दोस्तों आज का पोस्ट मनुष्य का श्वसन तन्त्र (Respiratory System of Human) पर आधारित है। प्रत्येक व्यक्ति को इसकी जानकारी होनी चाहिये। मैने इसमें अपना बेस्ट नालेज शेयर किया है। जो निम्नवत है।
मनुष्य में ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड के आदान-प्रदान में भाग लेने वाले अंगों को दो समूहों में बाँटते हैं :
1 . सहायक श्वसन अंग (Accessory Respiratory Organs) तथा मुख्य श्वसन अंग या फेफड़े।
सहायक श्वसन अंग (मनुष्य का श्वसन तन्त्र) (Respiratory System of Human)
वे समस्त अंग जो गैस विनिमय में भाग नहीं लेते लेकिन ऑक्सीजन युक्त वायु को बाहर से फेफड़ों तक तथा फेफड़ों से कार्बन डाइऑक्साइड युक्त वायु को शरीर के बाहर निकालने में सहायता करते हैं, वे सहायक श्वसन अंग कहलाते हैं। ये अंग निम्नलिखित हैं :
बाह्य नासा रन्ध्र (External Nares)
मनुष्य में मुख के ऊपर एक जोड़ी बाह्य नासा रन्ध्र स्थित होते हैं। दोनों नासा रन्ध्रों के बीच में एक पट होता है जिसे नासापट या अन्तर नासिका पट (inter nasal septum) कहते हैं। नासापट नासागुहा को दो नासा पथों में बाँटता है। नासिका तथा नासापट का अगला भाग उपास्थि का बना होता है।
नासा पथ या नासा मार्ग (Nasal Passages)
प्रत्येक नासा रन्ध्र अपनों और के नासा पथ में खुलता है। नासा पथ का अगला भाग नासा वेश्म कहलाता है। नासा पथ चाला भाग एक टेड़ा-मेढ़ा, घुमावदार नासा मार्ग कहलाता है। इस भाग में नासा अस्थियां नासागुहा को संकर व टेड़ा-भेड़ा इनसती है। नासा वेश्म श्लेष्मा झिल्ली तथा रोमो से ढको रहती है। श्लेष्मा झिल्ली श्लेष्मा (mucus) का साब करती है।
माता पथ के कार्य (Role of Nasal Passages) (1) वायु में मिश्रित धूल के कण, जीवाणु व अन्य हानिकारक कण श्लेष्मा में चिपक कर व रोमों में अटक कर, इसी पथ के अगले भाग में रह जाते है और स्वच्छ निस्यदित वायु फुफ्फुस तक पहुंचती है।
(i) श्लेष्मा लाव के कारण यह पथ नम रहता है। अतः शरीर में प्रवेश करने वाली वायु भी नम हो जाती हैं।
(iii) वायु का तापमान, शरीर ऊष्मा के कारण शरीर के ताप के बराबर होता है।
प्रसनी (Pharynx)
नासा पथ से वायु गले में स्थित ग्रसनी (pharynx) में प्रवेश करती है। ग्रसनी में मुख पंथ तथा नासा पच होते हैं। इसलिए मुख से भी श्वास ले सकते हैं।
हम ग्रसनी में वायु नाल तथा ग्रासनाल दोनों खुलती है। वायु नाल का छिद्र घाँटी द्वार (glottis) कहलाता है। इस पर एक इस्कननुमा रचना पायी जाती है। इस ढक्कननुमा रचना को घाँटी ढक्कन या एपिग्लॉटिस (epiglottis) कहते हैं। यह भोजन करते समय भोजन के कणों को वायु नाल में जाने से रोकता है।
वायु नाल (Wind Pipe)
यह 10-11 सेमी लम्बी तथा 1.5 से 2.5 सेमी व्यास की नलिका है। यह दो भागों में विभेदित होती है स्वर यन्त्र तथा श्वास नली।
