. चार पुरूषार्थ – ज्ञान, भक्ति, कर्म, वैराग्य।
37. चार आभूषण ( भगवान विष्णु के हाथों में ) – शंख, चक्र, गदा, पद्य।
38. पाँच अमृत – दूध, दही, घी, शक्कर, शहद।
39. पाँच कर्मेन्द्रियाँ – हाथ, पाँव, मुख, लिंग, गुदा।
40. पाँच तत्व – आकाश, वायु, अग्नि, जल , पृथ्वी।
41. पाँच गव्य – दूध, दही, घी, गोबर, गोमूत्र।
42. पाँच रत्न – हीरा, मोती, नीलम, लाल, सोना।
43. पाँच यम- महायज्ञ, देवयज्ञ, भूतयज्ञ,पितृयज्ञ,अतिथियज्ञ।
44. पाँच कोष – मनोमय, अन्नमय, प्राणमय, आनन्दमय, वाज्ञानमय।
45. पाँच विकार – मदिरा, मत्स्य, मैथुन, मंत्र, मुद्रा।
46. पाँच विद्यार्थी के लक्षण – काकचेष्टा, वकध्यान, श्वाननिद्रा।
47. पाँच पिता – जनक, अन्नदाता, उपनेता, श्वसुर, भय-त्राता।
48. पाँच माता – माता, गुरू पत्नी, सास, राजपत्नी, जन्मभूमि।
49. छः शात्र – न्याय, मीमांसा, वैशेषिक, योग, सांख्य, ज्योतिष ।
गूढ़ शब्द के अर्थ
50. छः वेदांग – शिक्षा, निरूक्त, व्याकरण, कला, झन्द, ज्योतिष ।
51. छः रस – मीठा, कडुवा, कसैला, खट्टा, खारा, चरपरा।
52. छः ऋतु- वसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमन्त, शिशिर।
53. छः बीज के गुण – द्वेष, सुख, दुःख, प्रयत्न, ज्ञान, इच्छा।
54.छः घोर-दुख – गर्भ-दुःख, जन्म-दुःख, रोग-दुःख, जरा-दुःख, क्षुधा-दुःख, मरणदुःख।
55.सात वार – सोम, मंगल, बुध, गुरू, शुक्र, शनि, रवि।
56.सात सागर – क्षीर, दधि, धृत, इक्षु, मधु, मदिरा, लवण।
57.सात ऋषि – गौतम, भारद्वाज, विश्वामित्र, यमदग्नि, वशिष्ठ,कश्यप,अत्रि।
58.सात (विद्यार्थी के ) दोष – आलस, निद्रा, स्वाद, हठ, मन्दबुध्दि, कामक्रीड़ा, महाचिन्त।
59. सात स्वर – षडज, ऋषभ, गान्धार, मध्यम, प्रकृत, धैवक,निषाद, (सा, रे, ग, म, प,ध, नि)
60. सात द्वीप – जम्बू, प्रलक्ष, कुश, शाल्मेय, क्रौच, शाक, पुष्कर।
61. अष्टसिध्दि – अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्त, प्राकम्य ईशित्व, वशित्व।
62. आठ ( मूर्ख स्त्रियों) के लक्षण – माया, अविवेक, भय, साहस, चपलता, झूठ, अशौच,निर्दयता।
63.आठ (योग के) अगं- यम, नियम, आसन, प्राणायाम,प्रत्याहार, ध्यान, धारणा, समाधि।
64.आठ कवि – कुम्भनदास, नन्ददास, सूरदास, कृष्णदास, चतुर्भुजदास, परमानन्ददास, गोविन्द स्वामी, छीतस्वामी।
65. अष्ट धातु – सोना, चाँदी, ताँबा, पीतल, लोहा, काँसा, शीशा, राँगा।
66.आठ विवाह – देव, ब्रम्हा, प्रजापत्य, आर्य, आसुर, गन्धर्व, पैशाच, स्वयंवर।
गूढ़ Gudh Meaning Hindi Gudh Matlab Kya Hai
67. नवरत्न – हीरा, माणिक, पन्ना, मोती, मूँगा, गोमेद, लहसुनिया, पुखराज, नीलम।
68.नवग्रह – सूर्य, चन्द, मगंल, बुध, गुरू, शुक्र, शनि, राहु, केतु।
69. नवरस – श्रृंगार, हास्य, करूण, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स, अदभुत, और शान्त।
70. नवदुर्गा – ब्रम्हाचारिणी, शैलपुत्री, चन्द्रघण्टा, कुष्माण्डा, स्कन्दमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी,सिध्दिदात्री।
71. नवनिधि – पद्य, महापद्य, शंख, मकर, कच्छप, मुकुन्द, कुन्द, नील, खर्ब।
72.दस दिशा – उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम, ईशान, आग्नेय, नैऋत्व, वायव्य, ऊर्ध्वा, ध्रुव (ऊपर, नीचे)।
73. दस धर्म के लक्षण – धृति, क्षमा, दम, अस्तेय, शोच, इन्द्रिय-निग्रह, घी, विद्या, सत्य, क्रोध-त्याग।
74. दस द्विक्पाल – गोविन्द, अग्नि, पवन, ईश, राक्षस, यम, सुरपति, धनद, चरण, गरूड़ध्वज।
75. ग्यारह रूद्र – प्राण, अपान, ध्यान, समान, लदान, नाग, कुर्म, कृकल, देवदत्त, धनंजय,आत्मा।
