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Class 6 Hindi Bal Ram Katha
रामायण में जब राजा दशरथ एक विशेष सीन पर आते हैं तब वह सोचते हैं कि मैं अपने सारा राज पाठ राम को दे दूं और उनका राज्याभिषेक कर दूँ। उन्हें युवराज का पद वह देना चाहते थे लेकिन अयोध्या से वापस आने के बाद वे राम को अपना राजपाठ सौंपने का काम शुरू कर दिए थे। राम के आदर्शों का, उनके विनम्रता और बुद्धिमत्ता का सभी लोग बड़ा ही सम्मान करते थे। राजा दशरथ के लिए वह उनके प्राणों से अधिक प्यारे थे। राज्य में राम का सम्मान दिन प्रतिदिन लगातार बढ़ता जा रहा था।
दशरथ बूढे हो चुके थे Class 6 Hindi Bal Ram Katha
समय बीतता गया। अयोध्या के राजा दशरथ बूढ़े हो चले थे। कुछ दिनों बाद राजा दशरथ अपने गुरु मुनि वशिष्ट से सलाह-मशवरा लेकर एक दिन अपने दरबार में कहने लगे कि मैंने बहुत ही अधिक लंबी अवधि तक राज्य का कार्यभार संभाला और चलाया। अब मैं वृद्ध हो चुका हूं। मेरे शरीर के अंग शिथिल हो रहे हैं।
Class 6 Hindi Bal Ram Katha
मेरी इच्छा है कि मैं अपना राज-पाठ राम को समर्पित कर दूं। अगर राज्य की जनता इस बात से सहमत हो तो मैं राम को अपना राज पाठ देकर युवराज बना दूं लेकिन अगर राज्य की जनता का विचार मेरे विचार से अलग हैं तो मैं उस पर भी विचार करने के लिए तैयार हूं।
पूरी सभा में राजा दशरथ के इस नेक विचार प्रस्तुत करने पर और इस प्रस्ताव पर जोरदार स्वागत किया गया। जनता ने राम की जय-जयकार करना शुरू कर दिया। राजा दशरथ मन ही मन मुस्कुराते हुए जय जयकार सुनते रहे और वह अति संतोषजनक सुख का अनुभव कर रहे थे। फिर उन्होंने अपने मुंह से शब्द निकाला और कहा तो अब इस नेक काम में विलंब नहीं होना चाहिए।
मैं चाहता हूँ कि राम का राज्याभिषेक कल सूर्योदय होने के बाद अच्छे मुहूर्त पर कर दिया जाए और यह खबर एकदम हवा की तरह पूरे नगर में चारों तरफ फैल गई। प्रत्येक गली मोहल्ले में सभी इलाकों में बस एक ही बात की चर्चा हो रही थी कि राम का राज्याभिषेक होने की तैयारी प्रारंभ हो चुकी है।
राम का राज्याविषेक होने वाला था (Class 6 Hindi Bal Ram Katha)
लोग एक दूसरे से यह बात कहते हुए थक नहीं रहे थे। औरतें अपने परिवार में यह बातें बड़े ही प्रसन्न भाव से कह रही थी और समय निकालकर व पड़ोसियों के घर पर भी जाकर के इस बात की चर्चा कर रही थी। मानो ऐसा लग रहा था कि महिलाएं अपने स्वभाव का अत्यधिक परिचय दे रही थी।
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उस वक्त राजा दशरथ के 2 पुत्र भरत और शत्रुघ्न जी अयोध्या राज्य में नहीं थे। अब दोनों भाई अपने माता के घर यानी नाना के केकईराज के घर पधारे हुए थे और ऐसा होता है कि जब बच्चे अपने नाना के घर जाते हैं तो कुछ दिन बाद जब अपने घर वापस लौटने की बात नाना से करते हैं तो नाना उन्हें रोकना चाहते हैं। कहते हैं कि कुछ दिन और रहिए उसके बाद जाइएगा। क्या आपका मन यहां नहीं लग रहा है और यह प्रथा आज भी लोगों के बीच में पाया जाता है। इसी वजह से भरत जी को इस बात की कोई सूचना नहीं मिलती थी।