(1) कंठ या स्वर यन्त्र (Larynx): यह वायु नाल का अगला बक्सेनुमा भाग है यह उपास्थि की बनी तीन प्रकार की चार प्लेटों से बना होता है। इसकी गुहा कंठ कोष कहलाती है। कंठ कोष में दो जोड़ी वाक रज्जु (vocal cords) होते हैं। इन वाक रज्जुओं में कम्पन से ही ध्वनि उत्पन्न होती है। इस कारण इसे ध्वनि उत्पादक अंग भी कहते हैं। हमारे गले में कंठ को उपास्थि
हो उभार के रूप में दिखायी देती है। इसे टेंटुआ या Adam’s apple भी कहते हैं।
(ii) श्वासनली (Trachea): यह गर्दन की पूरी लम्बाई में स्थित होती है। इसका कुछ भाग वक्ष गुहा में पहुँचता है। इसकी दीवार पतली तथा लचीली होती है और इसमें ‘C’ आकार की उपास्थि से निर्मित 16-20 अधूरे छल्ले पाये जाते हैं। ये उत्तले श्वासनली में वायु न होने पर इसे पिचकने से रोकते हैं।
श्वासनली वक्ष गुहा में आकर दो शाखाओं-श्वसनियों (bronchi) में बँट जाती है। प्रत्येक श्वसनी अपनी ओर के फेफड़े में प्रवेश करने के पश्चात् अनेक शाखाओं- श्वसनिकाओं (bronchioles) में बंट जाती है। प्रत्येक श्वसनिका अन्त में फुफ्फुस के वायु कोषों (alveoli) में समाप्त हो जाती हैं। इस प्रकार श्वास के समय ली गयी वायु नासिका से वायु कोषों तक पहुँचती है।
मुख्य श्वसन अंग (Main Respiratory Organs)
मुख्य श्वसन अंगों में ऑक्सीजन व कार्बन डाइऑक्साइड का आदान-प्रदान होता है।
फेफड़े (Lungs) : मनुष्य के दोनों फेफड़े या फुफ्फुस हृदय के दोनों ओर वक्ष गुहा का अधिकांश भाग घेरे रहते हैं। इनके चारों और एक गुहा होती है जिसे प्लूरल या फुफ्फुसीय गुहा (pulmonary cavity) कहते हैं।
प्रत्येक फुफ्फुस शंक्वाकार, हल्के गुलाबी रंग का, स्पंजी तथा लचीला होता है। ये श्वसनियों, श्वसनिकाओं, वायुकोषो, कृपिकाओं एवं रुधिर केशिकाओं के जाल से बने होते हैं।
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वायुकोषों के अधिक संख्या में होने के कारण मनुष्य में गैसीय आदान-प्रदान की सतह लगभग 100 वर्ग मीटर हो जाती है। मनुष्य का दायाँ फुफ्फुस तीन पिण्डों का तथा बायाँ फुफ्फुस दो पिण्डों का बना होता है। प्रत्येक फुफ्फुस के चारों तरफ एक पतला आवरण पाया जाता है जिसे फुफ्फुसावरण कहते हैं।
फेफड़ों की संरचना (Structure of Lungs)
वायुकोष (alveolus) शल्की एपीथीलियम की चपटी-पतली कोशिकाओं के एककोशिकीय स्तर से बना होता है। इसकी बाहरी सतह पर रुधिर केशिकाओं (blood capillaries) का जाल फैला रहता है। यह जाल फुफ्फुस धमनी की केशिकाओं से बनता है। इन केशिकाओं में ऑक्सीजनरहित रुधिर आता है।
इनके रुधिर में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा अधिक होती है। वायुकोष की वायु से ऑक्सीजन रुधिर केशिकाओं के रुधिर में विसरित हो जाती है तथा रुधिर में घुली कार्बन डाइऑक्साइड वायुकोष की वायु में विसरित हो जाती है। वायुकोष की रुधिर केशिकाएँ मिलकर फुफ्फुस शिरा बनाती हैं।