76. बारह आदित्य – मेष, बृहद्भानु, रवि, चक्षु, ऋतिक, धानु, विभावसु, अर्क, आज्ञा, सविता, आला, सद्य।
77. बारह राशि – मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ, मीन।
78. बारह भुषण –नथ, हार, चुड़ी, किंकणी, नूपुर, अंगुठी, बिंदी, शीशफूल, कंठश्री, कंगन, बाजूबन्द, टीका।
79. सूर्य की बारह कलाएँ – धूमा, मारिची, तपनी, तापनी, ज्वालिनी, रूचि, सुषुम्न, मोगदा, विश्वा, क्रोधिनी, धारणई, क्षमा।
80. चौदह लोक – तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, पाताल, भूलोग, भुवर्लोक, स्वर्गलोक, महर्लोक, जनलोक, तपलोक, सत्यलोक।
81. चौदह रत्न – श्री, रम्भा, वारूणि, विष, अमृत, शंख,, ऐरावत, धनुष, धनवन्ती, कामधेनु, कल्पवृक्ष, चन्द्रमा, उच्चैःश्रवा कौस्तुभमणि।
82. चौदह मनु – स्वयंभू, स्वारोचिष, उत्तम, तामस, रैवत, खक्षुष, वैवस्वर्त, दक्ष-सावर्णि, सावर्णि, वम्हा सावर्णि, धर्म सावर्णि, रूद्र सावर्णि, देव सावर्णि, इन्द्र सावर्णि।
83. पन्द्रह तिथि – प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक तथा प्रतिपदा से अमावस्या तक।
84. सोलह श्रृगांर – अगंशौच, मंजन, दिव्यवस्त्र, महावर, केश, माँग, ठोड़ी, माथा, मेंहदी, उबटन, भूषण, सुगन्ध, मुखराग, दंतराग, अधरराग, काजल।
85. सोलह संस्कार – गर्भधान, पुंसवन, सीमान्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, आन्नप्राशन, चूड़ाकर्म, कर्णवेध, उपनयन, वेदारम्भ, विवाह, समावर्तन, वानप्रस्थ, संन्यास, अन्त्येष्टि।
86. सोलह चन्द्रकलाएँ – अमृता, मानदा, पूषा, पुष्टि, तुष्टि, रति, धृति, शशनी, चन्द्रिका, कान्ति, ज्योत्सना, श्री, प्रीति, अंगदा, पूर्ण, पूर्णमृता।
87. षोडशोपचार पूजा विधि –आहान, स्थापन, पद्य, सिंहासन, अर्ध्य, आचमन, स्थान, चन्दन, धूप, द्वीप, नैवेद्य, ताम्बूल, प्रदक्षिणा, नमस्कार, फूल, आरती ।
88. अठारह पुराण – ब्रम्हा, विष्णु , शिव, पद्य, श्री भगवत, नारद, मार्कण्डेय, अग्नि, भविष्य, ब्रम्हावर्त, लिंग, वराह, स्कंद, वामन, कूर्म, मत्स्य, गरूड़, ब्रम्हण्ड।
89. इक्कीस मूर्च्छना ( संगीत की ) -उत्तर मुद्रा, रजनी, उत्तरायणी, शुध्दषडजा, मत्सरीकान्ता, अश्वाकान्ता, अभीरूता, शर्वरी, हरिणाव्श्रा, कपोलनता, शुध्दमध्या, मार्गी, पौवी, मन्दाकिनी, नन्दा, विशाला, सौमपी, विचित्रा, मोहीनी, सुखदा, अलोपी।
90. इक्कीस गुण (यश के) – वात्सल्य, सुलभता, सुशीलता, गंभीरता, क्षमा, दया, करूणा, आर्दव,, उदारता, आर्यव, शरणत्व, सौहार्द चातुर्य, प्रीति, कृतज्ञता, ज्ञान, नीति, लोकप्रियता, कुलीनता, अनुराग, निर्वहनता।
संख्यावाची गूढार्थक शब्द
91. सत्ताईस नक्षत्र – अश्विनी, भरणी, कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लोषा, मघा, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाभाद्रपद, उत्तरा- भाद्रपद और रेवती।
92. तैंतीस संचारी –निर्वेद, ग्लानि, शंका, असूया, श्रम, मद, धृति, आलस्य, विषाद, मति, चिन्ता, मोह, स्वप्न, विबोध, स्मृति, अमर्ष, गर्व, उतसुकता, अविहत्थ, दीनता, हर्ष, क्रीड़ा, उग्रता, व्याधि, मरण, अपस्मार, आवेग, त्रास, उन्माद, जड़ता, चपलता, वितर्क, डाह।
93. तैंतीस देवता – 8 वसु+11 रूद्र + 12 आदित्य+ 1 इन्द्र + 1 प्रजापति।
94. अक्षौहिणीसे- (चतुरंगिनी सेना) 109350 पैदल, 65610 घोड़े, 31870 रथ, 11870 हाथी।
95. चौरासी लाख योनियाँ – 4 लाख मनुष्य + 9 लाख जलचर+11 लाख कीड़े -मकोड़े + 23 लाख पशु + 27 लाख स्थावर (पहाड़ नदी आदि) + 10 लाख नभचर पक्षी ।
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