कोई जानकारी नहीं हो पाती थी कि अयोध्या में इस वक्त क्या हो रहा है? क्या कार्यक्रम आयोजित हो रहा है? कौन किस हालात में है? इन बातों की जरा सी भी जानकारी भरत जी को नहीं हो पाती थी। भरत जी को अपने पिताजी के इतने बड़े फैसले के बारे में नहीं पता चल पाया था और यहां तक कि उनको यह भी नहीं मालूम हुआ कि अगले दिन श्री राम का राज्याभिषेक होने वाला है। केकईराज के घर से सिर्फ 1 दिन में भरत और शत्रुघ्न जी का अयोध्या में वापस आना संभव ही नहीं था क्योंकि वहां से अयोध्या की दूरी काफी ज्यादा थी।
भरत ननिहाल गये थे
समय धीरे-धीरे बीतता गया तो राजा दशरथ ने भी अपने यशस्वी पुत्र श्रीराम से इस बात की चर्चा की और उनके समक्ष अपना विचार रखा और उन्होंने यह बात भी कह दिया कि देखो- भरत अभी यहां नहीं है और मैं सोच रहा हूं कि तुम्हारे राज्याभिषेक का जो कार्यक्रम है उसे स्थगित न किया जाए। राज्य की जनता ने तुम्हें अपना राजा चुन लिया है तो अब देर किस बात की। तुम अपने राजधर्म का ईमानदारी से पालन करना। अपने कुल खानदान और मर्यादा की रक्षा करना। यह सब अब तुम्हारे हाथ में है।
अब राज्याभिषेक की जो धूमधाम थी। इस महान पर्व को उनकी रानी कैकेई की दासी ने भी देखा था और सुना था। शुरुआत में उसे इतने बड़े कार्यक्रम का और इतने बड़े परिवर्तन का कारण समझ में नहीं आया था। वह सोच रही थी कि जो धूमधाम की तैयारियां हो रही है यह किसी और कार्यक्रम के लिए हो रहा होगा लेकिन वह इतनी ज्यादा रौनक, इतनी ज्यादा भव्य सजावट, किसी अन्य कार्यक्रम में इसके पहले नहीं देखी थी।
दासी को इतने भव्य सजावट को देख कर के अचंभा हुआ। तब उसने अपने ही समकक्ष उनकी दूसरी रानी कौशल्या की दासी से पूछा? उसके बाद उसको पता चला कि कौशल्या के बेटे राम का राज्याभिषेक होने वाला है और यह सारी सजावट धूमधाम उसी कार्यक्रम के लिए है और यह जानते ही मंत्रा तिल-मिलाकर जलभून गयी।
राम के राज्याभिषेक की सजावट शुरु हो चुकी थी
बहुत कष्ट में वह अपने आपको महसूस करने लगी और मन ही मन सोचने लगी कि यह एक षड्यंत्र है और यह षड्यंत्र कैकेई के खिलाफ है क्योंकि वह कैकेई की दासी थी तो कैकेई के हित के बारे में बहुत अधिक सोचती थी। वह बचपन से कैकेई की दासी बन करके उसके लिए काम करती थी और मंथरा की भी वह बहुत ही हितैसी थी।
वह दासी कैकेई की मुँहलगी दासी थी। हर बात उससे कहा करते थी। कोई बात उसके पेट में पचता नहीं था और इसी तरह कैकेई भी उस दासी को बहुत लाड प्यार करती थी। राज्य का भेद लेने का भी काम उसी दासी से किया करती थी।
इसके बाद क्रोध के अग्नि में जलने वाली मंथरा रानियों के वास की ओर भागते दौड़ते हुए गई और वह भागते हुए सीधे कैकेई के कमरे में घुस गई। सीने पर हाथ रखकर हाँफ रही थी। गुस्से से उसका चेहरा लाल पीला हो रहा था। जैसे ही कमरे में घुसी उसने देखा कि रानी तो सुषुप्त अवस्था में है, वह विश्राम की बजाय सो रही हैं।
वह अपने आप को लड़खड़ाने से संभालते हुए बोली- अरे मेरी मूरख रानी उठ, तेरे ऊपर भयानक विपत्ति आने वाली है, तुझे सोने की पड़ी है, जल्दी उठ तुम्हारे ऊपर विपत्ति का बोझ घहराने वाला है। सोने का, आराम करने का टाइम नहीं है। जल्दी जागो विपत्ति का पहाड़ टूटने से पहले उठो।
तब तक रानी कैकेई नींद से अचानक उठी और जब व्यक्ति नींद में अचानक उठता है कोई बात जल्दी समझ नहीं पाता है। किसी तरह से उससे पूछा क्या बात है, तुम इतना क्यों घबराई हो? क्या हुआ जल्दी बताओ सब कुशल है ना? इसके बाद मंथरा ने कहा कैसा कुशल? कैसा मंगल? सब सत्यानाश होने वाला है। तुमने जो दिन देखा था तुम्हारे अच्छे दिनों का यहाँ वध होने वाला है।
मंथरा ने चुगली किया
तुम्हारे अच्छे दिनों का यहां अंत होने वाला है।
राजा दशरथ ने कल ही राम का राज्याभिषेक करने का फैसला कर दिया है। अब वही सारा राजपाठ संभालेंगे। वही राजा बनेंगे और उन्हीं को अब युवराज की उपाधि मिलेगी।
इतना सुनने के बाद कैकेयी ने कहा यह तो बहुत ही शुभ समाचार है और उन्होंने अपने गले का हार निकाल कर के मंथरा को दे दिया और मन ही मन मुस्कुराने लगी। प्रसन्नता के भाव से मंथरा से कहीं राम तो हर तरह से युवराज पद के लिए योग्य है। इस बात पर मंथरा फिर एक बार क्रोधित होकर के बोली कि “रानी तुम्हारी बुद्धि भ्रष्ट हो गई है, अकल काम नहीं कर रहा है। यहां पर बात राम की योग्यता का नहीं है। इसमें राजा दशरथ के षड्यंत्र की बात है। उन्होंने तुमसे तुम्हारा अधिकार छीनने का षड्यंत्र किया है। यकीन मानो तुम्हारा अधिकार छीना जा रहा और तुम्हें उसका जरा सा भी एहसास नहीं है।”
मंथरा ने कैकेयी का दिया हुआ हार फेंक दिया
उसके बाद मंथरा ने कैकई का दिया हुआ हार फेंकते हुए कहा। “बताओ यह षड्यंत्र नहीं तो क्या है कल सुबह सुबह ही राम का राज्याभिषेक है और राजा दशरथ ने तुम्हारे पुत्र भरत को जानबूझकर के ननिहाल भेजा था ताकि वह राम का राज्याभिषेक आसानी से कर सके और राज्याभिषेक तो कर ही रहे हैं और इसमें उन्होंने भरत को बुलाने तक का भी फैसला नहीं किया। भरत को ननिहाल से आने के लिए किसी प्रकार की सूचना तक नहीं भिजवाई।”
इस बात पर कैकेई और भड़क गई और मंथरा पर क्रोधित होकर के बोली कि तुम कैसी बातें कर रही हो मैं तो राम को बहुत मानती हूं। राम के प्रति मेरा बहुत ही अधिक स्नेह और प्रेम है। वह तो मुझे अपनी मां के बराबर मानते हैं। इसमें कहां षड्यंत्र की बात है। जब राम का समय बीत जाएगा उसके बाद भरत ही तो राजा बनेंगे और राजपाठ हमेशा सबसे बड़े पुत्र को ही पहले दिया जाता है कहीं तुम्हारी बुद्धि तो नहीं भ्रष्ट हो गई है।
मंथरा नें कैकेयी को क्या-क्या समझाया
लेकिन मंथरा पर कैकेई की डांट और फटकार का जरा सा भी असर नहीं पड़ा। मंथरा को लगता था कि यह राजा दशरथ का षड्यंत्र ही है और वह रानी कैकेई के पास जाकर के उनके पलंग पर बैठ गई। उनके बहुत ही निकट बैठकर कैकेई के आंखों में आंखें डाल कर के कहने लगी कि “रानी तुम बहुत भोली हो, तुम्हारे भोलेपन का फायदा राजा दशरथ उठा रहे हैं। तुम्हें आज अच्छा लग रहा है, कल को यही फैसला बहुत बुरा लगेगा और वक्त बीतने के बाद तुम कुछ कर नहीं पाओगी। तुम्हारी मति सचमुच में मारी गई है। तुम्हें यह सब सुनकर प्रसन्नता हो रही है जिस बात को सुनने के बाद दुख का एहसास होना चाहिए, तुम उस पर खुश हो रही हो।
तुम्हारी इस बुद्धि पर मुझे बहुत तरस आ रहा है। तुम बात को समझो ताकि तुम मेरी बात को समझने का प्रयास करो जैसे ही राम का राज्याभिषेक हो जाएगा। अभी राजा बन जाएंगे तो तुम्हें कौशल्या की दासी बनना पड़ेगा, तुम कौशल्या की दासी बनने के लिए मजबूर हो जाओगी और तुम्हारे पुत्र भरत राम के दास बन जाएंगे क्योंकि राजा के बाद भरत को राम का दास बनना ही पड़ेगा और राम के राज-पाठ समाप्त होने की कोई समय सीमा नहीं है। पूरी जिंदगी भरत को उस राजगद्दी के लिए तरसना होगा।
मंथना नें भरत के लिये राजगद्दी का सलाह दिया
जानती हो बहुत बड़ा अनर्थ होगा- क्योंकि राम के बाद अगला राजा राम का पुत्र ही होगा और तुम इस अनर्थ को बहुत ही प्रेम से स्वीकार कर रही हो ऐसी घोर मूर्खता मत करो रानी ऐसा भी हो सकता है कि जैसे ही राम को राज मिले तो वह भरत को देश से निकाल दें और तुम भरत को इस देश से निकलते हुए बर्दाश्त नहीं कर सकती भरत को दर-दर भटकना पड़ सकता है।
लोगों का तिरस्कार सहना पड़ सकता है। भरत को अनेकों प्रकार के दंड भोगने पड़ सकते हैं और रानी तुम इस तिरस्कार से भरत को कम से कम बचा लो। तुम ऐसा कुछ सोचो, ऐसा कोई उपाय करो जिससे तुम्हारे पुत्र भरत को राजगद्दी मिल जाए। राजपाठ मिल जाए और और राम को किसी जंगल में भेज दिया जाए।”
मंथरा कैकेयी का दिमाग बदलने में कामयाब हो गयी।
अब धीरे-धीरे कैकेई के दिमाग पर मंथरा की बातों का असर होने लगा। उनका सिर चकराने लगा। अब वह अपने पलंग से तुरंत उठी और लड़खड़ा करके चलने लगी। उनकी आंखों में अब बहुत ही तीव्र गति से आंसू निकलने लगे। उनका मन इतना उदास हो गया जैसे कि उनका कितना बड़ा कलेजे का टुकड़ा चोरी हो गया हो।
अब रानी के चेहरे पर प्रसन्नता की जगह उदासी और क्रोध के भाव दिखने लगे और मंथरा ने जितना भी तर्क देकर उनको समझाया था वह उनके सभी बातों में यकीन करने लगी और फिर आखिर में रानी कैकेयी ने मंथरा से पूछा अब तुम ही बताओ मैं क्या करूं? वह अपने आंसुओं को पोछते हुए बड़े ही गंभीरता से भावुक होकर के मंथरा से उपाय पूछने लगी। मंथरा उनके बिस्तर से उठी और कैकेयी के नजदीक जाकर के खड़ी हो गई। अपने मन की उपज उनको बताने लगी। उन्हें समझा कर के कहने लगी कि “जरा याद करो एक समय था।
राजा दशरथ ने तुम्हें दो वरदान दिया था। उन्होंने तुमसे वचन दिया था कि तुम उनसे कोई भी दो वरदान ले सकती हो। अब वह सही वक्त आ गया है। तुम राजा दशरथ से उन दोनों वरदान की जगह एक में भरत के लिए राजगद्दी मांग लो और दूसरे वरदान में राम को 14 साल का बनवास मांग लो। यही मौका है और इस मौके को खोने मत देना।”
कैकेयी का चेहरा एकदम तमतमाया हुआ था। जब वह मंथरा की बात सुनी तो उनको उसकी बात बहुत ही सही लगी। उनके मन में एक सवाल अभी चल रहा था। यह बात व दशरथ से कैसे कहेंगी? कैसे उनके सामने इस बात को कहने का हिम्मत जुटा पाएंगी? इसी बात को लेकर के वह काफी परेशान थीं और सोचती थी कि उन्हें रानिवास बुलाएं या कुछ दिन इंतजार करें।
कैकेयी मंथरा की बात मान चुकी
मंथरा ने उनके मन की बात को बड़े ही चालाकी से समझ लिया। मंथरा ने कहा इस समस्या का समाधान तो एकदम से आसान है। एक काम करो रानी तुम। मैले कुचैले कपड़े पहन कर के कोप भवन में चली जाओ और जब राजा दशरथ कोपभवन में आए तो उनकी और मत देखना। उनसे बातें मत करना। तुम उनकी सबसे प्रिय रानी हो। वह तुम्हारा दुख सह नहीं पाएंगे। बस वह तुमको मनाने की कोशिश करेंगे तो तुम उसी समय उन्हें उनकी पिछली बात दो वरदान याद दिलाना और उसी समय दोनों वचन उनसे मांग लेना।
यह बात रानी को बहुत ही अच्छी लगी और बोली कि हां मैं बिल्कुल ऐसा ही करूंगी और राजा दशरथ को उनके षणयन्त्र में सफल नहीं होने दूंगी। मंथरा मन ही मन मुस्कुराने लगी और वह जाते-जाते रानी कैकेई से बोल कर गई कि “राम के लिए 14 वर्ष से कम का बनवास मत मांगना, भरत इतने सालों में राजकाज बहुत ही अच्छे से संभाल लेंगे, जनता राम को तब तक भूल चुकी होगी। लेकिन यह सब अब तुम जल्दी करो समय बहुत कम है।”
कैकेयी कोपभवन में चली गयी
उसके बाद रानी ने धीरे-धीरे अपने कदमों को बढ़ाते हुए कोप भवन में चली गई। मंथरा भी रानिवास से अपने आवास की तरफ निकल गई। दिन भर के कामकाज के बाद, व्यस्तता से फुर्सत पाने के बाद राजा दशरथ को रानियों की याद आई तो वे तुरंत रानिवास की ओर निकल पड़े। वह सोचकर निकले कि उन्हें भी वे शुभ समाचार सुनाएंगे।
वह सबसे पहले अपने सबसे प्रिय रानी कैकेयी के कक्ष की ओर गए तो कैकेयी वहां पर नहीं मौजूद थी। उस वक्त उन्होंने उनके दरबारी से पूछा तो उन्हें पता चला कि रानी कैकेयी कोपभवन में हैं। राजा दशरथ बड़े ही चिंतित हो गए, सोचने लगे रानी इस समय कोपभवन में, क्या हो गया उन्हें? वह सोच रहे थे कि रानी को यह सूचना नहीं मिली अभी तक।
राजा दशरथ कैकेयी को मनाने कोपभवन पहुँचे
शायद इस बात से नाराज होंगी। राजा दशरथ ने सोचा कि मैं चलता हूं उन्हें मना कर ही आऊंगा। जब वहाँ पहुंचे, देखकर काफी हैरान हो गए। उनको कुछ समझ में नहीं आया। कैकेयी एकदम से जमीन पर लेटी थीं। बाल बुरी तरह से बिखरे हुए थे, उनके गहने जमीन पर इधर-उधर पड़े हुए थे। दशरथ ने उनसे पूछा क्या हुआ है, क्या बात है, तबीयत ठीक है ना? किसी वैद्य को बुलाऊँ?
इतना पूछने के बाद राजा दशरथ को कोई उत्तर नहीं मिला और रानी कैकेयी सिर्फ रोती रही। दशरथ ने कहा तुम तो मेरी सबसे प्रिय रानी हो। मैं तुम्हें दुखी नहीं देखना चाहता हूं। मैं तुम्हें हमेशा प्रसन्न देखना चाहता हूं। तुम्हारी खुशी के खातिर में कुछ भी करने के लिए तैयार हूं। धरती आसमान सभी एक कर दूंगा। राजा दशरथ ने कैकई को मनाने का बहुत प्रयास किया लेकिन वह मनाने में असफल रहे।
कैकेयी ने राजा दशरथ से दो वरदान माँगे
अब राजा दशरथ भी जमीन पर बैठ गए और रानी से विनती करते रहे लेकिन रानी ने एक भी नहीं मानी। बहुत प्रयास के बाद उन्होंने जवाब दिया हां मैं बीमार हूं और रानी ने कहा मैं आपको अपनी बीमारी बताऊं उससे पहले मैं आपको एक याद दिलाना चाहती हूं कि मैं जो मांगूंगी आप उसे पूरा करेंगे। आपने मुझे उसके लिए वरदान भी दिया है और वह वरदान मांगना अभी मेरे लिए बाकी था। राजा दशरथ ने तुरंत हां कह दिया और कहा कि मैं राम की कसम खाकर कहता हूं कि मैं तुम्हारी इच्छा जरूर पूरी करूंगा।
राजा दशरथ ने राम की कसम खाय़ी Class 6 Hindi Bal Ram Katha
जैसे ही राजा दशरथ ने राम की कसम खाई। तुरंत रानी कैकेयी उठ कर बैठ गई और बोली कि आप मुझे वह दोनों वरदान दीजिए जो आपने कुछ वर्ष पहले रणभूमि में वचन दिया था। राजा दशरथ ने तुरंत हां कह दिया। कैकई ने कहा “कल सुबह राज्याभिषेक भरत का हो, राम का नहीं। कैकई ने पहले वरदान में यह कहा कि कल सुबह राज्याभिषेक भरत का होना चाहिए राम का नहीं। इस बात पर राजा दशरथ बहुत चकित रह गए उनको लगा कि मानो उनके ऊपर पहाड़ टूट पड़ा और तुरंत ही थोड़ा सा ही रुकने के बाद कैकेयी ने दूसरा वरदान मांगा कि “राम को 14 वर्ष का वनवास हो”।
इस बात को सुनकर के राजा दशरथ का चेहरा एकदम से सफेद पड़ गया। उनका सिर चक्कर खाने लगा और वह बेहोश होकर गिर पड़े कुछ देर में राजा को होश आया तो कैकेयी को उन्होंने देखा और फिर वह कैकेयी से बोले कि यह तुम क्या कह रही हो। मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा है कि यह तुम्हारे मुंह से मैं क्या सुन रहा हूं।
राजा दशरथ कैकेयी को मनाते मनाते रात भर बेहोश होते रहे
लेकिन कैकेयी अपनी बात पर अड़ी रही। राजा दशरथ कैकेयी की मांग को अस्वीकार करते रहे, अनर्थ बताते रहे, लेकिन कैकेई ने अपना अंतिम हथियार चलाया और कहा कि आप अपने वचन से पीछे मत हटियेगी। यह रघुकुल का अनादर है आप चाहे तो ऐसा कर सकते हैं। पर तब आप दुनिया को किस तरह मुंह दिखाएंगे रही मेरी बात अगर आप मुझे मेरा मुंह मांगा वरदान नहीं देंगे तो मैं विष पर करके यहीं पर आपके सामने अपनी जान दे दूंगी और मेरी जान जाने का कलंक आपके माथे पर ही लगेगा।
राजा दशरथ भी नहीं सुन सके और वह फिर से बेहोश हो गए। पूरी रात होश में नहीं थे। जब जब उन्हें होश आता था, वह कैकई को समझाते थे और कैकेयी के सामने गिड़गिड़ाते भी थे। धमकातो भी थे। डराते भी थे धमकाते भी थे लेकिन कैकेयी के ऊपर कोई असर नहीं पड़ा।
राजा दशरथ इसी बात को समझाते-समझाते थक गए और इस तरह से वह पूरी रात बीत गई।
दोस्तों यह दो वरदान नाम की सुंदर लाइने आपको कैसी लगी? कमेंट सेक्शन में जरूर बताइएगा यदि आपने पोस्ट को अच्छे से समझा पढ़ा और कमेंट किया तो मैं इसके आगे का भाग अगले पोस्ट में अपलोड कर दूंगा।
बहुत-बहुत धन्यवाद